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(आशु सक्सेना): पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव नतीजे आ गये हैं। भाजपा इन राज्यों में जीत का जश्न मना रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में पार्टी मुख्यालय आयोजित एक समारोह में तीनों राज्यों में पार्टी की जीत के लिए कार्यकर्ताओं को बधाई दी। जबकि हकीकत इसके एकदम विपरित है।

भाजपा पूर्वोत्तर के दो राज्यों त्रिपुरा और नगालेंड में गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी और उसका पार्टी को फायदा भी हुआ। त्रिपुरा में भाजपा ने 55 और नगालेंड़ में 20 सीट पर चुनाव लड़ा था। इन दोनों राज्यों भाजपा ने सत्ता में वापसी ज़रूर की है। लेकिन त्रिपुरा में भाजपा गठबंधन को 11 सीटों का नुकसान हुआ है। वहीं मेघालय में भाजपा ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया था और पार्टी ने सूबे की 59 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। यहां उसे महज 2 सीटें मिलीं। जबकि पीएम मोदी ने मेघालय में ताबड़तोड़ रैलियों के अलावा रोड़ शो भी किया था। बावजूद इसके भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा। इससे यह संकेत साफ है कि किसी बड़े क्षेत्रीय दल के सहयोग के बिना भाजपा कोई चमत्कार नहीं कर सकती।

पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद अख़बारों और न्यूज़ चैनलों पर भाजपा के चमत्कार के गुणगान हो रहे है। राजनीतिक पंडित 2024 के लोकसभा चुनाव के परिपेक्ष्य में इसे भाजपा पक्ष में शुभ संकेत बता रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में लोकसभा की पांच सीट है। इनमें त्रिपुरा की दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। वहीं मेघालय की दो सीटों में एक कांग्रेस और एक एनपीपी के पास है। जबकि नगालेंड की एक सीट पर एनडीपीपी का कब्जा है। 2019 के चुनाव लोकसभा चुनाव नतीजों की रोशनी में अगर 2024 की संभावना तलाशें तो भाजपा को नुकसान होने की ज्यादा संभावना है। त्रिपुरा जहां भाजपा सत्ता पर काबिज थी और उसने वहां की दोनों लोकसभा सीटों पर कब्जा किया था। उस राज्य के विधानसभा चुनाव नतीजों से साफ है कि सूबे में जहां भाजपा का जनाधार घटा है, वहीं एक नये क्षेत्रीय दल टिपरा मोथा पार्टी ने अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज की है। इस पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में 13 सीटों पर जीत दर्ज की है। इससे साफ संकेत है कि यह पार्टी लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को चुनौती देगी। मेघालय और नगालेंड़ में भी क्षेत्रीय दल भाजपा के लिए इस बार भी चुनौती बने रहेंगे।

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीज़ों से साफ है कि इन राज्यों में भाजपा को लोकसभा चुनाव लाभ मिलने की संभावना काफी कम है। क्योंकि क्षेत्रीय दल भाजपा की ताकत बढ़ाने की अपेक्षा खुद को मजबूत करना चाहेंगे, ताकि केंद्र में सत्तारूढ़ दल पर दबाव बनाया जा सके। ऐसे में पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में सीटों में इजाफे की संभावना नहीं है।

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों ने भाजपा से नाता तोड़ा है। भाजपा के पुराने सहयोगियों में जनतादल यूनाईटेड (जदयू), शिवसेना, अकाली दल समेत अन्य कई घटक राजद से नाता तोड़ चुके हैं। ऐसे में भाजपा अपने पुराने बहुमत के आंकड़े को बरकरार रख सकेगी। इसकी संभावना कम ही नज़र आती है। हाल ही में हुए गुजरात, हिमाचल प्रदेश और तीन पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव नतीज़ों के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में लगातार गिरावट आयी है। गुजरात को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। हिमाचल में जहां भाजपा को सत्ता से बेदखल होना पड़ा, वहीं तीनों पूर्वोत्तर राज्यों में भी पीएम मोदी के ताबडतोड़ चुनाव प्रचार के बाबजूद भाजपा के जनाधार में गिरावट दर्ज हुई है।

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