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लखनऊ (आशु सक्सेना): उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाले चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने जातिगत समीकरण दुरुस्त करने की रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव में 73 सीटों पर कब्जे के बावजूद विधानसभा चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए जातिगत आधार वाले छोटे राजनितिक दलों को साथ जोड़ने की शुरुआत कर दी है। जिसके तहत आज (शनिवार) भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राजभरों की पार्टी सोहेल देव भारतीय समाज पार्टी के साथ यहाँ चुनावी गठबंधन की घोषणा की। विकास की बात करने वाली भाजपा ने 2017 की सबसे बड़ी लड़ाई जीतने के लिए पूरी ताकत बिहार की तरह यहाँ भी जातिगत समीकरण दुरुस्त करने पर लगा दी है। कुर्मी मतों में पेंठ रखने वाली अपना दल की स्वाभिमान रैली के बाद अब भाजपा पूर्वांचल में अति पिछड़ों और अति दलितों को अपने पाले में करने की जुगत में है। ये बात दीगर है कि अमित शाह की रैली के बाद अपना दल की आंतरिक कलह खुल कर सामने आ गई है। बहरहाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और भासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने यह एक संयुक्त रैली में की। अमित शाह ने दावा किया कि इन दोनों दलों का मेल पूर्वांचल में सपा-बसपा का पूरी तरह खात्मा कर देगा। मऊ के रेलवे मैदान में भासपा की ओर से आयोजित 'अति पिछड़ा-अति दलित भागीदारी जागरूकता महा पंचायत' में अमित शाह बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे।

राजभरों की पार्टी भासपा के साथ भाजपा ने अति दलित अति पिछड़ों की इस महापंचायत में महाराजा सोहेल देव को मानने वाले लोगों को अपनी तरफ गोलबन्द करने के लिहाजा से अमित शाह ने सोहेल देव का गुणगान गुजरात से जोड़ते हुए किया। उन्होंने कहा ''मैं सोमनाथ की धरती से आता हूं। सोमनाथ मंदिर को गजनी ने तोड़ा था। यहां बहराइच में भी एक सोमनाथ का मंदिर था जिसको तोड़ने के लिए उसका भतीजा गाजी और साला आया था। पर उसे नहीं पता था कि बहराइच में महाराजा सोहेल देव का राज है। महाराजा सोहेल देव ने उन्हें हराया। सोहेल देव ने देश की रक्षा के साथ धर्म की भी रक्षा की।'' राजभरों को उनकी ताकत का अहसास कराने के बाद अमित शाह ने सपा और बसपा को जमकर आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि ''यह राहू और केतु हैं। जब तक इन्हें हटाएंगे नहीं, विकास नहीं हो पाएगा।'' इस मौके पर अमित शाह को लोकसभा की 73 सीटों की भारी जीत भी याद आई। उन्होंने कहा कि ''उस समय हम साथ नहीं थे, अब साथ हैं तो क्या होगा, यह मुलायम भी देखेंगे।'' गौरतलब है कि राजभरों का पूर्वांचल में बड़ा वोट है। सन 2012 के चुनाव में इनकी ताकत भी पूर्वांचल में दिखाई पड़ी थी। बलिया, गाजीपुर, मऊ, वाराणसी में अच्छा प्रदर्शन रहा था। भासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश ने गाजीपुर की जहूराबाद सीट से 49600 वोट मिले थे। पार्टी के दूसरे प्रत्याशी बलिया ने फेफना से 42000 , रसड़ा से 26000, सिकंदरपुर से 40000, बेल्थरा रोड से 38000, वोट बटोरे थे। गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी में भी पार्टी के उम्मीदवारों ने 18 से 30 हजार वोट बटोरे थे, लेकिन कोई सीट जीत नहीं पाए थे। लिहाजा सत्ता में भागीदारी के लिए राजभरों को भी किसी मजबूत कंधे की जरूरत है जो उन्हें बीजेपी के रूप में नजर आ रहा है। इसलिए ओम प्रकाश राजभर ने अपने लोगों को विकास से अब तक दूर रहने की बात याद दिलाते हुए कहा कि "खजाना लेना है कि नहीं। कितने लोग तैयार हैं खजाना लेने के लिए। यह खजाना तभी मिलेगा जब भारतीय जनता पार्टी और भासपा की सरकार बनेगी।'' बिहार की हार के बाद भाजपा उत्तर प्रदेश को हाथ से नहीं जाने देना चाहती, लिहाजा उनके नेता मंच पर तो विकास की बात करते हैं पर समीकरण जातीय बैठा रहे हैं। यही वजह है कि अपना दल की अनुप्रिया पटेल और भासपा के बाद उनके निशाने पर और छोटी पार्टियां हैं। उत्तर प्रदेश में पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों के तकरीबन 50 % वोट हैं। इनमें से यादव 19 % निकाल दें तो भी यह प्रतिशत बहुत है जिसे बीजेपी ज़्यादा से ज़्यादा अपनी तरफ गोलबंद करने में जुटी है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बिहार चुनाव में भाजपा इसी जाति की कश्ती में सवार होकर डूब चुकी है। अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसी कश्ती में सवार होने की तैयारी कर रही है। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि उत्तर प्रदेश में यह कश्ती चुनावी वैतरणी पार कर पाती है या नहीं।

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