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(मनोहर नायक): शर्मनाक! यह फ़ोटो अवश्यंभावी थी... नहीं आती तो इस भयावह नकारा और भयंकर पाखंडी सरकार और उसके अक्षरशः सुयोग्य सिरमौर के मिज़ाज और कामकाजी बनावट के सारे तर्क ध्वस्त हो जाते... इसलिए इस चित्र का आना अपरिहार्य था| मटियामेट के बाद नौटंकी, धत्कर्म के बाद ठिठाई, झूठ के बाद लीपापोती और अचूक निकम्मेपन के बाद सरासर बेहयाई इनके लिए सहज, सामान्य और तर्कसम्मत है | जिन्होंने इतना किया -धरा उन्हें कोसना और नाकुछ करके ख़ुद मियां मिट्ठू बनना इनकी फ़ितरत है | अपनी बनायी-बढ़ायी त्रासदियों से आंखें चुराना और सबका ध्यान बंटाने के लिए प्रायोजित आयोजन करना इनका कर्मकांड है, जो अंततः प्रहसन ही साबित होते हैं.... ज़रा गहराई से देखें तो इन अवसरों की इनकी नाटकीय गम्भीरता से हास्यास्पदता लहलौट फूटी पड़ती दिखती है|नोटबंदी हो या महामारी का कुप्रबंधन या युद्धग्रस्त यूक्रेन में संकटों में घिरे भारतीय छात्रों के प्रति फौरी रवैया, ये सब मामले ऐसे ही हैं| हालत जब बद से बदतर हो रही होती है तब एकमेव मुख्य अभिनेता के साथ बाक़ी सभी एक्स्ट्राओं वाला रंगमंडल और सहायक सर्कस सक्रिय हो जाता है|

सेट लगा दिये जाते हैं,विशेष परिधान सज जातें हैं, मोर, तोते निकल आते हैं , कबूतर यहाँ वहाँ उड़ा दिये जाते हैं ....अपनी नकली भंगिमाओं, चित्रों और जुमलेबाज़ियों से भुलावा देना और विकल और व्यथित करने वाले चित्रों को ओझल करना चाहते हैं .... स्वांग और ढोंग से व्यथा और विपदा को हांकने, दुखों के अंधियारे को सजावटी - दिखावटी चकाचौंध से दूर करने की नादानी ही इन्हें वह विद्रूपता देती है जिसमें इनका कोई सानी नहीं | दिलचस्प यह है कि इनके सारे शिरोमणि कामों में जिनमें इनकी भद्द पिटी और उन ज़िम्मेदारियों में भी जिनमें इन्हें कसौटी पर कसा जाना था, को ये सब अत्यंत सुचिंतित होने का दिखावा करते नहीं थकते ... यानि ये वे कार्यकलाप हैं जिनमें इनका सम्पूर्ण बुद्धि- बल लगा है | लेकिन यह इनका अभाग्य ही है कि जहाँ भी ये बुद्धि लगाते हैं वहां बंटाधार होता है | वैसे कहा तो यह जाता है कि सिरमौर को फ़ाइल- वाइल पढ़ने- वढ़ने का चक्कर रत्ती भर पसंद नहीं, वे तो अंतर्प्रेरणा से काम करते हैं... उफ़ कितनी निर्मम और बेरहम अंतर्प्रेरणा !

