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(प्रभात शुंगलू): अमरीका में कोरोना से मरने वालों की संख्या तेरह हज़ार पहुंच गई है। और ये संख्या लगातार बढ़ रही, और तेज़ी से बढ़ रही। ऐसे माहौल में भी राष्ट्रपति ट्रंप क्या कर रहे। अपने वही बड़बोले बयान दे रहे, धमकी दे रहे। कल डब्ल्यूएचओ को धमकी दी। चाईना की तरफदारी करते हो। देख लूंगा तुम्हे। पछताओगे, पैसे काट लूंगा तुम्हारे। ट्रंप इंडिया को धमकी दे रहे, हमें ऐंटी मलेरिया दवाइ नहीं दोगे, देख लूंगा तुम्हे। क्यों भई अभी कुछ दिनों पहले तो आप जनाब प्रधानमंत्री मोदी से मिलने भारत आये थे। इतना बड़ा नमस्ते किया था मोदी जी ने आपको, मोटेरा स्टेडियम में। हमें तो लगा मोदी जी और आप गहरे दोस्त हैं। आदतें भी कितनी मिलती हैं आप दोनो की। फिर एक दोस्त को धमकी।

वो तो कहिये मोदी जी काफी दयालू हैं, गाड़ी के नीचे आये पिल्ले के लिए भी उनके मन में दया का भाव रहता है, वो दोस्ती निभाना जानते हैं और भारत तो सदियो से सहिष्णु रहा हैं – हैं, यही कारण हैं कि आपको ये दवाइयों की कमी होने नहीं दी जायेगी ट्रंप जी, लेकिन मुझे मालूम है आप इसी भ्रम में रहेंगे कि आपकी धमकी काम कर गई।

आज जानेंगे कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति और सबसे बड़बोले राष्ट्रपति श्री श्री ड़ोनाल्ड ट्रंप ने कैसे अपने ही नागरिकों को कोरोना से सुरक्षा देने के बजाय उस संक्रमण को पैर पसारने की पूरी छूट दी। कैसे ट्रंप प्रशासन ने कोरोना से लड़ने की तैयारी करने में पूरे दस हफ्तें वेस्ट कर दिये। मास्क, ग्लवस, वंटिलेटर, बेड्स की हफ्तों हफ्तों कमी रही। राष्ट्रपति ट्रंप, हफ्तों तक एकस्पर्ट की राय को खारिज करते हुए ये भ्रम फैलाते रहे कि यो ते कॉमन फ्लू है, इसकी क्या औकात जो मुझसे टक्कर ले ले। क्या वो जानता नहीं मैं कौन हूं। मैं ट्रंप हूं, ट्रंप। मैं किसी की नहीं सुनता। एक्सपर्ट की भी नहीं। जानकारों की भी नहीं। मुझे मालूम है बादल हैं तो रडार नहीं पकड़ेगा। मैं हावर्ड का नहीं तो क्या मुझे हार्ड़वर्क में यकीन है। मुझे मालूम है नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा, आतंकवाद खत्म हो जायेगा। मैं कपड़ों से ही उस एंटी-नेशनल वायरस को पहचान लेता हूं।..अरे, अरे, ये मैं किसकी बात कर रहा। शायद थोड़ा भटक गया। मैं तो आपको बस इतना बताना चाह रहा था कि कुछ ऐसी ही कैफियत के तो श्री श्री ट्रंप जी भी हैं।

आज कोरोना का अगर कोई ग्लोबल एपिसेंटर हैं तो वो इटली नहीं अमरीका है, जहां कोरोना के मामले चार लाख पार कर चुके हैं। वो अमरीका जहां अब व्हाइट हाउस भी ये आशंका जता रहा है कि कोरोना से मौत का आंकड़ा दो ढाई लाख पहुंच सकता है। यानि जिस तेज़ी से कोरोना अमरीका में फैल रहा उससे साफ है कि कुछ दिनों में ये स्पेन और इटली में कोरोना से होने वाली मौत को पीछे छोड़ देगा। ट्रंप जी की लापरवाही की वजह से मौत भी एक संख्या बन कर रह गई है। अमरीका ने डाक्टरों और एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि अगले कुछ दिन अमरीका के लिये बहुत ही दर्दनाक होने वाले हैं। एक्सपर्ट इसे अमरीका का पर्ल हारबर मोमेंट बता रहे, जब second world war में जापान ने अचानक हमला बोल कर अमरीका को चौंका दिया था। चलिये शुरू से शुरू करते हैं।

चीन में दिसंबर के तीसरे हफ्ते में कोरोना का पता लगता है। जनवरी के तीसरे सप्ताह में कोरोना पॉज़िटिव का पहला केस अमरीका में। उन्तीस फरवरी को पहली मौत। १७ मार्च को सौवीं मौत। बीस मार्च तक न्यूयार्क में ही कोरोना से मरने वालों की संख्या हजार पार कर जाती है। और इक्कसी मार्च को एन ९५ मास्क का पहला थोक औडर होता है यानि तीन जनवरी से २१ मार्च के दस हफ्ते वेस्ट कर दिया जाते हैं। क्या होता है इस बीच – ये जान लेना भी ज़रूरी है। ठीक है चीन और यूरोप से आने वाली फ्लाइट बंद कर दी जाती हैं, मगर सोशल डिस्टेंसिंग का बिल्कुल ख्याल नहीं रखा जाता है। कोई लॉकडाउन नहीं। काफी दिनों तक मॉल, बाज़ार, सब खुले रहते हैं। ऐसा लगता है मानो लाइफ नार्मल है। फ्लोरीडा के बीच पर पार्टियां पहले की तरह ही चलती रहती हैं। यानि सब काम होता रहा सिवाय कोरोना टेस्टिंग के। जो बहुत पहले ही युद्ध स्तर पर शुरू हो जानी थी।

कोरोना को लेकर ट्रंप प्रशासन की तैयारी का आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अमरीका और दक्षिण कोरिया में एक ही दिन बीस जनवरी को पहला कोरोना पॉज़िटिव केस मिलता है। लेकिन दक्षिण कोरिया युद्द स्तर पर टेस्ट करवाता है, प्राइवेट कंपनियों से युद्द स्तर पर मास्क, गल्वस, वंटिलेटर उपलब्ध करवाता है, और टेस्ट करवाता है, कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग करवाता है। पचास दिनों में ही चार लाख टेस्ट करवा लेता है, जबकि अमरीका में टेस्टिंग में ही छह हफ्तों का समय गंवा दिया जाता है। दक्षिण कोरिया के आंकडे देखिये – दस हज़ार मामले, छह हज़ार से ज्यादा४ रिकवर कर चुके हैं, और दो सौ मौतें। यानि रिकवरी रेट भी साठ फीसदी। वहीं अमरीका चार लाख मामलों से साथ नंबर वन पर है, अब तक लगभग तेरह हज़ार मौते।

आपको मालूम है कि कुछ महीने पहले ही ट्रंप प्रशासन ने हेल्थ बजट नें भारी कटौती की थी। वायरल डिज़ीस कंट्रोल करने वाला जो डिपार्टमेंट राष्ट्रपति ओबामा बना कर गये थे, उसे ट्रंप पहले ही बंद करवा चुके थे, इस डिपार्टमेंट ने साल दो हज़ार तेरह-चौदह में इबोला संक्रमण में काम किया था, इसका काम था ऐसे वायरस आउटब्रेक की अरली वॉरनिंग देना। लेकिन वो डिपार्टमेंट तो बंद हो चुका था, बताया ना एक्सपर्ट की क्या ज़रूरत। ट्रंप हैं न। रेस्पिरेटर्स मैंटेनेंस वाली कंपनियों से भी सालाना खाता बंद। और ये वो जनाब हैं जो जब से शासन में आये हैं कह रहे India First अरे...स़ॉरी, अमरीका फर्स्ट। इस बीच ट्रंप ने गोदी मीडिया को साथ लिया, जो ट्रंप का साथ उनके झूठ का भागीदार बना।

अमरीका का गोदी मीडिया ट्रंप के समर्थन में प्रचार करता रहा, उनका महान योद्धा और रणनीतिकार बताता रहा। जबकि अमरीका में वायरस आउटब्रेक के हफ्तों तक वेंटिलेटर से लेकर डाउगनोस्टिक किट की भी कमी सताती रही। पीपीई फाइनेली सोलह मार्च को थोक में ऑडर हुआ। लेकिन इस बीच ट्रंप, जानकारों की राय के खिलाफ कभी इस दवाई तो कभी उस दवाई का हवाला देकर कहते रहे कि अरे, सब ठीक हो जायेगा। ट्रंप ने कभी इंपीचमेंट, कभी हेल्थ वर्कर, कभी चाईना को दोषी बताया और खुद को हमेशा दस बटे दस नंबर देते रहे।

यहां भारत में उनके मित्र अपनी हर गल्ती के लिये नेहरू को ज़िम्मेदार मानते हैं, उधर ट्रंप ने कोरोना जंग में अपनी लापरवाही के लिये ओबामा को ज़िममेदार ठहराया। यानि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति और सबसे बड़बोले राष्ट्रपति ने कोरोना से जंग कैसे लड़ी। सच को झुठला कर, एक झूठा नैरेटिव खड़ा कर के। चुनावी साल में ट्रंप भी देश विदेश की यात्रा करते रहे। विदेश घूमने से इमेज बनती है। और जब दोस्त ऐसा हो जो लाखों की भीड़ जमा कर सके, वो इससे अच्छी क्या बात होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत में एक लाख लोगों को इकठठा करके बड़ा से नमस्ते ट्रंप बोला। यानि तब तक सोशल डिस्टेंसिंग की महत्ता या या संक्रमण की गंभीरता को लेकर न राष्ट्रपति ट्रंप और न प्रधानमंत्री मोदी कतई सजग थे, और थे भी तो उसे फौरी तौर पर लागू करवाने से कयों परहेज़ कर रहे थे ये बात चकित करती है क्योंकि अमरीका के लिये ये लापरवाही बहुत घातक साबित हुई। जबकि फैक्ट ये है कि अमरीका और भारत दोनो देशों में कोरोना दस्तक दे चुका था। बल्कि ट्रंप के अमरीका वापस लौटते ही उनतीस फरवरी को अमरीका में कोरोना से पहली मौत हुई। ये ट्रंप को भी नहीं मालूम था वो एक अदृ्शय दुश्मन से पंगे ले चुके हैं। अगले एक महीनें में हज़ारों की जान लीलने वाला था। जहां तक रही बात भारत की, तो चौबीस फरवरी को मोदी-ट्रंप मुलाकात से पचीस दिन पहले ही केरल में पहला कोरोना केस तीस जनवरी को रिपोर्ट हो चुका था।

एयर इंडिया ने चाइना से अपनी सारी फ्लाइटस इकत्तीस जनवरी से ही सस्पेंड कर दी थी। इंडिगो ने भी। आज भारत मे कोरोना मामले पांच हज़ार पार कर चुके हैं, और डेढ सौ लोग इस संक्रमण में अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं। भारत में फिलहाल टेस्टिंग और कॉन्टैक्ट ट्रंसिग में तेज़ी आई है, लेकिन पीपीई उपकरणों की अभी भी घोर कमी बताई जा रही, डाक्टर्स भी कोरोन के संक्रमण का तेज़ी से शिकार हो रहे। और लॉकडाउन और नहीं बढ़ेंगा इसकी संभावना कम दिखती है। अमरीका में अब राष्ट्रपति ट्रंप बोल रहे कि हम कोरोना के खिलाफ ये युद्ध जीत के रहेंगे। लेकिन अमेरिका में ये चर्चा अब आम है कि ऐसी युद्ध जैसे स्थिति में ट्रंप जैसा कमांडर न ही हो तो अच्छा है।

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