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लखनऊ: यादव परिवार भले ही इस बात को छिपाने की कितनी भी कोशिश करे लेकिन पार्टी और परिवार के बीच का घमासान अब खुले तौर पर सामने आने लगा है। हाल ही में जेपी म्यूजियम ब्लॉक के उद्घाटन और लोहिया की पुण्यतिथि पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया एक-दूसरे का सामना करने से बचते रहे। वहीं अब अखिलेश के एक बयान से उनका दर्द खुलकर सामने आ गया। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा क‌ि भले ही उन्हें किनारे कर दिया हो,लेकिन उन्हें हराया नहीं जा सकता। अखिलेश ने कहा, पार्टी के मौजूदा हालात को देखते हुए लगता है क‌ि उन्हें 2017 चुनाव के लिए प्रचार अकेले ही शुरू करना पड़ेगा। ​अखिलेश अपने बचपन का जिक्र करते हुए बताया, जैसे बचपन में मुझे अपना नाम खुद रखना पड़ा था वैसे ही मुझे लगता है क‌ि मुझे अपना चुनाव अभियान बिना किसी का इंतजार किए खुद ही शुरू करना पड़ेगा। अखिलेश ने इस बात को स्वीकार किया क‌ि बीते एक महीने से पार्टी में चल रही उठा-पटक के चलते उनके चुनाव अभियान में देर हो गई। उन्होंने कहा, यूपी की जनता को मुझ पर भरोसा है और वही मुझे दोबारा सत्ता में लाएगी। अखिलेश यादव को कुछ वक्त के लिए किनारे तो किया जा सकता है लेकिन हराया नहीं जा सकता। सीएम अखिलेश ने कहा क‌ि उन्होंने 14 साल हॉस्टल में बिताए हैं जिससे वह हर तरह के संकट का सामना करना सीख चुके हैं। हालांक‌ि उन्होंने ये भी कहा क‌ि परिवार में कोई विवाद नहीं है।

कुछ भी हो जाए मुलायम स‌िंह उनके पिता रहेंगे और शिवपाल उनके चाचा। अखिलेश ने इस बात को स्वीकार किया कि पार्टी और परिवार में हुए घमासान के चलते उनके चुनाव प्रचार अभियान में देरी हो गई। उन्होंने कहा क‌ि ये सब 12 सितंबर को शुरू हुआ अब अक्टूबर भी आधा बीत गया। गौरतलब है क‌ि बीते सितंबर समाजवादी पार्टी में हुआ घमासान पूरे देश में सुर्खियां बना। सीएम अखिलेश यादव ने मुलायम स‌िंह यादव के बेहद नजदीकी खनन मंत्री और चाचा शिवपाल के करीबी राज‌किशोर सिंह को बर्खास्त किया, तो अगली सुबह शिवपाल के नजदीकी आईएएस अफसर दीपक सिंघल को मुख्य सचिव पद से विदा कर दिया था। इसका नतीजा ये हुआ कि शाम होते-होते मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश को हटाते हुए शिवपाल यादव को ही कमान सौंप दी थी। गुस्से में अखिलेश ने भी चाचा शिवपाल के अहम महकमे छीन लिए थे वहीं शिवपाल यादव ने इस्तीफा तक दे दिया था। इसके बाद मुलायम सिंह के फैसले को मंजूर करते हुए सबके बीच सुलह हुई लेकिन धीरे-धीरे अखिलेश के लिए गए ज्यादातर फैसले बदल दिए गए। जिनमें गायत्री प्रसाद की वापसी हुई फिर कौमी एकता दल का सपा में विलय की भी आई।

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