तो मोदीजी का यह चित्र आना ही था क्योंकि यूक्रेन में युद्ध की विभीषिका वहां डॉक्टरी पढ़ने गये छात्र- छात्राओं का पीछा कर रही थी, वे उससे बचते भाग रहे थे पर कोई ठिकाने का ठौर नहीं था... वे चाहते थे देश लौटना... पर सरकार सिरमौर के साथ उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिकता, कट्टरता, राष्ट्रवाद की बासी कढ़ी में उबाल लाने में लगी थी, ताज़ी बनाने का वक़्त नहीं था, पर उनके पास इतनी फ़ुर्सत भी नहीं थी कि यूक्रेन और आसपास के दूतावासों को निकासी के काम में लगा देती ... यूपी में तो सिंधिया अपने कांग्रेसी दिनों में प्रभारी रहकर अपनी अयोग्यता साबित कर चुके थे, उन्हें और छांट कर भेजे गये अन्यों को कमसेकम पहले भेज देते... पर अंतर्प्रेरणा नहीं हुई | उधर यूक्रेन से छात्रों के बदहाली और बेबसी वाले वीडियो वायरल हो रहे थे, देश स्तब्ध और हैरान था... देश वापस बुलाने की छात्रों की गुहारें बैचेन कर रही थीं कि अचानक अंतर्प्रेरणा की घंटी घनघनायी | हमने एक गुरु गम्भीर बैठक में सिरमौर को मातहतों को समझाते हुए देखा.... वह गाम्भीर्य जो बैठक में नुमायां था इसलिए दुर्लभ किस्म का था कि वह आपको राजकाज के इनके किसी बुनियादी काम में नहीं दिखेगा , सिवाय फ़सादी राजनीति, षड़यंत्रों, दुरभिसंधियों के | अभी तक का जो सरकार और सिरमौर के काम करने का तरीक़ा है उसमें निश्चित ही उस बैठक में उस मेकअप की रणनीति बनी जिससे मुख्य अभिनेता के चेहरे पर आयीं खरोंचें छिपायी जा सकें... इसकी व्यापक रणनीति बनायी गयी जिसमें छात्रों का लाना भी शामिल किया गया | चार मंत्रियों को भेजना, वहां मोदी के जयकारे, छात्रों के हर आने वाले जत्थे पर जयकारा कि धन्य हमारे भाग्य कि मोदी हैं तो सब कुछ है ! यह प्रधान-प्रशस्ति-प्रहसन उसी सिलसिले से जुड़ता है जिसमें हमने ऑक्सीजन, दवाओं, इलाज के अभाव में कोरोना से लोगों को तड़ातड़ मरते देखा पर उसकी परिणति मुफ़्त टीके के लिए 'मोदीजी धन्यवाद' के संकीर्तन में हुई| उसके पहले ताली-थाली-पुष्पवर्षा की नौटंकी करवाकर अपने दायित्व को अंगूठा दिखाने की कोशिश की गयी| नोटबंदी से पैदा हुई तबाही हो, या मजदूरों, ग़रीबों का पैदल अपने घरों की ओर कूच... आपको सिरमौर और सरकार इनसे कहीं और कभी पसीजता नहीं दिखी,
किसानों के आंदोलन में तो वह क्रूर थी... उसकी रणनीतियां इन मसलों को हल करने की कभी नहीं रहीं बल्कि इनसे बिगड़ी छवि को दुरुस्त करने की हमेशा रही हैं और चूंकि सिरमौर ही सरकार हैं इसलिए वे रणनीतियां अंततः उनकी आरती में समाप्येत होती हैं| आठ साल से ये ही चल रहा है कि हर विफलता के बाद सिरमौर की आरती... यह स्तुति परायण जितना छिछला है उतना ही रुग्ण | नामधारी सूट से लेकर 'धन्यवाद मोदीजी' तक आत्मधन्यता और हास्यास्पदता की अटूट तारतम्यता देखी जा सकती है|

यूक्रेन के छात्रों के कारण हुई छीछालेदर के बाद फिर आरती शुरू है, कीर्तन गूंज रहा है...उसी से जन्मी यह शर्मनाक तस्वीर है | इस तस्वीर में भी वह भावना, पीड़ा, संवेदना नहीं है जो इस संकट को लेकर सरकार और सिरमौर में होनी चाहिए थी... वह अगर होती तो दूरदर्शिता से, समय से बचाव का रास्ता निकाला गया होता | चुनाव में फंसे थे तो बनारस में सबको बुलाते, फ़ैसला करते | पर फ़ोकस में हमेशा सिरमौर हैं इसलिए यह फ़ोटो सेशन होना ही था.... यह बताने कि मैं हूँ तो सब ख़ैरियत है | इसमें बच्चे ख़ुश हैं कि जान बची तो लाखों पाये, वे अभिभूत हैं कि प्रधानमंत्री के साथ हैं पर मोदीजी इस तस्वीर के मार्फ़त सबकी और ख़ुद अपनी आंखों में धूल नहीं झोंक रहे हैं | यह चित्र फ़रेब है.... लोगों के दुख से, भावनाओं से खिलवाड़ है... यह बिना दर्द की हाय-हाय और बिना कुछ किये-धरे की वाह- वाह है | पर मोदीजी फ़ोटुओं का बेजा इस्तेमाल करते रहे हैं... ऐसी शर्मनाक तस्वीरें खिंचवाने में उनका मुक़ाबला ख़ुद उन्हीं से है चाहे गुफ़ा की बगुला ध्यान वाली हो या पीताम्बरधारी हो या अन्य, ध्यान कीजिये तो सारी चलचित्र सी स्मृति में घूम जाएंगी | ... फिर वे इस मौक़े का इस्तेमाल पिछली सरकारों पर आरोप लगाने में करते हैं कि उनकी नीतियों का दुष्परिणाम है कि मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश जाना पड़ता है... उनसे पूछना यह चाहिए कि आठ बरस में कितने मेडिकल कॉलेज और एम्स उनकी सरकार ने बना दिये | बिगाड़ने और बेहाल करने में लगी सरकार को समझ आना चाहिए कि ये इश्तहारी फ़ोटुएं ज़्यादा दूर तक मददगार नहीं होंगी... अंततः आप जो करेंगे वही काम आपके काम या नाकाम आयेंगे |

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