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गुवाहाटी: एक राज्य के मुख्यमंत्री का दूसरे राज्य में प्रचार करना भले ही एक नया विचार न लगे, लेकिन मेघालय के मुख्‍यमंत्री कॉनराड संगमा का मामला काफी अनोखा है। मेघालय के मुख्यमंत्री भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के खिलाफ प्रचार करने के लिए मणिपुर के चार दिवसीय दौरे पर हैं, जिसमें उनकी पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) भी शामिल है। मणिपुर में एनपीपी ने 2017 में केवल नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसने चार सीटें जीतीं थीं। यह सभी दलों के बीच सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट था और पार्टी किंगमेकर के रूप में उभरी थी। एनपीपी के समर्थन के बिना भाजपा गठबंधन सरकार नहीं बना पाती।

एनपीपी इस बार 60 सीटों वाली विधानसभा के लिए 42 सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है, जो पिछली बार की तुलना में करीब पांच गुना ज्यादा है। इनमें से 19 भाजपा नेता हैं, जिन्होंने टिकट न मिलने के बाद पाला बदल लिया। मणिपुर भाजपा के उपाध्यक्ष चिदानंद सिंह ने कहा, "एनपीपी मणिपुर में भाजपा के विकल्प के रूप में उभरने का सपना देख रही है।

 उन्होंने कहा, इस चुनाव के बाद, एनपीपी यहां मौजूद नहीं रहेगी। मणिपुर में उनका कोई संगठन आधार नहीं है, वे केवल चुनाव के दौरान आते हैं।"

मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा में शामिल 16 विधायकों में से कम से कम 10 पूर्व कांग्रेस नेताओं को मणिपुर में टिकट मिला है। उपमुख्यमंत्री युमनाम जॉय कुमार सिंह एनपीपी से हैं, उन्‍होंने चुनावी रैलियों में भाजपा की आलोचना की है, जो गठबंधन सरकार का नेतृत्व करती है और सिंह जिसमें शामिल हैं।

राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि संगमा मणिपुर में अपनी पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उधर, मणिपुर में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हेमोचंद्र ने कहा, "एनपीपी हमारे साथ सैद्धांतिक रूप से है। हमने राज्यसभा चुनावों में एक साथ काम किया है।"

कांग्रेस 2017 में 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन बाद में कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और निर्दलीय उम्मीदवार के साथ चुनाव के बाद गठबंधन के चलते भाजपा सरकार बनाने में सफल रही। मणिपुर में दो चरणों में 27 फरवरी और 3 मार्च को मतदान होगा। वहीं परिणाम 10 मार्च को आएंगे।

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