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नई दिल्ली: वृंदावन में सुंदरीकरण के खिलाफ पर्यावरणविदों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का दरवाजा खटखटाया है। एनजीटी में इस मामले में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया गया है कि केशी घाट से यमुना नदी के निचले स्तर तक करीब तीन किमी. क्षेत्र में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुंदरीकरण और निर्माण कार्य प्रस्तावित है। परियोजना के तहत केशी घाट की लंबाई करीब 750 मीटर डूब क्षेत्र में बढ़ाई जानी है। ऐसा करना पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन है। एनजीटी इस मामले पर जल्द ही विचार कर सकता है। गौरतलब है कि ये परियोजना मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। सरकार की सुंदरीकरण परियोजना के मुताबिक केशी घाट के क्षेत्र को बढ़ाने के साथ सहायक नदियों की सफाई और ओवरफ्लो होकर नदी में जाने वाले सीवर के लिए नाला निर्माण और पाइपलाइन भी प्रस्तावित है। आकाश वशिष्ठ की ओर से एनजीटी में दाखिल याचिका में कहा गया है कि संवेदनशील यमुना डूब क्षेत्र का सुंदरीकरण जल (संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण ) कानून, 1974 और पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिसूचना, 2006 का उल्लंघन है। इस परियोजना के लिए निर्माण से पहले पर्यावरणीय संबंधी मंजूरी भी नहीं ली गई है। 21 अवैध कालोनियों को ध्वस्त करने की मांग की गई है याची की ओर से पेश होने वाले एडवोकेट राहुल चौधरी ने कहा कि परियोजना की डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) भी तैयार नहीं की गई है। याचिका में पर्यावरण मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय, यूपी सरकार, यूपी सिंचाई विभाग, यूपी जल निगम, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, वृंदावन नगर पालिका और मथुरा विकास प्राधिकरण को पक्षकार बनाया गया है। याची के मुताबिक यमुना डूब में पहले से ही अवैध कालोनियां और आवासीय परियोजनाएं चल रही हैं। याचिका में यमुना किनारे चल रही परियोजना पर रोक लगाने और मथुरा विकास प्राधिकरण के जरिए चिह्नित की गई 21 अवैध कालोनियों को ध्वस्त करने की मांग की गई है।

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