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नई दिल्ली: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन यानि एससीओ 23वें समिट में शिरकत करने पाकिस्तान पहुंचे हैं। इस्लामाबाद में 15 और 16 अक्टूबर को यह समिट हो रही है। इस बहुपक्षीय बैठक पर जितनी नज़र है, उससे ज़्यादा चर्चा इस बात पर है कि क्या इस समिट के बहाने भारत और पाकिस्तान के बीच की बर्फ कुछ पिघलेगी? इस चर्चा का आधार बस इतना है कि 2015 के बाद पहली बार भारत के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान का दौरा किया है। हालांकि, एस जयशंकर साफ कर चुके हैं कि वो एससीओ की बैठक के अलावा पाकिस्तान में किसी और एजेंडे के लिए तैयार नहीं हैं। अब पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज़ ज़ाहरा बलोच ने भी कहा है कि इस बहुपक्षीय बैठक में किसी द्विपक्षीय बातचीत की गुंजाइश नहीं है।

दरअसल, भारत से बातचीत शुरू करने को लेकर पाकिस्तान फिलहाल कभी हां और कभी ना की स्थिति में है। वहां के विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ बैठक के दौरान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे।

यह साफ नहीं किया गया कि इसमें भारतीय विदेश मंत्री के साथ द्विपक्षीय बैठक भी शामिल है या नहीं।  आइए समझते हैं कि आखिर एस जयशंकर के दौरे से पाकिस्तान क्या चाहता है? एससीओ समिट की मेजबानी के पीछे उसका असली मकसद क्या है:-

दुनिया के सामने अपनी नाकाम इमेज सुधारने की कोशिश

देखा जाए तो, शंघाई सहयोग संगठन की बैठक पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है। ये ऐसे समय हो रही है, जब पाकिस्तान की आर्थिक तंगी को लेकर दुनिया भर में उसकी खिल्ली उड़ाई जा रही है। एससीओ समिट को लेकर तैयारी ऐसी है, मानो इस्लामाबाद में लॉकडाउन लग गया हो। 3 दिन तक सरकारी छुट्टी घोषित की गई है। सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। शरीफ सरकार ने इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए इंसाफ़ के प्रदर्शनों को रोकने के नाम पर ये इंतज़ाम किया है। जाहिर है पाकिस्तान इस बार एससीओ की सफल बैठक कर दुनिया को ये मैसेज देना चाहता है कि वह नाकाम राष्ट्र नहीं है। इस मैसेज का दूसरा पहलू ये है कि पाकिस्तान अब पड़ोसियों से संबंध सुधारने की बात कर रहा है।

एससीओ समिट के जरिए भारत से क्या चाहता है पाकिस्तान?

पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी पीएमएल-एन के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ कहते रहे हैं कि वो हमेशा से भारत से अच्छे रिश्चे चाहते हैं। नवाज शरीफ उम्मीद जता रहे हैं कि जल्द ही प्रधानमंत्री मोदी से उनकी मुलाकात होगी। एससीओ समिट के प्लेटफॉर्म से पाकिस्तान पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते सुधारने की उम्मीद कर रहा है। साथ ही वह दुनिया से आर्थिक सहयोग भी पाने की उम्मीद कर रहा है।

वहीं, भारत जैसे देश को एनर्जी की काफी जरूरत है। सेंट्रल एशिया के देश एनर्जी के अच्छे सोर्स हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि एससीओ के प्रस्ताव में सुरक्षा, व्यापार और आतंकवाद के मुद्दे पर क्या स्टैंड रखा जाएगा।

कश्मीर का नाम लेने से बाज नहीं आ रहा पाकिस्तान

मुश्किल ये है कि भारत से दोस्ती की चाहत के बावजूद पाकिस्तान दुश्मनी की सियासत भी कर रहा है। वह कश्मीर का नाम लेने से बाज नहीं आ रहा। इस्लामी मुल्कों के संगठन से भी उसने कश्मीर को लेकर प्रस्ताव पास कराया था। हालांकि, उसकी इस कोशिश को पहले से कम समर्थन मिलता दिख रहा है।

तुर्की (तुर्किये) जैसे देश पहले कश्मीर का नाम लेते थे, लेकिन अब वह ख़ामोश है। संयुक्त राष्ट्र में तुर्की ने कश्मीर के ज़िक्र से इस बार परहेज किया था।

आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान ने नहीं बदला रवैया

अब भी पाकिस्तान में आतंकी संगठन और उनके नेता बेखौफ घूम रहे हैं। कश्मीर में आतंकी घुसपैठ का सिलसिला अगर रुका नहीं है, तो इसकी वजह पाकिस्तान का रवैया भी है। भारत यही कहता रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देने से बाज़ आए, तभी उससे बातचीत शुरू होगी। उसके पहले पाकिस्तान को इसकी उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

जयशंकर ने पाकिस्तान दौरे को लेकर क्या कहा था?

जयशंकर ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान दौरे को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था, "मैं वहां भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा करने नहीं जा रहा हूं। मैं वहां एससीओ का एक अच्छा सदस्य बनने जा रहा हूं। आप जानते हैं, चूंकि मैं एक विनम्र और सभ्य व्यक्ति हूं, इसलिए मैं उसी के अनुसार व्यवहार करूंगा।"

एससीओ क्या है?

एससीओ मध्य एशिया में शांति और सभी देशों के बीच सहयोग बनाए रखने के लिए बनाया गया संगठन है। पाकिस्तान, चीन, रूस, भारत, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान भी इसके मेंबर हैं।

2017 में एससीओ के मेंबर बने भारत और पाकिस्तान

भारत और पाकिस्तान साल 2017 में एससीओ में शामिल हुए थे। ईरान ने साल 2023 में इसकी मेंबरशिप ली। इस समय एससीओ देशों में पूरी दुनिया की लगभग 40% आबादी रहती है। पूरी दुनिया की जीडीपी में एससीओ देशों की 20% हिस्सेदारी है।

एससीओ में कौन-कौन देश ले रहे हिस्सा?

सीएचजी शंघाई सहयोग संगठन यानि एससीओ का दूसरा सर्वोच्च निकाय है। इस समिट में चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग, रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तीन हिस्सा ले रहे हैं। इसके साथ ही बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के उनके समकक्ष भी समिट में शामिल होंगे। ऑब्जर्वर के तौर पर मंगोलिया के प्रधानमंत्री और तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्री मौजूद रहेंगे। अफगानिस्तान सीएचजी की बैठक में भाग नहीं लेगा, क्योंकि बीजिंग स्थित एससीओ सचिवालय ने अफगानिस्तान को इसमें शामिल होने के लिए न्योता नहीं भेजा है।

एससीओ में अब तक क्या हुआ?

पाकिस्तान में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) समिट का 15 अक्टूबर को पहला दिन है। विदेश मंत्री एस जयशंकर मंगलवार को ही इस्लामाबाद पहुंचे। एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया गया। इसके बाद पीएम शहबाज शरीफ ने एससीओ नेताओं के लिए डिनर रखा। डिनर के दौरान पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मुलाकात हुई। पाकिस्तानी पीएम ने आगे आकर हैंड शेक किया। हालांकि, दोनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार मेहर तरार कहती हैं, "एससीओ की ये बैठक पाकिस्तान के लिए काफी अहमियत रखती है। अभी जो पाकिस्तान के मौजूदा हालात हैं, उसे देखते हुए यहां की सरकार को एससीओ समिट से काफी कुछ उम्मीदें हैं। अभी दो जंग की वजह से सप्लाई चेन पर असर पड़ा है। विकासशील देशों में दिक्कतें बढ़ी हैं। ऐसे में चीन, रूस और भारत जैसे देश एक फोरम पर बात करने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं। ये सभी मुल्क आर्थिक, व्यापारिक और सुरक्षा के मसलों पर बात करेंगे। जाहिर तौर पर पाकिस्तान को अपनी समस्याओं के समाधान की उम्मीद तो रहेगी ही।"

पूर्व राजनयिक स्कंद तायल कहते हैं, "बेशक एससीओ एक बहुपक्षीय मंच है। यहां द्विपक्षीय मसलों पर बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं है। जहां तक एस जयशंकर की बात है, तो उन्होंने पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ के डिनर में हिस्सा लिया है। जाहिर तौर पर इस समिट से पाकिस्तान अपनी इमेज को कुछ हद तक सुधार सकता है।"

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