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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि संसद के बनाए कानून के अलावा राज्यों या केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने बिहार सरकार के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अत्यंत पिछड़ी जाति तांती-तंतवा को अनुसूचित जाति की सूची में पान/सवासी जाति के साथ शामिल किया जाए। अदालत ने प्रस्ताव को अवैध और गलत बताया। इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा के पीठ ने की।

अदालत ने कहा,''वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ पाई गई है। राज्य को इस शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है।'' पीठ ने कहा कि किसी जाति, नस्ल या जनजाति को शामिल करने या बाहर करने के लिए संसद से बनाए गए कानून के तहत ही काम करना होगा।

बिहार सरकार ने एक जुलाई 2015 को अनुसूचित जाति सूची के लाभ को तांती-तंतवा समुदाय तक पहुंचाने के लिए अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) की सूची में 'तांती-तंतवा' को अनुसूचित जाति की सूची में दूसरे समुदाय यानि 'पान, सवासी, पनर' के साथ विलय करने की अधिसूचना जारी की थी। बिहार सरकार के इस प्रस्ताव को डॉक्टर भीम राव आंबेडकर विचार मंच बिहार और आशीष रजक ने पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। वहां उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि वह एससी कोटे के उन पदों को वापस करे, जिन पर तांती-तांतवा समुदाय की नियुक्तियां की गई हैं। उन्हें अत्यंत पिछड़ा वर्ग में वापस किया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश में कौन मांग रहा है अनुसूचित जाति का दर्जा

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग करने वाली जातियों के लिए झटका है। इस तरह की मांग देश के कई राज्यों में की जा रही है। आरक्षण के लाभ को देखते हुए कई जातियां खुद को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग कर रही हैं। इसी तरह की मांग केवट और मल्लाह समेत 17 जातियां पिछले कई दशक से उत्तर प्रदेश में कर रही हैं। इनमें मझवार और भर जाति की परिभाषा में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ जातियां शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बीजेपी की सरकारों ने उनकी मांगों का पूरा करने की कोशिश भी कीं, लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकी हैं। इस तरह के प्रस्ताव को दो बार केंद्र सरकार भी नकार चुकी है।

उत्तर प्रदेश में 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग पहले से कर रहे हैं।

दरअसल संविधान का अनुच्छेद 341 साफ-साफ कहता है कि संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 और यथा संशोधित 1976 के तहत जारी हो चुकी अधिसूचना में कोई नाम जोड़ना या हटाना ही नहीं, उसकी किसी तरह की व्याख्या भी सिर्फ संसद ही कर सकती है। अनुच्छेद-341 के तहत अधिसचना राष्ट्रपति जारी करते हैं। एक बार अधिसूचना जारी हो जाने के बाद इसमें किसी तरह का संशोधन या स्पष्टीकरण का अधिकार राष्ट्रपति के पास भी नहीं है।

उत्तर प्रदेश सरकार की कोशिशें

उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने दिसंबर 2016 में केवट और मल्लाह की 17 उपजातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उसकी इस पहल को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक दिया था। वहीं बीजेपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दिसंबर 2021 में भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त को पत्र लिखा– जिसमें संजय निषाद का एक ज्ञापन संलग्न था, जिसमें एससी श्रेणी के तहत समुदाय को आरक्षण के मामले पर मार्गदर्शन मांगा गया था। इसके बाद भी यह मुद्दा वहीं का वहीं है।

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