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(आशु सक्सेना) श्रम कानूनों के महत्वपूर्ण प्रावधानों को राज्य सरकारों द्वारा निलंबित किये जाने के विरोध में वामपं​थी दलों ने केंद्र की मोदी सरकार और राज्य सरकारों को घेरने का मन मना लिया है। वामपं​थी दलों से संबद्ध भारतीय ट्रेड यूनियन परिसंघ ने जहां श्रम कानून के प्रावधानों को निलंबित किये जाने के विरोध में राष्ट्रव्यापी जनान्दोलन शुरू करने का फैसला किया है, वहीं इस मुद्दे को 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) में ले जाने की योजना को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है।

गौरतलब है कि कोरोना संकट से निपटने के लिए देश भर में लगाए लॉकडाउन का तीसरा दौर खत्म होने जा रहे हैं। लॉकडाउन की वजह से उद्योग-धंधे ठप हो चुके हैं, जिससे देश और राज्यों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। इससे उबरने और दोबारा से उद्योगों को पटरी पर लाने के लिए राज्य सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करने भी शुरू कर दिए हैं, जिसके विरोध में सुर भी उठने लगे हैं। इसके बावजूद देश के सात राज्य अपने श्रम कानूनों में कई बड़े बदलाव कर चुके हैं। श्रम कानूनों में बदलाव की पहले शुरूआत राजस्थान की। गहलोत सरकार ने बदलाव काम के घंटों को लेकर किया।

इसके बाद फिर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने बदलाव किया तो 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात ने भी लगभग 3 साल के लिए श्रम कानूनों में बदलावों की घोषणा कर दी। अब महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा सरकार ने भी अपने यहां नए उद्योगों को आकर्षित करने और ठप पड़ चुके उद्योगों को गति देने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने 'जनादेश' के साथ बातचीत में कहा कि देश में श्रम कानूनों को निलंबित करने के फैसले ने ब्रिटिश भारत की याद ताज़ा कर दी। उन्होंने कहा कि शहीद भगत सिंह ने मज़दूरों को हक दिलाने के लिए ही असेंबली में बम फैंका था। उन्होंन कहा कि एक मई यानि अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मज़दूरों को शुभकामनाएं दी थी। वहीं दूसरी तरफ देश में राज्य सरकारें मज़दूरों के जायज अधिकारोें को खत्म कर रही हैं। उन्होंने कहा कि 1 मई 1886 मज़दूरों ने सफेद झंड़ा लेकर अपने हक के लिए लड़ना शुरू किया था। तब शासक वर्ग ने उन मज़दूरों पर गोली चला कर उस आंदोलन को कूचलने की कोशिश की थी। उसके बाद खून से सने लाल झंड़ों के साथ मज़दूरों का संघर्ष शुरू हुआ था।

उन्होंने कहा कि लंबे संघर्षों के बाद आख़िरकार कामगारों के 8 घंटा काम के अधिकार को 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) ने 1919 में मान्यता दी थी। वामपंथी नेता ने कहा कि देश में जिस श्रम शक्ति के बल पर उद्योगों और पूंजीपतियों का विकास होता रहा है। वह श्रम शक्ति भी खतरे में है। उन्होंने कहा, श्रम कानूनों में छेड़छाड़ कर वर्षों पूर्व शाहादत के बल पर लिए गए अधिकार को भी यह सरकार छीन रही है। तभी तो कई राज्यों मे श्रम कानून ठंड़े बस्ते में डालकर 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम लेने के लिए सरकार ने नियम को लागू कर दिया।

उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए राज्य सरकारों ने यह कदम उठाया है। जो कि अंतरराष्ट्रीय श्रम कानून का खुला उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा मज़दूरोें का बोनस, पीएफ अंशदान, ईएसआई जैसी ज़रूरी सुविधाओं को भी खत्म किया जा रहा है। भाकपा नेता ने कहा कि इस संबंध में सभी वामपं​थी दलों ने केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाने का फैसला किया है। उस दिशा में वामपंथी दलों ने राष्ट्रपति को पत्र भेज कर इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है।

उन्होंने बताया कि मज़दूरों के अधिकारों की लड़ाई संसद से सड़क तक लड़ी जाएगी और सरकार को ​मजदूर विरोधी फैसला वापस लेने के लिए मजबूर किया जाएगा। जिसकी शुरूआत 27 मई को 'प्रतिरोध दिवस' मनाने के साथ होगी। एक सवाल के जबाव में उन्होंने कहा कि अगर भारत सरकार ने इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया, तो वामपंथी दल 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) का दरवाज़ा खटखटाएंगे। उन्होंने कहा कि आईएलओ में याचिका दाखिल करने के लिए मसौदा तैयार किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस मामले में आईएलओ से मज़दूरों को न्याय अवश्य मिलेगा।

