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मुंबई: बैंकों की उन्हें सीबीआई, सीवीसी जैसी एजेंसियों की निगरानी से छूट दिये जाने की मांग के बीच रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि पूरी तरह आंख मूंदकर तो राहत नहीं दी जा सकती लेकिन यदि यह महसूस किया गया कि कर्ज देने का निर्णय उचित जांच पड़ताल के बाद किया गया है तो ऐसे मामले में जरूर संरक्षण दिया जाएगा। राजन ने यहां चुनींदा संवाददाताओं के समूह से बातचीत में कहा, मेरा मानना है कि बैंक अधिकारियों ने इस बारे में अपनी चिंता जताई है कि पूरी निष्ठा के साथ जो काम किया गया ऐसे मामलों में उन्हें कारवाई के लिये जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये। उन्होंने कहा, मैं समझता हूं कि हर किसी को उस जरूरत को समझना चाहिये जहां उन्होंने उचित जांच पड़ताल, स्थिति के अनुसार दिमाग का सही इस्तेमाल करते हुये कदम उठाया है। उन्हें कदम उठाने की कुछ आजादी दी जानी चाहिये, क्योंकि इसके बिना हम बैंकों के खातों को साफ सुथरा नहीं कर पायेंगे। हम उन परियोजनाओं को फिर से पटरी पर नहीं ला पायेंगे जिनकी अर्थव्यवस्था को जरूरत है। बैंक बोर्ड ब्यूरो की हाल में हुई बैठक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कर्ज के ऐसे फैसलों में जिनमें सामूहिक तौर पर निर्णय किया गया, केन्द्रीय जांच ब्यूरो, केन्द्रीय सतर्कता आयोग जैसी एजेंसियों की कड़ी नजर से निजात दिये जाने की मांग की।

राजन ने हालांकि यह माना कि किसी भी मामले में आंख मूंदकर पूरी तरह छूट नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि आप जो भी निर्णय करते हैं चाहे वो कैसा भी है, आपको जिम्मेदारी से पूरी तरह छूट दे दी जाये। मेरा मानना है कि कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिये लेकिन यह जिम्मेदारी सही निर्णय लेने के लिये उचित जांच परख करने की होनी चाहिये। राजन ने कहा कि किसी खास परिस्थिति में किये गये निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा, जब तक कोई व्यक्ति सही निर्णय लेने के लिये प्रयास करता है, उन्हें उस निर्णय की परिणिति के आधार पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये। आप जानते हैं कि कई बार अनिश्चितता की वजह से यह संभावना बन जाती है कि वह फैसला गलत हो जाता है। गवर्नर ने कहा, मेरे विचार से यह जो नया समूह बना है जो कि निर्णय लेने की प्रक्रिया का परीक्षण करने के लिये बनाया गया है, बैंकों को इस मामले में कुछ राहत देगा। इसके आगे मैं यह नहीं समझता हूं कि कोई भी आंख मूंदकर गारंटी दे सकता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में उचित संतुलन की जरूरत है। वित्तीय समावेश के बारे में गवर्नर ने कहा कि हर गांव में बैंक की शाखा नहीं खोली जा सकती है क्योंकि यह काफी खर्चीला होगा। इस मामले में एक संभावना मोबाइल शाखा है और कुछ बैंक एसी शाखायें शुरू कर रहे हैं जो कि एक गांव से दूसरे गाव घूमेगी और किसी एक गांव में तय समय पर उपलब्ध होगी। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ऐसी शाखाओं के बारे में एक परिभाषा की तलाश में है कि इन्हें मिनी शाखा, सूक्ष्म शाखा और मोबाइल शाखा क्या नाम दिया जा सकता है। उन्होंने नये संस्थानों और नई प्रौद्योगिकी के साथ काम करने की जरूरत भी बताई।

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