तिरूवनंतपुरम: केरल में 16 मई को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है और उसके नतीजे सत्तारूढ़ कांग्रेस नीत यूडीएफ, माकपा नीत एलडीएफ और भाजपा के लिए अहम होंगे। सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) के लिए यह न केवल राज्य में सत्ता बनाए रखने का संघर्ष है बल्कि यह सफलता वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस के लिये राष्ट्रीय स्तर पर वापसी का मौका भी प्रदान करेगी। दूसरी ओर, वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के लिए खासकर ऐसे वक्त जब वह कभी अपने मजबूत वाले राज्य रहे, पश्चिम बंगाल में वापसी की जद्दोजेहद कर रही है, इस चुनाव में हार उसके लिए तुषारापात होगी। केरल में एक एक बार शासन करने वाले इन दोनों मोर्चों को उस चुनौती से भी निबटना होगा जो भाजपा ने राज्य में हाल के नगर निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के बाद पेश की है। यूडीएफ और एलडीएफ की दो ध्रुवीय राजनीति को भेदने में अबतक विफल रही भाजपा को इस बार भरत धरम जनसेना (बीडीजेएस) के रूप में एक राजनीतिक सहयोगी मिल गया है।
बीडीजेएस एक नयी राजनीतिक पार्टी है जिसका गठन श्री नारायण धरम परिपालना योगम (एसएनडीपी) ने किया है। एसएनडीपी अपने महासचिव वेल्लपल्ली नातेसन की अगुवाई में पिछले एझवा समुदाय का एक प्रभावशाली संगठन है। भाजपा इन दोनों मोर्चे के पारंपरिक वोट बैंक में कैसे सेंध लगाती है, इस पर राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर बनी हुई है क्योंकि भगवा दल अबतक न तो विधानसभा और न ही लोकसभा में केरल से एक भी सीट जीत पाया है। सोलर और बार रिश्वतकांड के आरोपों से बेपरवाह मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने मोर्चा के अपने विकास एजेंडे के भरोसे पर सत्ता में वापसी का विश्वास प्रकट किया है। हालांकि एलडीएफ को चांडी सरकार के विरूद्ध सत्ताविरोधी लहर से अपने पक्ष में जनादेश की उम्मीद है।