श्रमिक संगठनों को आशंका है कि उद्योगों को जांच और निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा। शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी मिलने से हो सकता है लोगों को बिना साप्ताहिक अवकाश के प्रतिदिन ज्यादा घंटे काम करना पड़े। हालांकि, इसके लिए ओवर टाइम देने की बात कही गई है। श्रमिक यूनियनों को मान्यता न मिलने से कर्मचारियों के अधिकारों की आवाज कमजोर पड़ेगी। उद्योग-धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ सकती है। हालांकि, इसके लिए भी ओवर टाइम का प्रावधान किया गया है। पहले प्रावधान था कि जिन उद्योग में 100 या ज्यादा मजदूर हैं, उसे बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी। अब ऐसा नहीं होगा।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले तीन साल के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने अर्थव्यवस्था और निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट का प्रावधान किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्री परिषद की बैठक में 'उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020' को मंजूरी दी गई ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को तीन साल तक श्रम कानूनों तथा एक अन्य कानून के प्रावधान को छोड़कर बाकी सभी श्रम कानूनों से छूट दी जा सके।

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम सहित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किए हैं। प्रदेश में सभी कारखानों में कार्य करने की अवधि को 8 घंटे से बढ़कर 12 घंटे कर दिया है। सप्ताह में 72 घंटे के ओवरटाइम को मंजूरी दी गई है और कारखाना नियोजक उत्पादकता बढ़ाने के लिए सुविधानुसार शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे। सरकार ने राज्य में अगले 1000 दिनों (लगभग ढाई वर्ष) के लिए श्रम कानूनों से उद्योगों को छूट दे दी है। श्रम कानून में संसोधन के बाद छूट की इस अवधि में केवल औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 लागू रहेगी। कंपनियां अतिरिक्त भुगतान कर सप्ताह में 72 घंटे ओवर टाइम करा सकती हैं और शिफ्ट भी बदल सकती हैं। श्रमिकों पर की गई कार्रवाई में श्रम विभाग व श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होगा। गुजरात की विजय रुपाणी सरकार ने भी श्रम कानूनों में बदलाव किया है।

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा, 'कम से कम 1,200 दिनों के लिए काम करने वाली सभी नई परियोजनाओं या पिछले 1,200 दिनों से काम कर रही परियोजनाओं को श्रम कानूनों के सभी प्रावधानों से छूट दी जाएगी। कंपनियों को आकृषित करने के लिए यह बदलाव किया गया है।'

गोवा, महाराष्ट्र और ओडिशा की सरकार ने भी 1948 के कारखानों अधिनियम के तहत श्रम कानूनों में ढील दी है। इन राज्यों ने कारखानों में कार्य करने की पाली 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने की अनुमति दे दी है। सप्ताह में 72 घंटे के ओवरटाइम को मंजूरी दी गई है। इन राज्य सरकार ने कोरोना वायरस महामारी की वजह से तीन महीने तक श्रम कानूनों में ढील देने का एलान किया है। दोनों राज्यों ने कहा कि श्रमिकों को अतिरिक्त घंटों के लिए अतिरिक्त भुगतान किया जाएगा।

केंद्र ने श्रम कानून में बदलाव का किया स्वागत

केंद्र सरकार ने आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए संरचनात्मक श्रम सुधारों का समर्थन किया। राज्य सरकार द्वारा लाए गए व्यापक श्रम कानून में बदलाव और छूट का समर्थन किय। केंद्र सरकार और मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों को विश्वास है कि सुधारवादी मानसिकता और श्रम अनुपालन अवकाश अधिक निवेश को आकर्षित करेंगे और इससे विकास सुनिश्चित होगा।

आरएसएस से जुड़ा संगठन भी विरोध में

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने भी श्रम कानूनों में किए जा बदलाव को लेकर अपना विरोध जताया है। मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने कहा, 'भारत में वैसे ही श्रम कानूनों का पालन कड़ाई से नहीं होता और जो हैं भी उन्हें भी निलंबित या खत्म किया जा रहा है। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। देश में नौकरियों की कमी है और लोगों को मनमाने तरीके से इस्तीफा लेकर नौकरियों से निकाला जा रहा है। मजदूर संघ राज्य सरकारों के इस कदम का समर्थन नहीं करता और इसके विरोध के लिए हम कार्ययोजना बनाएंगे।

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