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कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ है। यहां मार्क्सवादी नेता अनुरा दिसानायके ने जीत दर्ज की। उन्होंने एक्स पर पोस्ट पर कहा कि यह जीत सबकी। ये पहली बार होगा जब श्रीलंका में कोई वामदल का नेता राष्ट्रपति के पद पर बैठेगा। अपनी जीत के बाद, दिसानायके ने राष्ट्रीय एकता का आह्वान किया और कहा, "सिंहली, तमिल, मुस्लिम और सभी श्रीलंकाई लोगों की एकता एक नई शुरुआत का आधार है।"

दिसानायके ने दिग्गजों को पछाड़ा

उन्होंने देश की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए एक नई शुरुआत की उम्मीद जताई। श्रीलंका के चुनाव आयोग ने औपचारिक रूप से घोषणा की कि 55 वर्षीय दिसानायके ने शनिवार के चुनाव में 42.31 फीसदी वोट हासिल किए, जबकि विपक्षी नेता सजीथ प्रेमदासा दूसरे स्थान पर रहे और विक्रमसिंघे तीसरे स्थान पर रहे।

जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) पार्टी के नेता दिसानायके का जन्म राजधानी कोलंबो से दूर एक मजदूर के घर हुआ था। 80 के दशक में छात्र राजनीति में उनकी एंट्री हुई।

1987 से 1989 के दौरान सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हुए दिसानायके जेवीपी में शामिल हुए और फिर अपनी नई पहचान बनाते गए।

चीनी समर्थक है दिसानायके की पार्टी

उनका पार्टी पर श्रीलंका में हिंसा करने का भी आरोप लग चुका है। 80 के दशक में जब दिसानायके जेवीपी में हो रहे थे, तब श्रीलंका की मौजूदा सरकार के खिलाफ उनकी पार्टी ने सशस्त्र विद्रोह और हिंसा की। उस दौर को श्रीलंका के खूनी दौर के रूप में भी याद किया जाता है। दिसानायके का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए चिंता का सबब भी हो सकता है क्योंकि उनकी पार्टी जेवीपी चीन समर्थक मानी जाती है।

दिसानायके का राजनीति करियर

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति दिसानायके की राजनीति में कई बार उतार-चढ़ाव का दौर देखा गया। साल 1995 में उन्हें सोशलिस्ट स्टूडेंट्स एसोसिएशन का राष्ट्रीय आयोजक बनाया गया, जिसके बाद उन्हें जेवीपी की केंद्रीय कार्य समिति में जगह भी मिल गई। साल 2000 में दिसानायके पहली बार सांसद बने उससे पहले तीन साल तक वह पार्टी के राजनीति ब्यूरो के सदस्य थे। साल 2004 में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के साथ गठबंधन वाली सरकार में उन्हें कृषि और सिंचाई मंत्री बनाया गया था, हालांकि एक साल बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।

उन्होंने हमेशा मार्क्सवादी विचारधारा को आगे रखते हुए देश में बदलाव की बात कही है। राष्ट्रपति चुनाव के कैंपेन में भी दिसानायके ने ज्यादातर छात्रों और मजदूरों के मुद्दे का जिक्र किया था। उन्होंने श्रीलंका के लोगों से शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बदलाव के वादे किए थे।

दिसानायके ने अपनी पार्टी की छवि को बदला

अनुरा दिसानायके साल 2014 में जेवीपी के अध्यक्ष बनाए गए। इसके बाद उनपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी की छवि को बदलना था, जो 1971 और 1987 के विद्रोह से जुड़ा हुआ था। दिसानायके ने इसे बखूबी निभाया और सार्वजनिक रूप से श्रीलंका के लोगों से माफी भी मांगी।

दिसानायके 2019 में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव की रेस में आए, लेकिन उन्हें सिर्फ तीन फीसदी ही वोट मिला। इसके बाद साल 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट छाने के बाद जेवीपी पार्टी ने देश में खुद को भ्रष्टाचार विरोधी नेता तौर पर पेश किया, जिसका उन्हें काफी फायदा मिला।

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