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नई दिल्ली (जनादेश ब्यूरो): उत्तर प्रदेश में उपचुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को साधने में लगे हैं। चाहे बात भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की हो या फिर समाजवादी पार्टी (सपा) की, वो अपने वोट बैंक तक पहुंचने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। बात कुछ ही महीनों पहले की है जब अखिलेश यादव तय कर चुके थे कि लोकसभा चुनाव में टिकट देने की नीति और रीति बदलनी चाहिए। उन्होंने एमवाई मतलब मुस्लिम यादव वाले समीकरण से आज़ाद होने का मन बना लिया था। यादव बिरादरी से सिर्फ़ पांच लोगों को टिकट मिला। सभी अखिलेश और उनके परिवार वाले थे। वहीं, लोकसभा की 63 में से बस चार सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए गए। हालांकि, ये सभी उम्मीदवार जीत भी गए।

आपको बता दें कि पीडीए के सामाजिक समीकरण में अखिलेश यादव का फ़ोकस ग़ैर यादव ओबीसी और दलितों पर रहा है। वे ये मान कर चल रहे थे कि यादव और मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं होगा। ऐसा ही हुआ है। समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन था। चुनाव में दोनों पार्टियों को फ़ायदा हुआ था।

मुसलमानों को कम टिकट देने के पीछे अखिलेश यादव की ख़ास रणनीति थी। उन्हें इस बात का डर था कि कहीं सांप्रदायिक ध्रुवीकरण न हो जाए। ऐसा होता भी रहा है। पिछले चार चुनावों में ऐसा ही हुआ। समाजवादी पार्टी नुक़सान में रही। मुस्लिम प्रत्याशी होने उसके ख़िलाफ़ हिंदू वोटरों को एकजुट करने में बीजेपी को महारत है। अखिलेश यादव ने इस बार ऐसा कोई मौक़ा नहीं दिया। जिसके नतीजे अब सबके सामने हैं। बीजेपी की यूपी में 29 लोकसभा सीटें कम हो गईं। समाजवादी पार्टी ने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। उसकी सीटें 5 से बढ़ कर 37 हो गईं, लेकिन यूपी के उप चुनाव में अखिलेश यादव ने टिकट देने का फ़ार्मूला बदल लिया है। पीडीए के फ़ार्मूले में इस बार उनका फ़ोकस मुस्लिम नेताओं पर है। विधानसभा की नौ में से चार सीटों पर समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए हैं।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अगले विधानसभा चुनाव से पहले मैसेज देना चाहते हैं। ये संदेश मुस्लिम समाज के लिए है। राज्य में 20 % से भी अधिक मुसलमान वोटर हैं। अखिलेश यादव बताना चाहते हैं कि मुसलमानों के लिए समाजवादी पार्टी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पार्टी के सबसे बडे मुस्लिम चेहरे आज़म खान सीतापुर जेल में हैं। उनके छोटे बेटे और पूर्व विधायक अब्दुल्ला आज़म हरदोई की जेल में बंद हैं। दोनों चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री आज कुंदरकी में चुनावी रैली कर रहे हैं। रैली के बाद वे सीधे रामपुर जायेंगे, यहां में वे आज़म खान के परिवार से मुलाक़ात करेंगे।

अखिलेश यादव के रामपुर दौरे को मुस्लिम पॉलिटिक्स से जोड़ कर देखा जा रहा है। कुछ लोग इस बात को हवा दे रहे हैं कि आज़म खान को मुसीबत की घड़ी में उनकी क़िस्मत पर छोड़ दिया गया है। अखिलेश रामपुर में आज़म खान की पत्नी तंजीन फ़ातिमा से भेंट करेंगे। खबर है कि उनकी तबियत अच्छी नहीं रहती है। वे राज्य सभा की भी सांसद रह चुकी हैं।

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने तीन विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। ख़तरा मुस्लिम वोटों के बंटवारे का है। ओवैसी कई बार आज़म खान की तारीफ़ कर चुके हैं। आज़म खान के परिवार से मिल कर अखिलेश लोगों के मन में उठ रहे सवालों को ख़त्म करने के मूड में हैं। चुनाव को लेकर वे कोई ख़तरा मोल लेने को तैयार नहीं हैं। आज़म की पत्नी के साथ उनकी फ़ोटो सभी सवालों का जवाब हो सकता है। अखिलेश यादव और आज़म खान का रिश्ता कभी नीम तो कभी शहद वाला है। लोकसभा चुनावों में मिली शानदार कामयाबी के बाद अखिलेश अब सब मीठा मीठा ही चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने आज़म खान की चौखट तक जाने का फ़ैसला किया है। यूं भी आज़म खां का बहुत सम्मान करते हैं, परिवारिक विवाद के दौरान आज़म खान ने अखिलेश यादव का साथ दिया था।

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