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चेन्नई: द्रमुक अध्यक्ष एम. करूणानिधि का लंबी बीमारी के बाद आज शाम शहर के एक अस्पताल में निधन हो गया। कावेरी अस्पताल में भर्ती 94 वर्षीय नेता ने शाम छह बजकर दस मिनट पर अंतिम सांस ली। करुणानिधि का बुधवार शाम को मरीना बीच पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के नेताओं ने दुख जाहिर किया है। उन्हें श्रद्धांजलि देने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार सुबह चेन्नई जाएंगे।

अस्पताल के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर अरविन्दन सेल्वाराज की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘हमें बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि हमारे प्रिय कलैनार एम. करूणानिधि का सात अगस्त, 2018 को शाम छह बजकर दस मिनट पर निधन हो गया। डॉक्टरों और नर्सों की हमारी टीम के सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।’’ विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘हम भारत के कद्दावर नेताओं में से एक के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं और परिवार के सदस्यों तथा दुनिया भर में बसे तमिलवासियों का दुख साझा करते हैं।’’ करूणानिधि का रक्तचाप कम होने के बाद 28 जुलाई को उन्हें गोपालपुरम स्थित आवास से कावेरी अस्पताल भेजा गया था।

पहले वह वार्ड में भर्ती थे, बाद में हालत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया। सोमवार को अस्पताल की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि करुणानिधि की उम्र के हिसाब से उनके शरीर के सभी ऑरगन्स को सही तरीके से फंक्शन कराने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। उन पर लगातार नजर बनाए हुए हैं और एक्टिव मेडिकल सपोर्ट दिया जा रहा है। इलाज के दौरान उनका रिस्पान्स ही आगे का उपचार का रास्ता तय करेगा।

आपको बता दें कि 5 बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा मुलाकात कर चुके हैं।

इसी साल 3 जून को करुणानिधि ने अपना 94वां जन्मदिन मनाया। ठीक 50 साल पहले 26 जुलाई को ही उन्होंने डीएमके की कमान अपने हाथ में ली थी। लंबे समय तक करुणानिधि के नाम हर चुनाव में अपनी सीट न हारने का रिकॉर्ड भी रहा। करुणानिधि तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधानसभा सदस्य रह चुके हैं। अभी तक वह जिस भी सीट पर चुनाव लड़े हैं, उन्होंने हमेशा जीत दर्ज की है। करुणानिधि ने 1969 में पहली बार राज्य के सीएम का पद संभाला था, इसके बाद 2003 में आखिरी बार मुख्यमंत्री बने थे।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने करुणानिधि के निधन पर कहा, ''एम करुणानिधि के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। "कलैनार" के नाम से लोकप्रिय वह एक सुदृढ़ विरासत छोड़ कर जा रहे हैं जिसकी बराबरी सार्वजनिक जीवन में कम मिलती है। उनके परिवार के प्रति और लाखों चाहने वालों के प्रति मैं अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता हूँ।' पीएम मोदी ने करुणानिधि के निधन पर दुख जताया है। पीएम ने कहा, 'करुणानिधि के निधन से दुखी हूं। वह भारत के वरिष्ठतम नेता थे।' 

देश की राजनीति में करुणानिधि और उनकी पार्टी का अमिट योगदान रहा है। करुणानिधि के निधन पर तमाम नेताओं ने दुख जताया है। करुणनिधि के निधन की खबर फैलते ही उनके चाहने वालों और तमाम दलों के नेताओं की भीड़ उनके आवास पर जुटने लगी है। अस्पताल के बाहर हजारों की संख्या में गमगीन समर्थक अपने कद्दावर नेता की अंतिम झलक पाने के लिए टकटकी लगाए हुए हैंं

तेज बारिश के बावजूद लोगों की भीड़ अस्पताल के बाहर जुटी हुई है। भीड़ को संभालने के लिए प्रशासन ने अस्पताल के बाहर भारी तादाद में पुलिसबल तैनात किया है। वहीं करुणानिधि के गोपालपुरम आवास के बाहर भी प्रशासन ने पुलिसबल तैनात कर दिया हैं राजारथिनम स्टेडियम में सुरक्षा बल के 500 और तमिलनाडु स्पेशल फोर्स के 700 जवानों को तैनात किया गया है।

ऐसे आए थे राजनीति में

अलागिरिस्वामी के भाषणों के करुणानिधि मुरीद थे। अलागिरिस्वामी के भाषण की वजह से ही राजनीति की ओर उनकी रूचि बढ़ने लगी थी। 1938 में 14 साल की कच्ची उम्र में करुणानिधि ने जस्टिस पार्टी का दामन थाम लिया था। जब डीएमके के संस्थापक सी. एन. अन्नादुरई अपने राजनीतिक गुरु ई. वी. रामास्वामी से अलग हुए, तब करुणानिधि उनके साथ आए और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक बने।

1957 में मिली थी पहली जीत

करुणानिधि को उनके राजनीतिक करियर में पहली बार 1957 में सफलता मिली थी। तब उन्होंने करुर जिले की कुलिथली विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। इस जीत के बाद उन्हें पहली बार तमिलनाडु विधानसभा में प्रवेश करने का मौका मिला। 1962 में वह विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने। 1967 में तमिलनाडु की अन्नादुरई सरकार में वह पहली बार मंत्री बने।

1969 में चुने गए डीएमके प्रमुख

1969 में कैंसर से पीड़ित अन्नादुरई की मौत हो गई थी। तब करुणानिधि उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बने। इसके बाद वे मुख्यमंत्री बने फिर पार्टी के प्रमुख भी चुने गए।

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