ताज़ा खबरें
केजरीवाल के खिलाफ कार्यवाही पर रोक से दिल्ली हाईकोर्ट का इंकार
गौतम अडानी पर रिश्वत देने, धोखाधड़ी के आरोप, यूएस में मामला दर्ज
झारखंड में पांच बजे तक 67.59% वोटिंग, महाराष्ट्र में 58.22% मतदान

(आशु सक्सेना): गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने गृहराज्य में दूसरी बार चुनाव का सामना करेंगे। इस साल के अंत तक गुजरात में होने वाले आम चुनाव संसदीय लोकतंत्र में पीएम मोदी के लिए उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा के दौरान की सबसे बड़ी चुनौती है।

दो दशक पहले 24 फरवरी 2002 को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निर्वाचित घोषित किया गया था। इस घटना का ज़िक्र पीएम मोदी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान इस तारीख़ को आयोजित एक जनसभा में किया था। यह बात दीगर है कि पीएम मोदी यह बताना भूल गये थे कि दो दशक पहले उसी दिन अयोध्या, काशी और मथुरा वाले यूपी से भाजपा का सफाया हुआ था और वह सिमट कर 88 सीट पर आ गयी थी। बहरहाल, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2002 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में 182 सीट मेंं से 127 सीट जीती थीं। इन दो दशक के दौरान हुए सभी विधानसभा चुनावों में भाजपा कभी भी पिछले आंकड़े को बरकरार रखने मेंं कामयाब नहीं हो सकी है। 2017 तक हुए तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा को लगातार नुकसान हुआ है।

दिलचस्प पहलू यह है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी को अब तक की सबसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। पिछले चुनाव में भाजपा को 16 सीट का नुकसान हुआ और पार्टी 99 सीट पर सिमट गयी थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने दूसरी बार सूबे की सभी सीट जीत कर इतिहास रच दिया था। लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। अगर इस बार भी मोदी अपने पिछले आंकड़े तक भाजपा को नहीं पहुंचा सके, तो वह राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में उनके खिलाफ एक स्पष्ट राजनीतिक संकेत होगा।

यूं तो पीएम मोदी ने अपने गृहराज्य में चुनावी तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी है। पीएम मोदी ने सबसे पहले तो पिछले साल सूबे की सरकार बदली। अब नये चेहरों के साथ इस बार चुनावी समर में कूदे हैं। राजकोट में शनिवार को एक जनसभा में पीएम मोदी ने मातृभूमि की सेवा के नाम पर सूबे की जनता का आशीर्वाद मांगा। पीएम मोदी ने कहा कि आज गुजरात की धरती पर आया हूं तो मैं सिर झुकाकर गुजरात के सभी नागरिकों का आदर करना चाहता हूं। आपने मुझे जो संस्कार और शिक्षा दी, समाज के लिए जीने की बातें बताई, उसकी बदौलत मैंने मातृभूमि की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैंने किसी का सिर नहीं झुकने दिया। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि 26 मई को एनडीए सरकार ने अपने 8 साल पूरे किए हैं। इस दौरान हमारी सरकार ने कोई ऐसा काम नहीं किया है, जिससे जनता को सिर झुकाना पड़े।

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की खस्ता स्थिति के लिहाज से तो इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए कांग्रेस कोई बड़ी चुनौती नज़र नहीं आ रही है। कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने राजस्थान में पार्टी के चिंतन शिविर के दौरान इस्तीफा देकर सूबे में पार्टी की खस्ता हालत का एहसास करवा दिया है। वह अभी तक भाजपा में शामिल तो नहीं हुए है, लेकिन अपने बयानों में वह भाजपा को कांग्रेस से बेहतर पार्टी बता चुके है। भाजपा या आप में शामिल होने की चर्चा का जबाव देते हुए हार्दिक पटेल ने इतना भर कहा है कि अभी मैं भाजपा में नहीं हूॅं। इस राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनज़र साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के लिए कांग्रेस तो कोई बड़ी चुनौती नहीं है। लेकिन सूबे में आम आदमी पार्टी (आप) एक नई राजनीतिक ताकत के तौर पर चुनौती देती जरूर नज़र आने लगी है। आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सूबे में पूरे दमखम से पीएम मोदी को चुनौती देने की रणनीति अपनायी है।

आप संयोजक अ​रविंद केजरीवाल ने समाजवादी पृष्ठभूमि के आदिवासी नेता छोटूभाई वासवा की भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के साथ चुनावी तालमेल करने का फैसला किया है। छोटूभाई 1990 में आदिवासी बाहुल्य भरुच जिले की झगाड़िया सीट से जनतादल के टिकट पर पहली बार विधायक बने थे। 1995 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीता। 1998 में फिर जनता दल और उसके बाद लगातार जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के टिकट पर छोटूभाई वसावा जीतते रहे। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी नेता छोटूभाई वासवा ने क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का गठन किया और कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल किया। इस चुनाव बीटीपी दो सीट जीतने में सफल रहीं, लेकिन गठबंधन का कांग्रेस को काफी फायदा हुआ। वहीं सूबे में कांग्रेस के सबसे अमीर विधायक इंद्रनील राजगुरू ने आप में शामिल होकर पार्टी के बढ़ते जनाधार को बल दिया है। राजगुरू की राजकोट और सौराष्ट्र क्षेत्र में अच्छी पकड़ है।

