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नई दिल्ली (आशु सक्सेना): पिछले तीन दशक में जनतादल यानि समाजवादियों के बिखराव का सबसे ज़्यादा फायदा भाजपा को मिला है। भाजपा आज केंद्र की सत्ता पर पुर बहुमत से काबिज़ है। यहाँ तक भाजपा को पहुंचाने में समाजवादियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। 1977 में जनसंघ को साथ जोड़ना और फिर 1989 में भाजपा से चुनावी गठजोड़ समाजवादियों के लिए आज गले की फांस बन गई है। जनतादल की टूट से उभरी बिहार की कुछ पार्टियां जहाँ भाजपा के साथ खड़ी हैं, वहीं बिहार समेत अन्य कई राज्यों में जनतादल परिवार से अलग हुई पार्टियां भाजपा के लिए चुनौती भी है। बिहार में लालू यादव का राजद, यूपी में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, ओडिशा में बीजू जनता दल, हरियाणा में नेशनल लोकदल, कर्नाटक में देवेगौड़ा की जनता दल (सुक्युलर) भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़ी हैं। मोदी सरकार के बनने के बाद भाजपा को दिल्ली और बिहार में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। 2013 में नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद जेडीयू ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था। उस वक़्त बिहार के सीएम नीतीश कुमार और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के मतभेद चरम पर थे। नीतीश कुमार ने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए भेजी गई आर्थिक सहायता लेने से इंकार कर दिया था।

लेकिन आज बदले हुए राजनीतिक माहौल में नीतीश भाजपा को शिकस्त देने वाले महागठबंधन से नाता तोड़ कर अब मोदी के साथ खड़े हो गए हैं। जबकि शरद यादव उनके विपरीत बिहार में लालू और कांग्रेस के साथ बने रहने का फैसला किया है। जनता दल परिवार के इतिहास पर नजर डालें तो इनके नेता हमेशा जनता के बीच से उठे हैं, लेकिन निजी स्वार्थों के चलते या अहम की लड़ाई के नाम पर आपस में टूटते रहे हैं। लेकिन आज भी उनका अस्तित्व बरक़रार है और कई राज्यों में उनकी पकड़ मजबूत है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब विलुप्त होती कांग्रेस के प्रति वह थोड़े नरम हुए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में जनतादल से निकली क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती नज़र आ रही हैं। जनता दल का गठन जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर 11 अक्टूबर 1988 को उत्तर प्रदेश के राजपरिवार से आने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में हुआ था। 1987 में राजीव गाँधी सरकार से नाता तोड़ कर वीपी सिंह ने जनमोर्चा का गठन किया था और वह बोफोर्स का मुद्दा लेकर देश भर में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास कर रहे थे। 1989 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी एकता की सुगबुहाट होने लगी थी। तब कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के बागियों और विखरे हुए समाजवादियों के एक मंच पर आने से जनता दल नाम की नहीं पार्टी अस्तित्व में आई थी। जनता पार्टी, जनमोर्चा और लोकदल के दोनों गुटों को मिलाकर जनता दल का गठन किया गया था। उस वक्त जनता परिवार के बड़े चेहरों में उत्तर प्रदेश के वीपी सिंह, चंद्रशेखर के अलावा हरियाणा के देवीलाल भी थे। 1989 का लोकसभा चुनाव देश के इतिहास में अनोखा कहा जा सकता है। कांग्रेस को शिकस्त देने के किये जनतादल ने अपने स्वाभाविक सहयोगी वाममोर्चा के साथ-साथ भाजपा से भी चुनावी तालमेल किया। यह चुनावी गठबंधन भाजपा के लिए संजीवनी साबित हुआ, दो सांसदों वाली पार्टी अचानक 88 सांसदों वाली पार्टी बन गई। केंद में भाजपा और वाममोर्चा के समर्धन से जनतादल के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनी। राष्ट्रीय मोर्चा में जनतादल और तीन क्षेत्रीय पार्टी तेलगु देशम पार्टी, डीएमके और असम गण परिषद शामिल हुए। भाजपा के राममंदिर आंदोलन के चलते 11 महीने में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का पतन हो गया। उस वक़्त उत्तर प्रदेश और बिहार में जनतादल की सरकारें काबिज़ थी। उधर पिछले लोकसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित जीत के बाद भाजपा अपने जनाधार को बढ़ाने की जुगत में थी। पार्टी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या तक की राम रथ यात्रा पर सवार थे। देश में साम्प्र्दायिक माहौल अपने चरम पर था। तभी बिहार के समस्तीपुर में सीएम लालू प्रसाद यादव ने 23 अक्टूबर 1990 को आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। नतीज़तन भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद केंद्र की वीपी सिंह सरकार का 7 नवम्बर 1990 को पतन हो गया। उसके बाद देश की राजनीति ने एक नई दिशा की और रुख किया। जहाँ भाजपा ने अपना जनाधार बढ़ाना शुरू किया, वहीं कांग्रेस के विरोध से अस्तित्व में आये जनतादल में समाजवादियों के बिखराव का सिलसिला शुरू हुआ। 