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(आशु सक्सेना): लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी ने पूरी ताकत झौंक दी है। दरअसल, 2014 में पीएम बनने के बाद मोदी ने विधानसभा चुनाव में जिस अंदाज में चुनाव प्रचार करना शुरू किया है, ऐसा चुनाव प्रचार पूर्व के किसी भी प्रधानमंत्री ने नही किया है। लिहाजा हार जीत का श्रेय भी पीएम मोदी को ही जाता है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त बहुमत हासिल हुआ है। उसके बाद यह चुनाव मोदी की पहली अग्नि परीक्षा हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा के साथ सतारा लोकसभा का उपचुनाव भी होना है।

इस सीट पर उपचुनाव एनसीपी के सांसद के भाजपा में शामिल होने के चलते हो रहा है। इस लिहाज से यह पीएम मोदी का इम्तिहान भी है। आपको याद दिला दें कि पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में हुए अधिकांश उपचुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन के सामने एक बार फिर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की चुनौती है। 2014 का चुनाव जहां कांग्रेस-एनसीपी ने आमने सामने लड़ा था। वहीं दूसरी और भाजपा और शिवसेना के बीच छोटे भाई और बड़े भाई के विवाद चलते सीटों का बंटवारा नही हुआ था। लिहाजा दोनों दल एक दूसरे के खिलाफ ताल ठौक रहे थे।

पिछला चुनाव चहुमुखी था। चारों राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने बहुमत का दावा कर रही थीं। लेकिन कोई भी दल बहुमत का जादुई आंकड़ा नही छू सका था। लेकिन 288 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 122 विधायक पहुंचे। 63 विधायकों के साथ शिवसेना दूसरा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। तीसरे और चौथे नंबर पर क्रमश: एनसीपी और कांग्रेस रही। इस चुनाव में भाजपा ने 260 तो शिवसेना ने 282 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। इस बार भाजपा अपने सहयोगी के साथ 164 और शिवसेना 126 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। लिहाजा सत्तारूढ़ गठबंधन के दोनों ही दल भाजपा और शिवसेना के सामने पिछले चुनाव का आंकड़ा बरकरार रखने की चुनौती है।

आपको याद दिला दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद दोनों दलों के संबंध काफी खराब हो गये थे। पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान शिवसेना को हफ्ताबसूल पार्टी करार दिया था। इतना ही नही विधानसभा में भाजपा के विश्वास मत के वक्त शिवसेना प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर सदन में मौजूद रही थी। तब एनसीपी की मदद से भाजपा विश्वास मत हासिल कर सकी थी।

बहरहाल, इस बार तस्वीर पहले से एकदम भिन्न है। दो गठबंधन आमने सामने है। जहां तक सत्तारूढ़ भाजपा शिवसेना गठबंंधन की बात है, तो दोनों दलों के बीच मतभेद इस चुनाव में भी देखने को मिल रहे है। मतदान से एक दिन पहले शिवसेना ने अपने मुख्यपत्र 'सामना' के संपादकीय में कहा कि अगर विपक्ष चुनौती नही है, तब मोदी और अमित शाह की इतनी रैलियों की क्या जरूरत है। इससे पहले शिवसेना प्रमुख ने कणकवली में भाजपा के उम्मीदवार नीतेश राणे के खिलाफ चुनावी सभा की। भाजपा-शिवसेना में गठबंधन होने के बावजूद नीतेश राणे के सामने शिवसेना ने कणकवली से सतीश सावंत को चुनाव में खड़ा किया है।

उद्धव ठाकरे ने सभा में कहा कि 'यहां मैं अपने अधिकृत उम्मीदवार को जिताने आया हूं। राणे का नाम लिए बिना उद्धव ठाकरे ने कहा कि मुख्यमंत्री ने अगर उनकी पार्टी से कोई अच्छा उम्मीदवार दिया होता तो उसके प्रचार के लिए भी मैं आता। जो सामने है उसे शिवसेना प्रमुख ने लात मारकर भगा दिया था। शिवसेना प्रमुख ने इन्हें निकाल दिया, इसलिए शिवसेना बड़ी हुई। उसके बाद वे कांग्रेस में गए, और अब भाजपा में हैं। भारतीय जनता पार्टी को मेरी शुभकामनाएं।'

दरअसल, भाजपा ने पिछले दिनों कांग्रेस और एनसीपी नेताओं को पार्टी में शामिल किया है। भाजपा का दावा है कि इससे उसके जनाधार में ईजाफा हुआ है। लेकिन दूसरी पार्टी के नेताओं के भाजपा में शामिल होने का विपरित प्रभाव भी पड़ सकता है। क्योंकि हाल ही में शामिल हुए नेता पार्टी का टिकट पाने में कामयाब हुए हैं, जबकि पार्टी के पुराने नेता इसका विरोध कर रहे हैं। नतीजतन भाजपा को ऐसी सीटों पर बागियों की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है।

यहां यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि पिछले चुनाव में जब भाजपा ने अकेले ताल ठौकी थी। तब उसे 260 सीट में से 122 सीट पर जीत हासिल हुई थी और भाजपा को लोकसभा चुनाव की अपेक्षा नुकसान हुआ था। इस चुनाव में पीएम मोदी ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी थी। इस बार भी मोदी ने कोई कमी नही छोड़ी है। ऐसे में भाजपा की 122 सीट बरकरार रखना पीएम मोदी की प्रतिष्ठा बन गई है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी ने 7 चुनावी रैलियों को संबोधित किया। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सूबे की सभी 10 सीटों पर कब्जा किया है। लिहाजा विधानसभा में उसे 79 सीट जीतनी चाहिए। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए सूबे के चुनाव में भाजपा को अपेक्षा से कम सीट मिली थी। लोकसभा चुनाव नतीजों के आधार पर भाजपा को 56 सीट जीतनी चाहिए थीं। जबकि वह 46 सीट ही जीत सकी थी।

हरियाणा की तस्वीर भी पिछले चुनाव से भिन्न है। इस सूबे में प्रमुख विपक्ष इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) पारिवारिक विवाद के चलते टूट चुकी है। लिहाजा इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव नतीजों से प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ का आंकलन होगा। दोनों की सूबों में भाजपा के सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है। भाजपा ने दोनों की सूबों में अनुच्छेद 370 और पाकिस्तान को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है।

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