सूबे में तेजी से बदल रहे राजनीतिक समीकरणों के मद्देनज़र एक बात साफ नज़र आ रही है कि 2022 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच आमने-सामने की सीधी लड़ाई नहीं है। इस बार आप गठबंधन भी एक महत्वपूर्ण ताकत बन कर उभर रहा है। जिससे इस बार तिकोने मुकाबले की स्थिति बनती नज़र आ रही है।

आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नवंबर 2001 में बागड़ोर संभाली थी। 24 फरवरी 2002 को वह निर्वाचित मुख्यमंत्री बने थे। 27 फरवरी को हुए गौधरा कांड के बाद सूबे के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 127 सीट पर कब्जा किया था। उसके बाद हुए तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा अपने पुराने आंकड़े को बरकरार नहीं रख सकी हैं। सीएम मोदी ने 2007 का चुनाव विकास मॉडल के नाम पर लड़ा। इस चुनाव में दस सीट के नुकसान के बाद भाजपा 117 सीट पर ​खिसक गयी थी। 2012 का चुनाव सीएम मोदी ने देश का अगला प्रधानमंत्री होने की चर्चा के ​बीच लड़ा। इसके बावजूद भाजपा को दो सीट का नुकसान हुआ था। प्रधानमंत्री बनने के बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा बमुश्किल बहुमत का आंकड़ा पा सकी थी। इस चुनाव में भाजपा 99 सीट पर आ गयी थी।

गौधरा कांड़ के बाद हुए विधानसभा चुनाव से लेकर पिछले चुनाव तक का लेखाजोखा यही दास्तां बया कर रहा है कि इस बार गुजरात की सत्ता हासिल करना पीएम मोदी की अब तक की राजनीति की सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनाव में हार का नतीज़ा यह होगा कि अपने गृहराज्य में पराजय के बाद 2024 में पीएम मोदी की सत्ता में वापसी पर सवालिया निशान लग जाएगा। 

यूं पिछले विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत से ही अपने गृहराज्य को अंतरराष्ट्रीय महत्व दिलाना शुरू कर दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के चलते गुजरात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा। पिछले दिनों ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा और आईपीएल का फाइनल मुकाबला गुजरात में ही हो रहा है। पीएम मोदी ने सूबे में भाजपा की सत्ता वापसी के लिए अपनी पूरी ताकत झौंक दी है। इस सबका चुनाव नतीज़ों पर क्या असर होगा, यह तो चुनाव नतीज़े आने पर ही तय होगा। लेकिन फिलहाल यही कहा जा सकता है कि दो दशक का चुनावी इतिहास पीएम मोदी के पक्ष में नहीं रहा है। लिहाजा इस बार की फिलहाल कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। हालांकि पीएम मोदी ने शनिवार की अपनी गुजरात यात्रा के दौरान पोशाक से भी अपने मुख्यमंत्री काल की याद दिलाने की कोशिश की। कल पीएम मोदी ने आधी बहा वाला वहीं पुराना कुर्ता पहना था, जो कभी उनकी पहचान हुआ करता था।

पंजाब चुनाव नतीज़ों के बाद इस बात की संभावना प्रबल हो गयी है कि गुजरात में भी आप एक ताकत बनकर उभर सकती है। सूबे में तिकोने मुकाबले में त्रिशंकु विधानसभा होने की ज्यादा संभावना है। आप संयोजक अ​रविंद केजरीवाल पंजाब के सीएम बलवंत सिंह मान के साथ अहमदावाद में रोड़ शो कर आए हैं।

आपको याद दिला दूं कि 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव प्रचार किया था। 70 सीट वाली विधानसभा में भाजपा अपनी सीट बढ़ाने में तो सफल रही, लेकिन बहुमत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी। भाजपा 32 सीट जीत कर सदन मेंं सबसे बड़े दल रूप में उभरी। वहीं अन्ना आंदोलन के बाद अस्तित्व आयी आम आदमी पार्टी ने 28 सीट पर कब्जा करके सूबे मे नये राजनीति समीकरण पैदा कर दिये। इस चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस आठ सीट पर सिमट गयी थी। कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आप सरकार को समर्थन की घोषणा कर दी। अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से दिसंबर 2013 दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 49 दिन बाद फरवरी 2014 में उन्होंने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद केंद्र की यूपीए सरकार ने विधानसभा को स्थगित रखते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी।

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र की बागड़ोर संभाली थी, तब दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू था। राष्ट्रपति शासन के दौरान हुए 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी ने पूरी ताकत झौंक दी थी। पीएम मोदी ने दिल्ली को 'मिनी ​इंडिया' बताते हुए कहा था कि यहां का संदेश पूरे देश में जाता है। इसके बावजूद इस चुनाव में भाजपा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा नेता विपक्ष पद की दावेदारी के लायक सीट भी नहीं जीत सकी थी। 2020 के चुनाव में आप ने भाजपा को दूसरी बार करारी शिकस्त दी। इस चुनाव में पीएम मोदी ने 2015 की तरह चुनाव प्रचार नहीं किया था।

सवाल यह है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अगर विधानसभा त्रिशंकु हो गयी, तो एक बार फिर 2013 जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। नतीजतन प्रधानमंत्री मोदी को संवैधानिक मजबूरी के चलते अपने गृहराज्य गुजरात में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करनी होगी। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका विपरित प्रभाव पड़ सकता है।

 

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख