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नई दिल्ली: जेएनयू में कथित राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के मामले में अब नया मोड़ आ गया है। मामले में छात्र संघ का कहना है कि आरोपी छात्र पुलिस के सामने सरेंडर नहीं करेंगे और गिरफ्तारी देंगे। दूसरी तरफ जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन ने मांग की है कि यूनिवर्सिटी के वीसी पुलिस को कैंपस में आने की इजाजत न दें। वे जेएनयू की जांच समिति पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन ने पुलिस के जेएनयू कैंपस से दूर रहने, यूनिवर्सिटी के खुद मामले में अंतिम फैसला लेने, छात्रों से आपराधिक मामले हटाए जाने और कैंपस में शांति बनाए रखने की अपील की है ताकि छात्र जांच में सहयोग कर सकें। उमर खालिद समेत जेएनयू के पांच छात्र कल (रविवार) परिसर में सामने आए थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है बल्कि उन्हें एक ‘जाली वीडियो’ इस्तेमाल करके ‘फंसाया’ गया। इन छात्रों की पुलिस देशद्रोह के मामले में खोज कर रही है। छात्रों ने कहा था कि ‘‘वे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे लेकिन पुलिस आकर उन्हें गिरफ्तार कर सकती हैं।

बारह फरवरी को जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद से पांच छात्र उमर खालिद, अनिरबन भट्टाचार्य, रामा नागा, आशुतोष कुमार और अनंत प्रकाश परिसर से लापता थे। कन्हैया को परिसर में संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ एक आयोजन के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। उस आयोजन में कथित तौर पर देश-विरोधी नारे लगाए गए थे। जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के पीएचडी शोधार्थी आशुतोष के अनुसार, वे ‘जांच में मदद करने की सोच के साथ आए हैं। हमें छात्रों और विश्वभर के अन्य लोगों से जो समर्थन मिला है, उसने हमें लौटने की ताकत दी है। मैं, रामा, अनिरबन और अनंत आसपास ही थे लेकिन भीड़ द्वारा पीटे जाने के माहौल के चलते सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आए थे।’ उन्होंने कहा था कि उनमें से चार लोग उमर खालिद के संपर्क में नहीं थे और उन्होंने आयोजन के दिन यानी नौ फरवरी को ही आखिरी बार उनसे बात की थी। आशुतोष ने कहा था कि छात्र दिल्ली में ही थे और रविवार शाम को लौटने का फैसला सबका निजी तौर पर लिया गया फैसला है न कि संयुक्त रूप से लिया गया फैसला।

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