(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मिनी इंडिया' यानि दिल्ली में चुनावी बिगूल बज चुका है। नामांकन दाखिल करने की प्रकिया समाप्त हो चुकी है। राजनीतिक दलों ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी कर दी है। लेकिन केंद्र की सत्तारूढ़ पर काबिज दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्टार प्रचारक पीएम मोदी का चुनावी कार्यक्रम अभी तक जारी नही किया गया है। 2014 में पिछली बार केंद्र की सत्ता पर काबिज होने से पहले हुए विधानसभा चुनावों खासकर मध्य प्रदेश, झारखंड़ और राजस्थान के चुनाव में भाजपा ने पार्टी के पीएम उम्मीदवार मोदी को स्टार प्रचार के तौर पर पेश किया था। इन चुनावों में पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली थी। तीनों राज्यों में भाजपा का परचम लहराया था। तब से लेकर हाल में सम्पन्न झारखंड़ विधानसभा चुनाव तक पीएम मोदी ने भाजपा के स्टार प्रचारक की भूमिका अदा की है।
आपको याद दिला दूं कि दिल्ली विधान सभा के पिछले चुनाव में पीएम मोदी ने राजधानी दिल्ली को 'मिनी इंडिया' बताया था और कहा था कि 'मिनी इंडिया' का संदेश पूरे देश में जाता है। उस वक्त पीएम मोदी ने अपने करीब सात महीने के रिर्पोट कार्ड पर जनादेश मांगा था।
इसके बावजूद भाजपा को यहां करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की थी और सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के डेढ़ साल बाद हुए पीएम मोदी के मिनी इंड़िया के विधानसभा में भाजपा का हश्र यह हुआ कि पार्टी विपक्ष के नेता की दावेदारी के लायक सीटें भी नही बचा सकी थी। हांलाकि भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पर हमला बोलते हुए लोकसभा चुनाव नतीज़ों का ज़िक्र किया था और कहा था कि वह पार्टी जिसे लोगों ने इतनी सीट नही दी कि वह नेता विपक्ष की भी दावेदारी भी कर सके। वहीं यह बात दीगर है कि चुनाव नतीजों के बाद पीएम मोदी के मिनी इंड़िया में उनकी पार्टी खुद उस कगार में हो चुकी थी।
दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव में करीब एक साल के राष्ट्रपति शासन के बाद आम आदमी पार्टी दूसरी बार जनादेश के लिए चुनाव मैदान में थी। वहीं केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा करीब 16 साल प्रदेश की सत्ता पर वापसी के लिए सबसे बड़ी दावेदार थी। जबकि कांग्रेस 2013 के विधान सभा चुनाव में ही चुनावी दौड़ से बाहर हो चुकी थी।
अन्ना आंदोलन के बाद अस्तित्व में आयी आम आदमी पार्टी (आप) ने 2013 के चुनाव में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी 28 सीटों के साथ दूसरा सबसे बड़ा दल बन कर उभरी। भाजपा को सत्ता से दूर रखने की रणनीति के तहत कांग्रेस ने आप सरकार को अपने 9 विधायकों के समर्थन की घोषणा कर दी और कांग्रेस के समर्थन से वह पहली बार सत्ता पर काबिज हुए। लेकिन 49 दिन बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। विधानसभा को निलंबित करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की। उसने 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं इस चुनाव में कांग्रेस जहां अपना खाता नही खोल पायी। वहीं भाजपा तीन सीट पर सिमट गई।
पांच साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा केंद्र की मोदी सरकार के कामकाज पर जनादेश मांग रही है। वहीं सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल अपने रिर्पोट कार्ड़ पर सत्ता में वापसी की दावेदारी कर रहे हैं। कांग्रेस भी एक दावेदार है, जो इन दोनों की नाकामियों को चुनावी मुद्दा बनाए हुए है। चुनाव नतीज़े तो 11 फरवरी हो आएंगे और तभी तय होगा कि मतदाता ट्रिपल इंजन की सरकार पसंद करेंगे या फिर एक इंजन वाली सरकार पर भरौसा करेंगे। लेकिन एक बात साफ है कि पीएम मोदी के 'मिनी इंड़िया' का जनादेश एक बार फिर समूचे राष्ट्र को संदेश देगा।
2020 के चुनाव में भाजपा पीएम मोदी के कामकाज पर जनादेश मांग रही है। वह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के 370, सीएए जैसे फैसलों से राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को रिझा रही है। वहीं केजरीवाल जनता को दी गई सुविधाओं को चुनावी मुद्दा बनाए हुए हैं। उनके खिलाफ भाजपा का तर्क है कि वह फ्री बांट कर मतदाताओं को गुमराह कर रहे हैं। वहीं केजरीवाल का तर्क है कि भ्रष्टाचार रोक कर जो पैसा सरकार बचा रही है, तो उसे जनता में बंटने में क्या हर्ज है।
बहरहाल, चिंता का विषय यह है कि भाजपा के स्टार प्रचार पीएम मोदी पिछली बार की तरह सक्रिय क्यों नही है। हाल ही में हुए छोटे राज्य झारखंड़ में पीए मोदी ने 9 चुनावी रैलियां की थी। पीएम मोदी ने चुनावी सभाओं में डबल इंजन की सरकार को दोबारा चुनने के लिए वोट मांगे थे। नतीज़ा यह हुआ कि वहां के मुख्यमंत्री चुनाव हार गये। मतदाताओं ने डबल इंजन की सरकार के नारे को खारिज कर दिया और एक क्षेत्रीय दल को सत्ता की बागड़ोर सौंप दी। सही मायनों मे यह पीएम मोदी की हार है। जिसे फिलहाल वह स्वीकार नही कर रहे हैं। लेकिन उनको यह एहसास है कि वह अपने रिर्पोट कार्ड पर दिल्ली की चुनावी जंग नही जीत सकते।
