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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित जश्न-ए-अदब महोतस्व में शनिवार को सुप्रसिद्ध साहित्यकार शानी को प्रमचंद के बाद सबसे बड़ा साहित्यकार बताते हुए मशहूर आलोचक और लेखक डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा कि साहित्यकार तो अपने-अपने समय में बहुत हुए है, लेकिन शानी एकलौते एसे साहित्यकार थे जो अपनी बात तो कह देना ही नहीं, बल्कि उसकी सच्चाई और गहराई को नाप लेना भी उतना ही उचित समझते थे।

समारोह में ''शानी के कथा साहित्य की प्रासंगिकता'' सत्र पर चर्चा हो रही थी जिसमें शर्मा के अलावा जामिया मिलिया के प्रोफ़ेसर और ऊर्दू के लेखक डॉ. ख़ालिद जावेद, वरिष्ठ पत्रकार महेश दर्पण और शानी के पुत्र तथा वरिष्ठ पत्रकार फ़ीरोज़ शानी ने हिस्सा लिया. सत्र का संचालन करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि शानी प्रेमचंद्र के बाद सबसे बड़े साहित्यकार के तौर पर सामने आए।

नई दिल्ली: हिन्दी के नामचीन कथाकार गुलशेर खान शानी की जयंती पर मंगलवार (16 मई) यहां साहित्यकारों ने कहा कि उन्हें हिन्दी में वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। शानी फाउंडेशन की ओर से 16 मई को ‘शानी का साहित्य और भारतीय समाज की तस्वीर’ विषय पर परिसंवाद का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल में किया गया। इस परिसंवाद की अध्यक्षता प्रोफेसर शमीम हनफी ने की। हिंदी के मशहूर कवि और समालोचक अशोक वाजपेयी ने शानी की जीवनी लिखे जाने की जरूरत बताई। उनका कहना था कि शानी हाशिये पर पड़े लोगों के कथाकार थे, लेकिन उन्हें वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। उन्होंने शानी को अपने समय से आगे का लेखक बताते हुए कहा कि वह अपने समय की चीजों को बारीकी से समझते थे, इसलिए आगे के समय की बात लिख पाए। लेखिका शीबा असलम फेहमी ने कहा कि शानी के साहित्य में अरबी फारसी की मिलावट नहीं होने के बाद भी लेखकों ने उन्हें हिंदी साहित्य में मुकम्मल जगह नहीं दी। शानी का जन्म 16 मई 1933 को छत्तीसगढ के जगदलपुर में हुआ था। वह साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ और ‘साक्षात्कार’ के संपादक रहे। शानी ने भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, लिथुवानी, चेक और अंग्रेजी साहित्य का अनुवाद किया। उनका 10 फरवरी 1995 को निधन हो गया। शानी ने अपना बेहतरीन रचनाकर्म जगदलपुर में किया।

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