ताज़ा खबरें
केजरीवाल के खिलाफ कार्यवाही पर रोक से दिल्ली हाईकोर्ट का इंकार
गौतम अडानी पर रिश्वत देने, धोखाधड़ी के आरोप, यूएस में मामला दर्ज

(जलीस अहसन) कोरोना वायरस प्रकोप का दुनिया का सबसे बड़ा केन्द्र बना, अमेरिका इस महामारी से अभी उबर भी नहीं पाया था कि इसी बीच उसे नस्लीय अशांति ने भी आ घेरा। विश्व की महाशक्ति, सबसे बड़ा लोकतंत्र और सभी नागरिकों को एक समान मानने का दावा करने वाला यह देश अभी तक अपने काले नागरिकों को न तो सामाजिक-आर्थिक बराबरी दिला सका है और न ही सम्मान। 1970 के दशक तक, उसके यहां रेस्तरां आदि के दरवाज़े पर यह बोर्ड टंगा देखना आम बात थी, जिसपर लिखा होता था ‘‘डाॅग्ज़ एंड ब्लैक्स आर नाॅट अलाउड‘‘ ।

यह सच है कि अमेरिका उस दौर से काफी आगे निकल आया है। वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से पहले, बराक ओबामा ने वहां का पहला अश्वेत राष्ट्रपति बन कर एक इतिहास रचा। इसके बावजूद, यह भी वास्तविकता है कि गोरे अमेरिकियों की एक बड़ी संख्या, कालों को अभी भी नफरत की नज़र से देखती है। हाल की एक घटना में, एक काले जाॅर्ज फ्लायड की गर्दन को एक गोरे पुलिस वाले ने अपने घुटने से तकरीबन नौ मिनट तक दबाए रखा, जब तक की उसकी जान नहीं निकल गई।

हालांकि, लगभग छह मिनट पर एक दूसरे पुलिस वाले ने फ्लायड की नब्ज़ की जांच की और पाया कि उसकी नाड़ी नहीं चल रही है, तब भी उसकी गर्दन पर घुटने का दबाव बनाए रखा गया। आस-पास जमा लोग पुलिस से ऐसा नहीं करने का आग्रह कर रहे थे लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा। जान निकलने तक फ्लायड कराहे जा रहा थे, ‘‘आई कान्ट ब्रीथ, डू नाॅट किल मी‘‘ ( मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं, मेरी हत्या मत कीजिए )। उन पर इल्ज़ाम था कि उन्होंने एक ग्रोसरी की दुकान पर 20 डालर का नकली नोट दिया था।

सात दिन पहले इस घटना की वीडियो सामने आने पर अमेरिकी लोगों, खासकर ब्लैक अमेरिकयों में पुलिस के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा भड़क उठा। एक हफ्ते से लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि इसमें गोरे अमेरिकी भी अच्छी तादाद में शामिल हैं। इसकी वजह से 40 से अधिक शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है, लेकिन विरोध बढ़ते हुए वाशिंगटन के व्हाइट हाउस के सामने तक जा पंहुचा है, जहां लोगों ने जम कर पत्थरबाज़ी की।

फिलाडेल्फिया, शिकागो, न्यूयार्क और लाॅस एंजेलेस में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच जम कर संघर्ष चल रहा है। ‘‘डाॅग्ज़ एंड ब्लैक्स आर नाॅट अलाउड‘‘ के 70 के दशक के हालात की बनिस्बत, ब्लैक अमेरिकियों की स्थिति काफी बेहतर हुई है। उनकी सामाजिक स्वीकारिकता बढ़ी है। वे अच्छे और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। लेकिन ऐसे काले अमेरिकियों का प्रतिशत अभी भी बहुत कम है। ज़्यादातर काले अमेरिकी अब भी पृथक बस्तियों (घेटोज़) में रहते हैं। वे कम पढ़े लिखें हैं और इसलिए रोज़गार भी कम हैं। इस सामाजिक विश्मता के चलते उन बस्तियों में अपराध भी ज़्यादा हैं। शाम के बाद आम गोरे और अमीर लोग उन बस्तियों से निकलने से बचते हैं।

अमेरिकी सरकारी सर्वे के अनुसार गोरों की अपेक्षा काले अमेरिकियों में दोगुनी से अधिक बेरोज़गारी है। अब जाकर तकरीबन 90 प्रतिशत काले अमेरिकी किशोर स्कूली शिक्षा तो पूरी कर लेते हैं लेकिन 40 फीसदी से कम ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। गोरे अमेरिकियों की बनिस्बत ज़्यादातर ब्लैक अमेरिकियों के पास अपने मकान भी नहीं होते। इस सामाजिक गैर-बारबरी ने एक तरफ तो ब्लैक अमेरिकियों में कुंठा भरी है दूसरी तरफ गोरे अमेरिकी उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं।

काले अमेरिकियों के प्रति कुछ गोरे अमेरिकियों की नफरत इन दिनों चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई एक घटना बयान करती है। अमेरिका के मिनियापोलिस शहर के एक हाईवे पर विरोध प्रदर्शन चल रहा था। उसी समय एक लाॅरी ड्राइवर सड़क अवरोधक तोड़ता हुआ तेज़ी से प्रदर्शनकारियों की तरफ बढ़ा। वो तो खैर हुई, प्रदर्शनकारी समय रहते उस लाॅरी को आगे बढ़ने से रोक पाने में सफल हो गए, वर्ना जाने क्या अंजाम होता।

अमेरिका के अधिकतर ब्लैक अमेरिकी, वहां के अविकसित राज्यों में रहने को मजबूर हैं। समान अवसर, बराबरी, आज़ादी और न्याय के सिद्धांतों पर चलने का दावा करने वाली अमेरिकी व्यवस्था, जब तक रंग भेद को पूरी तरह समाप्त करने में असफल रहती है, वहां श्रेष्ठ समाज स्थापित नहीं हो सकता है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख