ताज़ा खबरें
कैशकांड पर विनोद तावड़े ने राहुल-खड़गे-श्रीनेत को भेजा कानूनी नोटिस

भुवनेश्वर: शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने श्री जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज कराया है। राजा दिब्यसिंह देव को भगवान जगन्नाथ का पहला सेवक माना जाता है। 12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है। मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर चर्चा तब शुरू हुई जब उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों को भगवान की पूजा अर्चना करने दें, भले ही वे किसी भी धर्म के हों।

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी शनिवार को विरोध जताते हुए कहा कि वह इस बाबत उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी ताकि न्यायालय अपने प्रस्ताव पर फिर से विचार करे। गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक विज्ञप्ति में कहा कि सनातन धर्म की सदियों पुरानी परंपरा का उल्लंघन कर श्री मंदिर में सभी को प्रवेश की अनुमति देना हमें स्वीकार्य नहीं है। गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री जगन्नाथ मंदिर में पंडितों की शीर्ष संस्था मुक्ति मंडप के प्रमुख होते हैं।

गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने कहा कि वार्षिक रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को मंदिर से बाहर ले जाया जाता है ताकि वे विभिन्न धर्मों के भक्तों को आशीर्वाद दे सकें और ‘स्नान उत्सव’ के दौरान भी लाखों लोग उन्हें देखते हैं। गजपति राजा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रस्ताव एक अंतरिम आदेश की तरह है। उन्होंने कहा कि मंदिर प्रबंध समिति रथ यात्रा के बाद इस मुद्दे पर चर्चा करेगी और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन उसी अनुरूप कदम उठाएगा।

विहिप की ओड़िशा इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष बद्रीनाथ पटनायक ने मीडिया को बताया कि मंदिर को लेकर कोई भी कदम उठाने से पहले पुरी के गजपति राजा दिव्यसिंह देब और पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती से विचार - विमर्श किया जाना चाहिए। 12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है। इसे श्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। विहिप नेता ने श्री जगन्नाथ मंदिर में वंशानुगत सेवादार प्रथा को खत्म करने के शीर्ष न्यायालय के प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया।

पटनायक ने कहा, ‘‘राज्य सरकार से अपील की जाएगी कि वह इस मामले में अपना मौजूदा रुख कायम रखे और यदि वह ऐसा करने में नाकाम रही तो हम उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।’’ उच्चतम न्यायालय ने जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया था कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों , चाहे वे किसी भी धर्म-आस्था को मानने वाले क्यों न हों, को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दे। हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि गैर-हिंदू दर्शनाभिलाषियों को ड्रेस कोड का पालन करना होगा और एक उचित घोषणा-पत्र देना होगा।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख