नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान केरल सरकार ने मंदिर में महिलाओं की एंट्री की वकालत की है। राज्य सरकार ने दलील दी कि विज्ञान की तरक्की के बावजूद 50-55 साल से ज्यादा जीवन होगा ही इसकी कोई गारंटी नहीं ले या दे सकता। बहुत सी महिलाएं दर्शन करना चाहती हैं. केरल सरकार उनकी भावनाएं समझती है। महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की जिस परंपरा को सदियों से माना जा रहा है वह आज के हिसाब से अपराध है।
वहीं इस दौरान कोर्ट सलाहकार ने कहा है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन ठीक उसी तरह से है जैसे दलितों के साथ छुआछूत का मसला है। कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार है उसमें अपवित्रता भी शामिल है। अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वह मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है।
जस्टिस इंदू और जस्टिस नरीमन ने उठाए अहम सवाल
सुनवाई के दौरान जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने पूछा- क्या ऐसा भी मंदिर है, जहां पुरुष को जाने की अनुमति नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ये परंपरा भी गलत है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि 10 से 50 साल की महिलाओं की एंट्री पर बैन के पीछे कोई वाजिब आधार नहीं है। किसी महिला की माहवारी 9 साल की उम्र में शुरू हो सकती है और 45 साल की उम्र में भी माहवारी खत्म हो सकती है।
41 दिन के व्रत का पालन जरूरी
सुनवाई के दौरान सबरीमाला मंदिर बोर्ड की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, मंदिर जाने से पहले 41 दिन के व्रत का पालन जरूरी है। पुरुष भी इस व्रत का पालन करते हैं। महिलाएं मासिक धर्म के चलते इसे पूरा नहीं कर पातीं। दुनिया में भगवान अयप्पा के हजारों मंदिर, उनमें कोई रोक नहीं। लेकिन सबरीमाला के स्वामी अय्यपा ब्रह्मचारी माने जाते हैं।
कोर्ट सलाहकार ने दी दलील
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई चल रही है। याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसमें 10 साल से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि अगर महिलाओं को मासिक धर्म के कारण रोका जाता है तो ये भी दलित के साथ छुआछुत की तरह है और उसी तरह के भेदभाव जैसा ही मामला है। गौरतलब है कि संविधान में छुआछूत के खिलाफ सबको प्रोटेक्शन मिला हुआ है। धर्म, जाति, समुदाय और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
24 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
गौरतलब है कि केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश के बैन को सही ठहराया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन का ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं। सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दुनिया भर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं वहां कोई बैन नहीं है, लेकिन सबरीमाला में ब्रहमचारी देव हैं और इसी कारण एक तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है ये किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है। लेकिन इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि लेकिन इसके पीछे तार्किक आधार क्या है। आपके तर्क का तब क्या होगा अगर लड़की का 9 साल की उम्र में ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या जो ऊपरी सीमा है उसके बाद किसी को मासिक धर्म हो जाए तब क्या होगा। इस दौरान सिंघवी ने कहा कि ये परंपरा है और उसी के तहत एक उम्र की मानक तय हुई है। अब मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को यानि 24 जुलाई को होगी।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने की थी अहम टिप्पणी
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा बुधवार को कहा था कि महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है कि वह सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करें और पूजा अर्चना करें। उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो सकता। मंदिर निजी संपत्ति नहीं है बल्कि सार्वजनिक संपत्ति है और पुरुष जा सकते हैं तो किसी भी उम्र की महिला भी जा सकती हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उस फैसले को चुनौती दी गई है। जिसके तहत मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिला के प्रवेश पर रोक लगाई गई है।