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(आशु सक्सेना): कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीज़ों के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर बहस तेज हो गयी है। चुनावी पंड़ितों ने अपनी अपनी भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी है। इन पंडितों ने अपने तर्को से यह भी तय करना शुरू कर दिया है कि अंत में पीएम मोदी ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश 'भारत' की जनता की पहली पसंद होंगे। कर्नाटक चुनाव नतीज़ों के साथ घोषित उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के नतीज़ों का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि काशी, मथुरा और अयोध्या वाले प्रदेश में पीएम मोदी ही अभी तक पहली पसंद है। लिहाजा लोकसभा की 80 सीटों वाले सूबे की जीत से पीएम मोदी का सत्ता पर काबिज़ होना तय है।

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने कर्नाटक की हार के बाद अपने बचाव में यह जबावी रणनीति अख्तियार की है कि उत्तर प्रदेश में पीएम मोदी करिश्मा काम कर रहा है और अगले साल यानि 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले ‘‘अयोध्या‘‘ में पीएम मोदी ‘‘राम मंदिर‘‘ का उद्घाटन करेंगेे और चुनाव से पहले पूरा देश ‘राममय‘ हो जाएगा और "एक बार फिर से लाओ" के नारे के साथ चुनावी समर में उतरा जाएगा।

चुनावी रणनीति के लिहाज से आरएसएस और सत्तारूढ़ भाजपा की यह रणनीति ठीक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या देश की ज़मीन पर वहीं मानसिकता काम कर रही है, जो 2014 में कर रही थी। दक्षिण के राज्य कर्नाटक के चुनाव नतीज़े यह साबित कर रहे है कि धार्मिक भावनाओं और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से अब दक्षिण में पीएम मोदी को वोट नहीं मिलेगा। ध्यान रहे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सूबे की 28 में 25 सीट पर जीत दर्ज़ की थी। अब 2024 भाजपा इस आंकड़े को बरकरार रख सकेगी, इस पर सवालिया निशान लग गया है।

पिछले एक दशक से भाजपा अपने स्टार प्रचारक पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने 2013 में नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया था। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तभी से ‘हवाई या़त्रा‘ की विशेष सुविधा के साथ ‘चुनाव प्रचार अभियान‘ शुरू किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 283 सीटों पर जीत का परचम फहराया। केंद्र में भाजपा नीत एनडीए सरकार का गठन हुआ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना पहला कार्यकाल शुरू किया।

पीएम मोदी ने 9 साल के कार्यकाल में अपना पूरा ध्यान देश की चुनावी राजनीति पर ही केंद्रित किया हुआ है। पीएम मोदी सूबों और स्थनीय निकाय चुनाव तक अपनी भागीदारी दर्ज़ करते हैं। हाल ही में संपन्न कर्नाटक विधान सभा चुनाव में पीएम मोदी जनवरी 2023 से लेकर प्रचार थमने तक आठ बार कर्नाटक पधारे। पीएम मोदी की 42 रैलियाँ और 28 रोड शो पर कर्नाटक सरकार ने 40 करोड़ रूपये से ऊपर बहा दिये। नतीजा क्या निकला? सबके सामने है।

यहां यह याद दिलाना अपना फर्ज़ समझता हूं कि भाजपा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में भी पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा था, पिछली बार भी पीएम मोदी भाजपा को निर्वाचित सरकार देने में सफल नहीं हुए थे। भाजपा बाद में ‘‘ऑपरेशन कमल‘‘ के जरिय सत्ता पर काबिज़ हुई थी और अब भ्रष्टाचार, मंहगाई और आम आदमी की तकनीफों की अनदेखी की भेंट चढ़ गयी। इस चुनाव में पीएम मोदी ने चुनावी शतरंज की विसात पर ‘‘धार्मिक भावनाओं से खेलने‘‘ और ‘‘सांप्रदायिक धु्रवीकरण‘‘ की हर चाल बखु़बी चली। लेकिन मतदाताओं ने उनकी हर चाल का सोच समझ कर जबाब दिया और ‘‘सांप्रदायिक धु्रवीकरण‘‘ नहीं होने दिया। हिंदु और मुसलिम मतदाताओं ने एकजुट होकर भाजपा को शिकस्त दी है। मतदाताओं ने सूबे के सबसे मजबूत विपक्ष ‘कांग्रेस‘ के पक्ष में एकजुट होकर मतदान किया। भारतीय कैरेंसी पर लक्ष्मी जी की तस्वीर की मांग करने वाली सबसे नई राष्ट्रीय पार्टी यानि "आम आदमी पाटी" ने सूबे की 213 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसके सभी प्रत्याशियों की ज़मानत ज़प्त हो गयी। बसपा के 137 प्रत्याशियों में एक भी नहीं जीत सका। इनके अलावा औबेसी समेत अन्य किसी पार्टी को मतदाताओं ने कोई तरजीह नहीं दी।

कर्नाटक का यह वोर्टिग ट्रैंड अगर उत्तर भारत में चल गया, तो 2024 में केंद्र की सत्ता से भाजपा को अपनी बेदखली को रोकने के लिए काफी मश्क्कत करनी होगी। सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर बैतरणी पार होना अब संभव नहीं है। कर्नाटक ने साबित कर दिया कि चुनाव प्रचार की पीएम मोदी की शैली काफी नहीं है। रंग.बिरंगे मुकुट में अवतरित प्रधान सेवक को शायद इनके भक्त पसंद करें। मगर, मतदाताओं को ‘‘बहारों फूल बरसाओ‘‘ इवेंट अब उबाऊ लगने लगे हैं।

लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी अब साल के अंत में होने वाले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और "मध्य प्रदेश" विधानसभा चुनावों के प्रचार में व्यस्त नज़र आने लगे हैं। इन तीनों राज्यों में 2018 के चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इन तीनों ही राज्यों की सत्ता को पीएम मोदी बचाने में कामयाब नहीं हुए थे। लेकिन देश में कोरोना महामारी के चलते लाॅक डाउन की घोषणा से ठीक एक दिन पहले ‘‘ऑपरेशन कमल‘‘ के जरिये निर्वाचित सरकार का पतन करके "मध्य प्रदेश" में भाजपा सत्ता पर काबिज़ हुई थी।

पीएम मोदी कर्नाटक चुनाव के नतीज़ों से पहले ही साल के अंत में होने वाले राज्यों में चुनाव प्रचार अभियान का श्रीगणेश कर चुके है। इस महीने 10 मई को, जिस दिन कर्नाटक में मतदान हो रहा था, उस दिन प्रधान सेवक (पीएम मोदी) चुनावी राज्य राजस्थान को विकास योजनाओं की सौगात दे रहे थे। हांलांकि यह इवेंट कर्नाटक चुनाव कार्यक्रम को देखकर ही रखा गया था। लेकिन इस रणनीति का भी कर्नाटक चुनाव नतीज़ों पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

मैं पहले भी यह कहता रहा हूॅं कि ‘हिंदुस्तान‘ में भाजपा को हराना संभव नहीं है। लेकिन ‘भारत‘ में भाजपा को हराया जा सकता है। संभवतः ‘कर्नाटक‘ में ‘भारत‘ की लोकतांत्रिक तस्वीर उभरकर सामने आयी है। अगर यह तस्वीर उत्तर भारत में उभरी, तो 2024 में भाजपा, आरएसएस और खासकर पीएम मोदी के लिए सत्ता पर काबिज़ होने की डगर आसान नहीं होगी।

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