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नई दिल्ली: वर्ष 2006 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने स्वीकार किया था कि जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कल सार्वजनिक की गई फाईलों के मुताबिक उसने मंदिर के पुजारी के यह संकेत मिलने के बाद कि नेताजी के अवशेषों को वहां सम्मान के साथ संरक्षित नहीं रखा जा सकता, भारतीय राजदूत को वे अस्थियां भारतीय दूतावास की नवनिर्मित इमारत में लाने के तौरतरीकों पर काम करने का निर्देश भी दिया था। इसमें कहा गया है कि ये बिंदु विदेश मंत्रालय की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन को दिये गए उस जवाब में मिले हैं, जिन्होंने मंत्रालय को नेताजी की अस्थियों को वापस लाने के मुद्दे पर जांच पड़ताल करने को कहा था।

सिंह ने सात दिसंबर 2006 को तत्कालीन लोकसभा सांसद सुब्रत बोस द्वारा इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखे जाने बाद विदेश मंत्रालय को इसकी जांच पड़ताल करने को कहा था। सुब्रत बोस ने कहा था कि अनगिनत भारतीयों का दृढ़ रूप से मानना है कि जापानी मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की नहीं हैं और मंदिर से नेताजी की अस्थियां लाने के सरकार के किसी भी फैसले का पुरजोर विरोध किया जाएगा। अपने जवाब में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत सरकार ने यह स्वीकार किया है कि जापान के रेंकोजी मंदिर में मौजूद अस्थियां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हैं। विदेश मंत्रालय ने बताया था, रेंकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी ने संकेत दिया था कि वह ज्यादा दिनों तक यह सुनिश्चित करने की स्थिति में शायद नहीं रहेगा कि अस्थियां को पूरे आदर और सम्मान के साथ संरक्षित रखा जा सके। मंत्रालय ने बताया था, तब उसने सैद्धांतिक रूप से फैसला किया कि नेताजी की अस्थियों को तोक्यो में निर्माणाधीन भारतीय दूतावास की नयी इमारत में उचित स्थान पर रखा जाएगा। उसने यह भी कहा था कि भारत के राजदूत को नवनिर्मित इमारत में अस्थियां स्थानांतरित किए जाने के लिए समुचित तौर तरीकों पर काम करने के निर्देश भी दिये गए थे। विदेश मंत्रालय जापान सरकार और मंदिर के प्राधिकारियों के दबाव में था और उसने न केवल सिंह सरकार को बल्कि पहले भी नेताजी के अवशेषों को वापस लाने के मुद्दे के बारे में याद दिलाया था।

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