(आशु सक्सेना) लॉकडाउन का आज 40 वां हो गया। 41 वें दिन देश के हरित क्षेत्र (ग्रीन जोन) में एक बार फिर जीवन पटरी पर आ जाएगा। सोमवार से इस क्षेत्र में सामाजिक दूरी के नियम को छोड़कर बाकी सभी सरकारी बंदिशें खत्म हो जाएंगी। इस क्षेत्र में चाय, पान, बीड़ी, सिगरेट, गुटके और शराब की दुकानें खुलने लगेंगी। साफ है कि सड़कों पर चहन पहल के साथ महफिले फिर सजने लगेंगी। जबकि रेड़ जोन में बंदिशें पहले की तरह लागू रहेंगी। केंद सरकार ने 17 मई तक लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाने का सरकारी आदेश जारी कर दिया है। वहीं ऑरेंज जोन में कुछ बंदिशों के साथ सीमित छूट दी जाएगी।
देश की सेना ने लॉकडाउन के 40 वें दिन कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ रहे योद्धाओं के सम्मान में आसमान से फूलों की वर्षा की। भारतीय वायुसेना ने सुखोई जैसे लड़ाकू विमान के जरिए देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित कोरोना वायरस अस्पतालों के ऊपर फूल बरसाए। भारतीय थलसेना इन अस्पतालों के पास अपनी धुन से कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ाया। वहीं नौसेना अपने जहाजों को रोशन करके कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जीत दर्ज करने का संदेश दिया।
उधर भारतीय रेलवे ने भी पटरी पर दौड़ना शुरू कर दिया है। देश भर में फंसे प्रवासी मजदूरों को रेल मार्ग से उनके गंतव्य तक पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया है। हांलाकि इन मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचने से पहले 'एकांतवास' में रखा जाएगा। इससे पहले कोटा में फंसे हजारों छात्रों को राज्य सरकारें बसों से उनके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निभा चुकी हैं।
वहीं दूसरी और देश में कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। देश में कोविड-19 संक्रमित मरीजों का कुल आंकड़ा बढ़कर चालीस हज़ार के पार पहुंच गया है जबकि अब तक तेरह सौ से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अब सवाल यह है कि क्या हमने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई जीत ली है। क्या हमनें इस महामारी पर काबू पा लिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के हर रोज़ जारी आंकड़ें साफ संकेत दे रहे हैं कि इस महामारी पर फिलहाल तक काबू नही पाया जा सका है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के 35 दिन बाद प्रवासी मजदूरों को उनके गॉव तक पहुंचाने का फैसला करके क्या जाने अनजाने इस खतरनाक बीमारी को गांवों तक तो नहीं पहुंचा दिया। यह तो भविष्य के हालात से तय होगा।
फिलहाल केेंद्रीय गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन को 17 मई तक बढाने की घोषणा के साथ देश के सभी ज़िलों को ग्रीन जोन, ऑरेंज और रेड जोन में बांटकर नया शासनादेश जारी किया है। इस आदेश में यह साफ कर दिया गया है कि ज़िले में कोरोना संक्रमण की जांच का काम जारी रहेगा और अगर किसी ज़िले में पुन: कोरोना संक्रमण फैलने के लक्षण नज़र आते हैं, तब उस ज़िले की श्रेणी में परिवर्तन किया जा सकता है। इस निगरानी का काम राज्य सरकारों को करना है। बहरहाल, केंद्र सरकार ने अब सशर्त तालाबंदी की छूट दे दी है। अब अगर किसी प्रदेश में संक्रमण फैलता है, तो इसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार होगी।
अब सवाल यह उठता है कि केंद्र सरकार ने कोरोना से निपटने का जो रास्ता अख्तियार किया, वह क्या देश के हित में रहा या सरकार से कोई चूक हो गई, जिसका खामियाजा भविष्य में देशवासियों को भुगतना होगा।
आपको याद दिला दें कि पडौसी देश चीन से निकला कोरोना वायरस (कोविड-19) दिसंबर में दस्तक दे चुका था। जनवरी के अंत तक दूसरे देशों में इस वायरस के फैलने की ख़बरें आने लगी थी। यानि यह बात साफ हो गई थी कि आसमान और समुंद्र के रास्ते यह वायरस देश में प्रवेश कर सकता है। उस वक्त हमारे देश में इससे बचने की सही मायनों मे कोई रणनीति भी तय नहीं की गई थी। उस वक्त देश में प्रधानमंत्री मोदी के मिनी इंडिया यानि दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार अपने चरम पर था। फरवरी के पहले सप्ताह तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत पूरा केबिनेट चुनाव में व्यस्त था। सीएए और 370 जैसे मुद्दे गरमाए हुए थे।
11 फरवरी को चुनाव नतीज़े आने के बाद चुनावी माहौल तो शांत हो गया, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा से ठीक पहले दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क गये। इस दंगे में 50 से ज्यादा लोग मारे गये। फरवरी के महीने में केंद्र सरकार दिल्ली चुनाव, दंगे और अहमदाबाद में होने वाले 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में व्यस्त रही। इस बीच जनवरी के अंंत में संसद का 'बजट सत्र' शुरू हो चुका था।
सही मायनों में 19 मार्च तक केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए कोरोना वायरस को छूत की बीमारी करार देते हुए इससे बचाव के लिए 'सामाजिक दूरी' को एकमात्र उपचार बताते हुए अगले रविवार 22 मार्च को सुबह सात बजे से रात्रि 9 बजे तक एक दिन के 'जनता कर्फ्यू' की घोषणा की। साथ ही प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य कर्मचारियों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए शाम पांच बजे घर के दरवाजे या बालकनी में आकर ताली और थाली बजाने को कहा। कोरोना के खिलाफ 'जनता कर्फ्यू' पूरी तरह सफल रहा। लेकिन शाम पांच बजे ताली और थाली के आयोजन के बाद इससे लड़ाई की पहली शर्त सामाजिक दूरी की खुलकर धज्जियां उड़ी।
आपको याद दिला दें कि इस दौरान संसद बजट सत्र चल रहा था। कोरोना वायरस का मुद्दा संसद में उठ चुका था। सांसदों ने संसद सत्र स्थगित करनेे की मांग की, तब सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया था। दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने की राजनीतिक उठापटक भी अपने चरम पर थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों की इस पूरे घटनाक्रम में काफी व्यस्त नज़र आ रहे थे। 20 मार्च को मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का पतन हो गया और 23 मार्च को वहां भाजपा की सरकार अस्तित्व में आ गई।
उसके बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से देश भर में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की। प्रधानमंत्री की इस अचानक घोषणा से समूचे देश में अफरा तफरी का माहौल बन गया। बड़ी तादाद में प्रवासी मज़दूरों ने पलायन शुरू कर दिया। रेलवे और बसों के अचानक बंद होने के बाद प्रवासी मज़दूरों ने पैदल ही अपने घरों की ओर पलायन शुरू कर दिया। इससे देशभर में अफरातफरी का माहौल बन गया। तब केंद्र सरकार ने प्रवासी मज़दूरों को जहां हैं, वहीं रोकने का आदेश जारी कर दिया। राज्य सरकारों ने अपनी सीमाएं बंद कर दी। नतीजतन मजदूर जहां थे, वहीं फंस गये।
लॉकडाउन के दौरान पिछले महीने 3 अप्रैल को पीएम मोदी ने एक बार फिर कोरोना को लेकर देश को संबोधित किया। इस बार मोदी ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए 5 अप्रैल की तारीख निर्धारित की। पीएम मोदी ने इस दिन रात 9 बजे घर की लाइट 9 मिनट बंद करके 'दीया' जलाने का आव्हान किया। पीएम मोदी का यह इवेंट विवादों में घिर गया। क्योंकि 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई थी और इस साल पार्टी की 40 वीं वर्षगांठ का मौका था। यहां यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि पीएम मोदी ने कोरोना वायरस को लेकर जो दो इवेंट करवाए, उन दोनों ही दिन सेना के जवानों के शहीद होने की ख़बरों से भी देशवासियों को तकलीफ हुई थी। इत्तफाक से लॉकडाउन के 40 वें दिन जब भारतीय सेना कोरोना योद्धाओं की हौंसला अफजाई कर रही है। तब जम्मू कश्मीर में आंतकवादियों से मुठभेठ में सेना के पांच जवानों की शाहदत भी सुर्खियों में है।
बहरहाल, लॉकडाउन के 40 दिन जहां कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ा है। वहीं देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। इस दौरान मज़दूर वर्ग पूरी तरह टूट गया है। सरकार का दावा है कि इस दौरान उसने आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आने दी है। यह बात सही है कि खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में ज्यादा दिक्कत नहीं आयी। लेकिन खुदरा विक्रेताओं ने हर चीज़ के औने पौने दाम बसूल किये। इस दौरान खासकर बीड़ी, सिगरेट और गुटके की काला बाज़ारी चरम पर रहीं। जिसके चलते मज़दूर वर्ग आर्थिक तौर पर पूरी तरह टूट चुका है। उसकी जमा पूंजी पूरी तरह खत्म हो चुकी है। लिहाजा असमंजस की इस स्थिति में अब मज़दूर किसी भी कीमत पर अपने घरों से दूर रहने को तैयार नहीं है।
मज़दूरों के पलायन का सीधा असर देश की अर्थ व्यवस्था पर पड़ना स्वाभाविक है। ग्रीन जोन वाले ज़िलों में तालाबंदी तो खत्म हो जाएगी। व्यवसायिक गतिविधियों को सुचारू रूप शुरू करने में दिक्कत आएगी। घरों में काम करने वालों से लेकर कारखानों और निर्माण कार्य से जुड़े मजदूरों की उपलब्धता की दिक्कत खड़ी होती नज़र आ रही है।
सरकार ने अगर लॉकडाउन से पहले प्रवासी मज़दूरों के बारे में कोई विस्तृत योजना बनाई होती, तो अब आने वाली दिक्कत से बचा जा सकता था। केंद्र सरकार ने अगर लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही प्रवासी मज़दूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दी होेती, तो अब इन मज़दूरों की नये सिरे से जांच नही हो रही होती। वहीं केंद और राज्य सरकारें इन प्रवासी मज़दूरों को घर पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाने के विपरित उन्हें वापस शहरों तक लाने की योजना पर काम कर रही होतीं। लॉकडाउन के 40 दिन पर निगाह डालने के बाद फिलहाल सिर्फ अंधकार ही नज़र आ रहा है। करोड़ों मज़दूरों के पलायन से जहां शहरों में आर्थिक गतिविधियां शुरू होने में दिक्तत नज़र आ रही है। वहीं मजदूरों के पलायन से गांवों तक इस खतरनाक महामारी के वायरस के पहुंचने का खतरा भी बना हुआ है।