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हैदराबाद: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता अब जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं, लेकिन पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) की तरह ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण देने की मांग को मानने से इंकार कर दिया था। उन्होंने हाल ही में संसद में पारित महिला आरक्षण विधेयक में एससी, एसटी और ओबीसी को अलग से आरक्षण नहीं दिए जाने के लिए केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार की भी आलोचना की।

तेलंगाना के पेद्दापल्ली में बृहस्पतिवार को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मायावती ने कहा कि अधिकतर पिछड़े वर्गों ने कांग्रेस से एससी-एसटी की तरह ही आरक्षण की मांग की थी जिसने आजादी के बाद लंबे समय तक देश में शासन किया। उन्होंने कहा, ‘‘एससी-एसटी, ओबीसी के वोट पाने के लिए कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता अब अपनी चुनावी सभाओं में प्रचार कर रहे हैं कि जाति आधारित जनगणना कराई जानी चाहिए।''

मायावती ने कहा, ‘‘ये लोग (कांग्रेस) जाति जनगणना (अब) के बारे में बात कर रहे हैं। जब आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस सत्ता में थी, तो सबसे पिछड़े वर्ग के लोगों ने एससी-एसटी की तर्ज पर खुद को आरक्षण दिए जाने की मांग की थी।''

ओबीसी के लिए आरक्षण की सिफारिश करने वाली काका कालेलकर आयोग और मंडल आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए मायावती ने कहा कि इन्हें कांग्रेस ने लागू ही नहीं किया। बसपा नेता ने कहा कि उनकी पार्टी ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन किया था और केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर दबाव बनाया था। उन्होंने कहा कि लेकिन, सबसे पुरानी पार्टी ने रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ओबीसी समुदाय के लोगों को पता होना चाहिए कि मंडल आयोग की रिपोर्ट कांग्रेस के प्रयासों से नहीं, बल्कि बसपा के प्रयासों से तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने लागू की थी। मायावती ने यह दावा भी किया कि केंद्र सरकार और अधिकतर राज्य सरकारें कमजोर वर्गों को शोषण से राहत देने के लिए बने कानूनों को समुचित तरीके से लागू नहीं कर रही हैं।

बसपा प्रमुख ने राज्य इकाई के अध्यक्ष के खिलाफ दर्ज एक मामले का हवाला देते हुए तेलंगाना में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार पर ‘दलित विरोधी' होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि देश में इसी तरह मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हालत भी संतोषजनक नहीं लगती तथा उच्च वर्गों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की दशा ‘शोचनीय' है।

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