बेंगलुरू: मौद्रिक नीति की आलोचना करने वालों को जवाब देते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को कहा कि कमजोर ऋण वृद्धि का कारण ऊंची ब्याज दर नहीं बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर फंसे कर्ज का दबाव होना है। राजन ने रिजर्व बैंक के अधिशेष कोष का उपयोग सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिये करने के सुझाव को भी खारिज कर दिया। उद्योग मंडल एसोचैम द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘रिजोल्विंग स्ट्रेस इन द बैंकिंग सिस्टम’ पर अपने संबोधन में रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा, ‘मैं यह दलील दूंगा कि ऋण वृद्धि में नरमी का बड़ा कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर दबाव है न कि उच्च ब्याज दर।’ साथ ही उन्होंने बैंकों के लिये उद्योग को कर्ज देने की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा, ‘हमें वास्तव में इस बात की जरूरत है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक फिर से उद्योग एवं बुनियादी ढांचे को कर्ज दे अन्यथा ऋण तथा वृद्धि प्रभावित होगी।’ राजन ने जोर देकर कहा, ‘यह ब्याज दर का स्तर नहीं है जो समस्या है। बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बही-खाते में जो पहले से ऋण हैं, वे दबाव में हैं और इसीलिए वे उन क्षेत्रों को कर्ज देने को इच्छुक नहीं हैं जहां उन्होंने पहले से अधिक रिण दे रखा है।’
ऋण वृद्धि 2015-16 में करीब 8.6 प्रतिशत रही जो करीब छह दशक का न्यूनतम स्तर है। वहां फंसा कर्ज पिछले वित्त वर्ष में 13 प्रतिशत को पार कर 8,000 अरब रूपये पहुंच गया। पिछले महीने भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने रिजर्व बैंक के गवर्नर की आलोचना करते हुए उन्हें पद से हटाये जाने की मांग की। उन्होंने बेरोजगारी तथा औद्योगिक गतिविधियों के ठप होने के लिये राजन की ऊंची ब्याज दर रखने की नीति को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने यह भी कहा कि राजन ‘मानसिक रूप से पूरी तरह भारतीय’ नहीं हैं। भाजपा नेता स्वामी ने कहा, ‘मेरी राय में रिजर्व बैंक के गवर्नर देश के लिये उपयुक्त नहीं हैं। उन्होंने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये ब्याज दरें बढ़ायी जिससे देश को नुकसान हुआ।’ राजन ने 4 सितंबर 2013 को गवर्नर का कार्यभार संभाला और उन्होंने धीरे-धीरे नीतिगत दर को 7.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 8.0 प्रतिशत किया और पूरे वर्ष 2014 में इसे बरकरार रखा। उन्होंने वित्त मंत्रालय के वृद्धि को गति देने के लिये नीतिगत दर में कटौती के दबाव तथा उद्योग की मांग के बावजूद मुद्रास्फीति चिंता का हवाला देते हुए दरों को ऊंचा बनाये रखा। बाद में उन्होंने जनवरी 2015 से नीतिगत दरों में कटौती शुरू की और अब तक इसमें 1.50 प्रतिशत की कमी कर चुके हैं। गवर्नर राजन ने आज सुझाव दिया कि अगर बैंकों के बही-खाते दुरूस्त होते हैं तो इससे ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बन सकती है। राजन ने रिजर्व बैंक के अधिशेष कोष का उपयोग सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के सुझाव को भी खारिज कर दिया। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के इस प्रस्ताव के बारे में उन्होंने कहा कि यह पारदर्शी विचार नहीं है और इससे हितों का टकराव हो सकता है।