गंगटोक: सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग एक तरफ चीन के बढ़ते खतरे और दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में जारी विरोध-प्रदर्शन के बीच फंसने से नाराज हैं। उन्होंने पूरी स्थिति पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि सिक्किम के लोग चीन और बंगाल के बीच सैंडविच बनने के लिए भारत के साथ नहीं जुड़े थे। चामलिंग का बयान ऐसे समय आया है, जब चीन और भारत सिक्किम में आमने-सामने हैं। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में जारी गतिरोध की वजह से सिक्किम का मुख्य जीवनरेखा माने जाने वाले दो राष्ट्रीय राजमार्ग कई दिनों ठप पड़े हुए हैं। इससे नाखुश मुख्यमंत्री ने सिक्किम के नामची में एक जनसभा में कहा कि पिछले 30 साल में दार्जिलिंग में विरोध के चलते राज्य को करीब 60 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। उन्होंने कहा, ‘चीन की ओर से नाथू ला सीमा पर दबाव बन रहा है। वहां युद्ध के हालात बने हुए हैं। दूसरी ओर सिलिगुड़ी से कहा जा रहा है कि वह सिक्किम में पेट्रोल और खाना नहीं आने देंगे। सिलीगुड़ी में हमारे लोगों को परेशान किया जा रहा है, हमारे सामान को रोका जा रहा है।’ पांचवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए पवन चामलिंग ने कहा कि एनएच-10 हमारी लाइफलाइन है, लेकिन गोरखालैंड विरोध के चलते पिछले 30 साल से यह सिक्किम की कमजोरी भी साबित हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘पिछले 30 साल से पड़ोस की दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र में गोरखालैंड विरोध के चलते सिक्किम को काफी कुछ भुगतना पड़ा। तीन दशक से हमारे विकास कार्य काफी प्रभावित हुए हैं।’ पवन चामलिंग ने विरोध की वजह से पर्यटन उद्योग पर पड़े नकारात्मक प्रभाव का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि पर्यटकों की कमी के चलते होटल खाली पड़े हुए हैं और वाहन बेकार खड़े हुए हैं। पवन चामलिंग ने गत 20 जून को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर अलग गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग का समर्थन किया था। इससे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेता नाराज हो गए। इसके बाद से सिलीगुड़ी में आए दिन सिक्किम के वाहनों को निशाना बनाया जा रहा है। इस पर चामलिंग ने स्पष्ट कहा, ‘मैंने सुप्रीम कोर्ट जाने का मन बना लिया है। सिक्किम के लोग देश की रक्षा में जुटे हुए हैं। इस सीमावर्ती राज्य में वे बिना वेतन के जवानों की तरह काम कर रहे हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि सिक्किम से होकर पानी बंगाल में जाता है। इतने योगदान के बावजूद उनके लिए जरूरी सामानों को राज्य में आने से रोका जा रहा है। गौरतलब है कि 26 अप्रैल, 1975 को सिक्किम का विलय भारत में 22वें राज्य के रूप में हुआ था। इससे पहले तक सिक्किम एक स्वतंत्र रियासत था, जिसकी बाहरी रक्षा का जिम्मा भारत का था। 17वीं शताब्दी से यहां नामग्याल शाही परिवार का राज था। 1975 में हुए जनमत संग्रह में 97 फीसदी से ज्यादा लोगों ने राजशाही खत्म कर लोकतांत्रिक व्यवस्था में शामिल होने के लिए वोट किया था। वांगचुग नामग्याल सिक्किम की राजशाही व्यवस्था के आखिरी राजा थे। मगर वर्तमान में वह एक धर्म गुरु की जिंदगी जी रहे हैं। माना जाता है कि 64 वर्षीय वांगचुग नेपाल या भूटान की गुफाओं में ध्यान करते हुए अपना समय बिताते हैं और सार्वजनिक जिंदगी से दूर रहते हैं। सिक्किम में आने पर भी वह ज्यादा लोगों से नहीं मिलते हैं।