(आशु सक्सेना) गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूबे को बुलेट ट्रेन के बाद एक और महत्वाकांक्षी परियोजना सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण करके बतौर तोहफा दिया है। अब सवाल यह है कि पीएम मोदी अपने गृह राज्य गुजरात में भाजपा के लगातार गिरते ग्राफ को रोकने में इस बार सफल होते हैं या फिर इस बार भी पार्टी को पिछले आंकडे़ से पीछे धकेलते है। दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव पीएम मोदी की लोकप्रियता का सही आंकलन होगा। पांच साल पहले सूबे के आम चुनाव के दौरान अचानक यह चर्चा शुरू हुर्ह कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
मोदी को इस चर्चा की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उन्हें 2012 के विधानसभा चुनाव के वक्त यह एहसास हो गया था कि वह अपने विकास माॅडल के बूते पर यह चुनाव नही जीत सकते हैं। लिहाजा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए कोई नया शगूफा छोड़ना ज़रूरी था। देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर चुनाव लड़कर मोदी उस चुनाव में पार्टी के पिछले आंकड़े को बरकरार नही रख सके थे। भले ही वह गिरावट मात्र दो सीट तक सीमित थी।
2002 में गोधरा कांड़ के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 127 सीट जीतीं थी।
अगला चुनाव 2007 में मोदी ने विकास के नाम पर लड़ा और इस चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा। उसे इस चुनाव में दस सीट का घाटा हुआ और वह 117 पर सिमट कर रह गई। पिछले चुनाव में भाजपा को 115 सीट से संतोष करना पड़ा था।
यूॅं तो सूबे में फिलहाल सत्ता परिवर्तन की कोई तस्वीर नज़र नही आ रही है। लेकिन एक सवाल ज़रूर कौंध रहा है कि क्या पीएम मोदी के नेतृत्व में इस बार भाजपा अपने पुराने रिकार्ड को तोड़कर पार्टी की सीटों में कमी नही आने देगी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) गुजरात के अस्तित्व में आने के समय से ही वहां जनाधार वाला संगठन है।
चुनावी अंकगणित में पहली बार 1975 के विधानसभा चुनाव में संघ ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की थी। इस चुनाव में संघ कीे राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंध को 18 सीट पर जीत मिली थी। हांलाकि 1980 के चुनाव में भाजपा के उदय के बाद वह घटकर 9 रह गईं थीं। 1962 से 1985 तक सूबे में कांग्रेस सत्ता पर काबिज रही। लेकिन 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के साथ चुनावी तालमेल करके भाजपा 67 सीट जीतने में कामयाब रही। तब से सूबे में भाजपा सत्ता पर काबिज है। भाजपा को 1995 में 121 सीट, 1998 में 117 सीट हासिल हुई थीं।
2002 में जब सूबे की सत्ता जाने का खतरा मंडरा रहा था, तब भाजपा ने सूबे की कमान नरेंद्र मोदी को सौंपी थी। मोेदी के नेतृत्व में 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छलांग लगाई और 127 सीट जीतने में कामयाब रही। लेकिन उसके बाद लगातार उसके ग्राफ में गिरावट दर्ज हो रही है।
इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी को अग्नि परीक्षा से गुजरना है। पिछला चुनाव उन्होंने देश के भावी प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर लड़ा था, फिर भी भाजपा की सीटों में गिरावट दर्ज हुई थी। जबकि सूबे का यह चुनाव पीएम मोदी के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। इस चुनाव में अगर भाजपा की एक सीट भी कम हुई तो माना जाएगा कि मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आ रही है। जिसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजमी है।
बहरहाल पीएम मोदी पिछले एक साल से गुजरात पर ध्यान केंद्रीत किये हुए हैं। इस दौरान मोदी कई नई परियोजनाओं की आधारशिला रख चुके है। हाल ही में उन्होंने जापान के पीएम अबे के साथ अहमदाबाद में रोड़ शो किया और अपनी सबसे महत्वपूर्ण बुलेट ट्रेन परियोजना की आधारशिला रखी। प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण भी विधानसभा चुनाव को देखते हुए किया है। इसका चुनाव में भाजपा को क्या फायदा होगा या नही, यह तो चुनाव नतीजों के बाद तय होगा। लेकिन फिलहाल यह कहा जा सकता है कि बहुत कठीन है डगर पनघट की।
सूबे के पिछले दो चुनाव मंे यह साफ हो चुका है कि विकास के नाम पर भाजपा की जीत संभव नही है। लिहाजा इस बार सूबे में भाजपा की जीत तभी संभव है, जब लोगों ने पीएम मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर सफल माना होगा। पीएम मोदी के तीन साल के कार्यकाल में अभी तक कोई ऐसी उपलब्धि नही गिनाई जा सकती, जिसके आधार पर सूबे के लोग अपनी पहली पसंद भाजपा को माने। जहां तक विकास की बात है, तो यह सूबा कई मामलों में अन्य राज्यों से काफी पीछे है। पाटीदार आंदोलन समेत कइ्र अन्य स्थानीय मुद्दे जहां भाजपा के लिए सिर दर्द बने हुए हैं।
वहीं मंहगाई ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। इन तीन साल में बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हुइ्र्र है। सवाल यह है कि बुलेट ट्रेन और सरदार मान सरोवर बांध का लोकार्पण क्या पीएम मोदी को सूबे के चुनाव में पहले से बेहतर जीत दिलाने में कारगर साबित होंगे या फिर इस बार भी भाजपा के ग्राफ में गिरावट ही दर्ज होगी।
सूबे के लिए पीएम मोदी की बैचेनी को देखते हुए लगता है कि उन्हें कहीं ना कहीं यह आशंका है कि इस बार भी भाजपा को नुकसान हो सकता है। हांलाकि कमजोर विपक्ष उनको थोड़ा बल प्रदान कर रहा है। लेकिन अगर चुनाव में भाजपा 100 सीट के अंदर सिमट गई, तो इसका असर कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर भी पडे़गा। राजस्थान और मध्यप्रदेश भाजपा शासित है। इतना ही नही 2019 का लोकसभा चुनाव भी पीएम मोदी के लिए चुनौती बन जाएगा।