लिहाजा वह पिछली बार की तरह इस बार चुनावी संघर्ष में सक्रिय नही है। हांलाकि चुनाव से ठीक पहले कच्ची कालोनियों को पक्की कालोनियों में तब्दील करके उन्होंने दिल्लीवासियों को एक सौगात देकर आकर्षित करने का प्रयास किया है। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलती है, यह चुनाव नतीजे ही बताएंगे।
यूं तो लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव नतीजों ने पीएम मोदी की वापसी पर सवालिया निशान लगा दिया था। भाजपा की हार का सिलसिला तो कर्नाटक चुनाव से ही शुरू हो गया था। मई 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा लोकसभा के चुनाव परिणाम को नही दोहरा सकी और बहुमत से दूर रह गई थी। वहां भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए क्षेत्रीय दल जेडीएस और कांग्रेस की सरकार बनी। हांलाकि बाद में उस सरकार का पतन हो गया और आज भाजपा बहुमत वाली सरकार के बूते सत्ता पर काबिज है।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव के चुनाव से पीएम मोदी को करारा झटका लगा था। तीनों की राज्य में भाजपा को ना सिर्फ सत्ता गंवानी पड़ी थी, बल्कि पीएम मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के विपरित तीनों ही सूबों में कांग्रेस की वापसी हुई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी का जादू बरकरार रहा। इन सभी राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया। पीएम मोदी दूसरी बार पहले से ज्यादा बहुमत से सत्ता पर काबिज हुए। लेकिन उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है।
महाराष्ट्र और झारखंड़ में भाजपा सत्ता गंवा चुकी है। महाराष्ट्र में भाजपा की विचारधारा के सबसे नज़दीक क्षेत्रीय दल शिवसेना 30 साल पुराना रिश्ता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ नाता जोड़ चुकी है। वहीं हरियाणा में पूर्ण बहुमत की सत्ता गंवाकर एक क्षेत्रीय दल जेजेपी के साथ सत्ता की खातिर समझौता करना पड़ा है। आपको याद दिला दूं कि चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने के लिए हरियाणा में पीएम मोदी ने पाकिस्तान को चुनावी मुद्दा बनाया था। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने वादा किया था कि पाकिस्तान जाने वाले पानी को वह बंद कर देंगे। इसके बावजूद पार्टी को दोबारा बहुमत नही दिला सके थे।
ऐसे में भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीएए, एनपीआर और एनसीआर के नाम पर हिंदु ध्रुव्रीकरण और बिहार के अपने क्षेत्रीय सहयोगी जनतादल यू और लोक जनशक्ति पार्टी पार्टी के बूते चुनावी समर में है। इसके उलट देश का राजनीतिक परिदृश्य यह है कि सीएए पर भाजपा के साथ इन दोनों की घटक दलों का मतभेद है। वहीं दिल्ली चुनाव में एक अन्य घटक पंजाब के अकाली दल ने सीएए के मुद्दे पर भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया है। आपको याद दिला दूं कि दिल्ली के उप चुनाव में भाजपा ने पिछली विधानसभा में चौथी सीट जीती थी। वह सीट अकाली दल के उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा ने राजौरी गार्डन सीट से भाजपा के टिकट पर जीती थी। उन्होंने प्रेस वार्ता में सीएए पर भाजपा से असहमति जताते हुए घोषणा कि भाजपा के साथ सीट बंटवारा मुद्दा नही है। सीएए पर हम मुसलमानों को बाहर करने के विरोध में है। लिहाजा भाजपा के साथ चुनाव नही लड़ा जा सकता।
दिल्ली में भाजपा की घबराहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में बिहार के बगल वाले सूबे झारखंड़ में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले भाजपा ने एनडीए के अपने इन्हीं सहयोगियों के लिए सीट छोड़ने से साफ मना कर दिया था। इसके बावजूद फिलहाल के परिदृश्य में दिल्ली में कोई चमत्कार होता नज़र नही आ रहा है। चूंकि दिल्ली के चुनाव में भाजपा पीएम मोदी के कामकाज को आधार बनाए हुए है। ऐसे में यहां पार्टी की हार क्या इस बार पीएम मोदी के उस बयान को पूरी तरह चरितार्थ करेगी कि मिनी इंड़िया के चुनाव नतीजे का संदेश पूरे देश में जाता है।
दिल्ली के बाद दिसंबर 2022 तक लगातार होने वाले विधानसभा चुनावों में पीएम मोदी की परीक्षा है। जिनमें उन्हें उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम और अपने गृह राज्य गुजरात में होेने वाले चुनावों का सामना करना है। यह वक्त इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पीएम मोदी देशवासियों से आज़ादी के 75 वें साल 2022 में हर नागरिक के सिर पर छत देने का वादा कर चुके हैं।