1990 में 11 महीने बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई। तब जनतादल पहली बार टूटा था। चंद्रशेखर ने जनता दल से अलग हो कर 54 सांसदों के समर्थन से समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया और कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। सात महीने बाद चंद्रशेखर की भी सरकार गिर गई। जनता दल में पहली टूट के बाद समाजवादी जनता पार्टी का जन्म हुआ था जिसमें चंद्रशेखर, चौधरी देवीलाल और मुलायम सिंह यादव शामिल थे। बहरहाल 1991 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हुए। इस चुनाव के दौरान राजीव गाँधी की हत्त्या हो गई। नतीज़तन कांग्रेस एक बार फिर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। जबकि भाजपा 120 सांसदों के बूते पर लोकसभा में नेता विपक्ष की हक़दार हो गई थी। वहीँ बिखराव के बावजूद जनतादल 60 सांसदों वाली तीसरी पार्टी थी। 1992 में जनतादल से अजित सिंह अलग हो गए और उन्होंने 20 सांसदों के बल पर जनतादल (अ) की स्थापना की। समाजवादियों की इस टूट के बाद लोकसभा में जनतादल की संख्या घट कर 40 रह गई। जनतादल में अगला बिखराव 1994 में तब हुआ, जब संसदीय दल के चुनाव में शरद यादव और जॉर्ज फर्नांडीज आमने सामने आ गए। शरद यादव ने जॉर्ज फर्नांडीज को हरा कर संसदीय दल की कुर्सी हथिया ली। लेकिन संसदीय दल में बिखराव को नहीं रोक सके। जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में 14 सांसदों पार्टी से बगाबत कर दी। उस वक़्त जनतादल के इस बागी गुट को जी 14 का नाम दिया गया था। बाद में इस गुट ने समता पार्टी को जन्म दिया। जनतादल मूल रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, ओडिशा और कर्नाटक में सीमित था। जो अब इन राज्यों में क्षेत्रीय दल में तब्दील हो चुका है। बहरहाल 1996 के लोकसभा चुनाव में जनतादल एकबार फिर 46 सांसदों वाला तीसरा दल बना। जबकि भाजपा पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और उसने 13 दिन की सत्ता का सुख भी भोगा। वहीं जनतादल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार बनी। इस सरकार के दौरान जनता दल खंड खंड विखंड हो गया और जनतादल से अलग होने वाला गुट भाजपा का दामन थामता गया। 1997 में केंद्र की सत्ता पर काबिज़ जनतादल में टूट तब हुई, जब चारा घोटाले में फंसने के बाद भी लालू प्रसाद यादव ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने से इंकार कर दिया। नाटकीय घटना क्रम में उन्होंने इस पद के लिए शरद यादव को चुनौती दी। पार्टी में खुद को अल्पमत में देखते हुए उन्होंने रातों-रात जनता दल को तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का गठन कर लिया। अबतक जनतादल परिवार अलग अलग राज्यों में क्षेत्रीय दल में तब्दील हो चुका था। हरियाणा में चौधरी देवीलाल ने 1996 में सजपा से अलग होकर हरियाणा लोकदल (राष्ट्रीय) की स्थापना की। जिसका बाद में नाम बदलकर इंडियन नेशनल लोकदल हो गया। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने 1992 में सजपा से अलग से अलग होकर समाजवादी पार्टी बना ली थी। उत्तर प्रदेश में अजित सिंह भी अपना अलग अस्तित्व बना चुके थे। आज उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के नाम से जानी जाती है। 1997 में उड़ीसा (ओडिशा) में नवीन पटनायक ने जनता परिवार से नाता तोड़ लिया और बीजू जनता दल का गठन कर वहां की सत्ता पर आज तक काबिज हैं। 1999 में दक्षिण भारत में जनता परिवार में टूट हुई। कर्नाटक में कद्दावर नेता रामकृष्ण हेगड़े ने लोकशक्ति पार्टी की बनाई, जिसका बाद में जनता दल यूनाइटेड में विलय हुआ। 1999 में जनतादल का अस्तित्व उस वक़्त ख़त्म हो गया, शरद यादव ने जनता दल से अलग हो कर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का गठन किया और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने जनता दल (सुक्युलर) का गठन किया। पार्टी का यह विघटन धर्म निरपेक्ष और सम्प्रदायकता के सिद्धांत पर हुआ था। उस वक़्त शरद यादव ने एनडीए का साथ चुना था। उसके बाद रामविलास पासवान ने 2000 में बिहार में जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया। जनता परिवार के रामविलास पासवान और नीतीश कुमार को छोड़कर बाकी सभी नेता भाजपा के खिलाफ लामबंद हैं।

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