(जलीस अहसन) दुनिया भर में फैलती जा रही कोरोनावायरस महामारी की दहशत के बीच तबलीग़ी जमात ने भारत में आग में घी डालने का काम किया है। इसकी जहालत भरी एक हरकत से देश भर में दर्जन भर से ज़्यादा कोरोनावायरस के हाट स्पाट पैदा हो गए हैं। जमात के प्रमुख, मौलाना मुहम्मद साद को हालांकि इसका कोई पछतावा या एहसास नहीं है। इस घटना के बाद कहीं छिपे हुए साद ने बड़ी ढीटाई से जारी बयान में कहा, कोई भी आज़ाब आए तो मस्जिदों की तरफ दौड़ो। मस्जिदों में जमा होने से बीमारी फैलेगी, यह बातिल (गलत) ख्याल है और अगर मर भी जाएं, तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई हो नहीं सकती।
ऐसी जहालत भरी बात वह उस वक़्त कर रहे हैं जबकि कोरोनावायरस के आज़ाब से बचाने के लिए इस्लाम के दो सबसे बड़े धर्म स्थलों मक्का और मदीना को बंद कर दिया गया है। मक्का में उमरा (तीर्थ यात्रा) बंद करने के साथ ही सउदी सरकार ने दुनिया भर के मुसलमानों से कहा है कि वे इस साल जुलाई को होने वाले हज के लिए फ्लाइट और होटलों की बुकिंग अभी नहीं कराएं। यानी, उसने साफ संकेत दे दिया है कि कोरोनावायरस के चलते इस साल हज भी शायद नहीं हो।
पैग़म्बर मुहम्मद ने आज़ाब से हमेशा एहतियात बरतने की सीख दी। वह कहा करते थेए जहां आज़ाब (महामारी) फैला हो वहां मत जाओ और न ही आज़ाब फैलने वाली जगह के लोग वहां से बाहर आएं। आज़ाब से एहतियात बरतो।
लेकिन एहतियात बरतने की पैग़म्बर की इस सीख के उल्ट मौलाना साद कहते हैं कि 'डर से मस्जिद छोड़ना अल्लाह के दस्तूर के खिलाफ है।' हालांकि अपने को फंसा पाकर मौलाना ने अब पल्टी खाते हुए कहा है कि वो भी एहतियात बरतने के हिमायती हैं। अब वह दलील दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा अचानक लाकडाउन की घोषणा कर देने से दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित तबलीग़ी जमात के मरकज़ में लोग फंसे रहे गए देश भर में यातायात रूक जाने से वहां आए लोग वापिस नहीं जा सके। यह भी लचर दलील और सफेद झूठ है।
तथ्य यह है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 13 मार्च को एलान किया था कोरोनावयरस के फैलाव को रोकने के लिए दिल्ली में किसी भी धार्मिक सामाजिक या अन्य आयोजनों में 200 से ज़्यादा लोग एक जगह इकठ्ठे नहीं होंगे। दिल्ली सरकार ने 16 मार्च को यह संख्या 50 करदी और 21 मार्च को 5 लोगों से अधिक के एक जगह एकत्र होने पर पांबदी लगा दी।
सवाल यह है कि दिल्ली सरकार की इस फैसले के बाद भी लाकडाउन का एलान होने तक तबलीग़ी जमात के मरकज़ में 4000 से ज़्यादा लोग क्यों और कैसे जमा रहे। यह बात सच है कि इसकी जवाबदेही दिल्ली प्रशासन और पुलिस पर भी बराबर की है। निज़ामुद्दीन थाना और मरकज़ की इमारते आपस में मिली हुई हैं। ज़ाहिर है पुलिस और प्रशासन से यह बात छिपी नहीं थी कि 5 से अधिक लोगों के एक जगह एकत्र होने की मनाही के बावजूद मरकज़ में आठ सौ से ज़्यादा विदेशियों सहित हज़ारों लोग मौजूद थे। अब यह एक सच्चाई है कि मरकज़ में मौजूद लोग धर्म प्रचार करने के लिए देश के जिस जिस हिस्से में गए, वहां कोरोनावायरस के मामलों में तेज़ी से उछाल आया है। अकेले दिल्ली में कोरोनावायरस के संदिग्धों की संख्या 478 हो गई है जिनमें से 259 तबलीग़ से जुड़े हैं।
उधर पाकिस्तान में भी तबलीग़ी जमात के प्रमुख मौलाना तारिक जमील, मौलाना साद से कम नहीं हैं। उन्होंने शुरू में कहा कि कोरोनावायरस अल्लाह की तरफ से भेजा गया आज़ाब है और एहतियात से कुछ नहीं होगा। शायद, बाद में वहां की सरकार का दबाव पड़ने पर उन्होंने अपना रूख बदला और पाकिस्तान में दो दिन पहले आयोजित तबलीग़ी जमात के विशाल सम्मेलन को सिर्फ एक छोटी से दुआ के साथ यह कर समाप्त घोषित कर दिया दिया कि कोई आपस में हाथ नहीं मिलाए और न ही गले मिले।
जहालत और पिछड़ेपन की बाते हर मज़हब के कुछ तबकों में होती हैं, मगर ये समय उन पर चर्चा करने का नहीं है। इस मसले को लेकर विभिन्न धर्मो के मानने वालों को आरोप-प्रतिआरोप लगाने से बचना चाहिए। कोरोनावायरस पूरी मानवता के लिए एक बड़े खतरे की शक्ल में उभरा है। यह खबर लिखे जाने तक दुनिया में कोरोनावायरस की चपेट में 10 लाख से ज़्यादा लोग आ चुके हैं और मरने वालों की तादाद 53000 पार कर गई है। विश्व के सबसे आधुनिक और ताक़तवर देश अमेरिका में ही 6000 लोग जान गवां चुके हैं। भारत में इसके 2547 मामले सामने आ चुके हैं और 62 लोगों की जान जा चुकी है। इटली में इससे 14680 और स्पेन में 10035 लोग मारे गए हैं।
हां, आखि़र में इस लेख की अटपटी हैडिंग के बारे में। जब मैं छोटा था तो पुरानी दिल्ली में रहता था। वहां मस्जिदों में ले जाने के लिए जब तबलीग़ी जमात के लोग आते थे उन्हें देखते ही गलियों में खेल रहे बच्चे शोर मचाना शुरू कर देते थे, ‘‘ अबे भागो बे, अल्ला मियां की पुलिस आई है‘‘! अब मैं जामिया नगर में रहता हूं। ये बात जब मैंने अपने बेटे को बताई तो उसने कहा, ‘‘अब्बा, यहां भी बच्चे इन्हें देख कर यही कहते हैं।