वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में शुक्रवार को हिंदू पक्ष को सिविल जज सीनियर डिविजन के फास्ट ट्रैक कोर्ट से निराशा मिली। कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी के पूरे परिसर का सर्वे नहीं कराया जाएगा। हिंदू पक्ष की याचिका में पूरे ज्ञानवापी परिसर की एएसआई सर्वे की मांग की गई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
कोर्ट के इस आदेश के बाद अब यह मामला एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। कोर्ट के फैसले पर हिंदू पक्ष के मुख्य वकील विजय शंकर रस्तोगी और हिंदू पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी की प्रतिक्रिया सामने आई है।
विजय शंकर रस्तोगी ने कहा, "हमारी ओर से दी गई अतिरिक्त सर्वेक्षण के आवेदन को निरस्त कर दिया गया है। अब हम इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में जाएंगे। हमारी मांग थी कि पहले एएसआई ने अधूरा सर्वे किया है। मुझे लगता है कि इस कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेशों को पालन नहीं किया। हाईकोर्ट ने इस कोर्ट को निर्देशित किया था कि अगर 4 अप्रैल 2021 के अनुसार पूर्व में दाखिल की गई एएसआई रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है, तो अतिरिक्त सर्वे मंगाने का अधिकार है।
उन्होंने कहा, इस आदेश का उल्लंघन किया गया है। हम इस आदेश की कