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नई दिल्ली: कारोबार में मंदी के चलते उद्योग जगत निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए तैयार नहीं है। एसोचैम का कहना है कि कारोबार में मंदी है, लिहाजा आरक्षण के बारे में सोचना भी मुमकिन नहीं है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने इसी हफ़्ते प्राइवेट सेक्टर में पिछड़ें वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की है। भारतीय उद्योगों के सबसे बड़े संगठन एसोचैम का कहना है, वो नया रोज़गार देने की हालत में नहीं है। इसलिए 27% रिजर्वेशन की बात ही सोचना बेकार है। एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डी एस रावत ने न्यूज़ चैनल से कहा, "इंडस्ट्री के लिए मौजूदा आर्थिक परिस्थिति में आरक्षण देने के बारे में सोचना भी संभव नहीं है। हम अभी रोज़गार पैदा करने की स्थिति में नहीं हैं।'' सोमवार को पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी है जिसमें निजी क्षेत्र में भी आरक्षण के दायरे को फैलाने का सुझाव है। आयोग ने 27 फ़ीसदी आरक्षण की सिफ़ारिश की है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य शकील अंसारी ने कहा, "हमने कहा है कि बजट सत्र के दौरान सरकार को एक बिल लाना चाहिये जिसमें प्राइवेट सेक्टेर में ओबीसी समुदाय के लिए 27 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव शामिल हो। हम चाहते हैं कि सरकार इस प्रस्ताव पर सभी पार्टियों से बात करे।'' लेकिन उद्योगों का कड़ा रुख़ देखकर लगता नहीं कि आरक्षण के किसी प्रस्ताव के लिए वो तैयार होंगे। आयोग ने भी ये हक़ीक़त मानी है कि अब तक सरकारी क्षेत्र में आरक्षण को ठीक से लागू नहीं किया जा सका है। भारत में आरक्षण का मामला सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक भी है। आरक्षण का खुल कर कोई विरोध नहीं करता, लेकिन आरक्षण को लागू करने को भी कोई तैयार नहीं होता। डाइवर्सिटी के सिद्धांत की भी बात की जाती है, लेकिन कुल मिलाकर तस्वीर अभी यही है कि न उद्योग जगत इसके लिए तैयार है और ना ही सरकारें इस पर इतना ज़ोर देती दिखाई पड़ती हैं।

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