नई दिल्ली: राष्ट्रीय मीडिया के संपादक और सैकड़ों पत्रकारों ने आज (बुधवार) सड़क पर उतर कर उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने कल एक अदालत परिसर में पुलिस की मौजूदगी में मीडियाकर्मियों की पिटाई की थी। साथ ही, पत्रकारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिफाजत के लिए उच्चतम न्यायालय से हस्तक्षेप करने की भी मांग की। पत्रकारों ने मोदी सरकार और दिल्ली पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया से उच्चतम न्यायालय तक मार्च किया तथा शीर्ष न्यायालय के रजिस्ट्रार को एक ज्ञापन सौंप कर हमले में संलिप्त वकीलों का लाइसेंस रद्द करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने पटियाला हाउस अदालत परिसार में सुरक्षाकर्मियों की अकर्मण्यता को लेकर पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी को बख्रास्त करने की भी मांग की। उस वक्त पत्रकार, छात्र और जेएनयू के शिक्षकों पर वकीलों की पोशाक (काला कोट) पहने लोगों ने हमला किया था।
पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर दिल्ली पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने में उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की। दिल्ली पुलिस घटना के वक्त मूकदर्शक बनी हुई थी। वहीं, उच्चतम न्यायालय पटियाला हाउस परिसर में हुई हिंसा की घटना में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करने वाली एक याचिका पर कल सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है। ज्ञापन में कहा गया है, हम देश के शीर्ष न्यायालय से हमले में संलिप्त रहे वकीलों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने में हस्तक्षेप की मांग करते हैं। इसमें अदालत को दोषी वकीलों का लाइसेंस रद्द करने के लिए बार काउंसिल को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। हमले के 24 घंटे बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। इस हमले में दिल्ली के विधायक ओपी शर्मा भी भाकपा के एक कार्यकर्ता को पीटते देखे गए। पत्रकारों ने यह भी कहा कि कल की घटना के सीसीटीवी फुटेज को भी मंगाना चाहिए और पत्रकारों एवं अन्य मीडियाकर्मियों की हिफाजत सुनिश्चित करने का निर्देश देना चाहिए। गौरतलब है कि जेएनयूएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ दर्ज देशद्रोह के एक मामले में कल सुनवाई से पहले वकीलों के एक समूह ने पत्रकारों और जेएनयू छात्रों और शिक्षकों की पिटाई की थी। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के महासचिव नदीम अहमद काजमी ने बताया कि उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार ने उनसे कहा कि प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर कुछ दिनों में पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल से मिलेंगे। उन्होंने कहा, हम आशा करते हैं कि उच्चतम न्यायालय निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण करेगा क्योंकि इसके पास ऐसा करने की संवैधानिक शक्ति है। हमले के वक्त मूकदर्शक बने रहने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने दिल्ली पुलिस की आलोचना की। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पुलिस ने गुंडों को पत्रकारों की पीटने की इजाजत दी और 24 घंटे के बाद भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, वह आपको बताता है कि पत्रकारिता के लिए हालात अधिक से अधिक प्रतिकूल होने की आशंका है। उन्होंने कहा कि ऐसा एक भी वीडियो नहीं है जिसमें कन्हैया कुमार कुछ भी कह रहा हो और उसके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर दिया गया और यहां आपके पास एक विधायक द्वारा किसी को पीटे जाने की वीडियो रिकार्डिंग है और आप एक मामला तक दर्ज नहीं करते। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय से हम दोनों मामलों में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हैं। दिल्ली पुलिस की कुछ जवाबदेही होनी चाहिए जो हमले के वक्त मूकदर्शक बनी हुई थी। वरदराजन ने कहा कि जहां घटना हुई थी वहां सीसीटीवी कैमरे थे इसलिए घटना अवश्य ही रिकार्ड हुई होगी। हम यह मांग करते हैं कि हमले को अंजाम देने वाले को जल्द से जल्द कानून के दायरे में लाया जाए। इसे छोटी सी घटना बताने को लेकर भी ज्ञापन में पत्रकारों ने बस्सी की आलोचना की है। ज्ञापन में कहा गया है, यह चिंता की बात है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त ने घटना को एक हाथापाई बता कर खारिज कर दिया। ऐसी बातें उन तत्वों को बढ़ावा देंगी जो पहले से मानते हैं कि वे कानून से परे हैं। इसमें पत्रकारों ने कहा है कि अदालत कक्ष के अंदर और बाहर महिला पत्रकारों सहित मीडियाकर्मियों पर वकीलों के ‘नृशंस हमले’ के बावजूद दिल्ली पुलिस ने कुछ नहीं किया। दर्जन भर से अधिक पत्रकारों को वकीलों ने अपना काम करने देने से रोका। ये पत्रकार जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह के एक मामले की सुनवाई को कवर करने वहां गए थे।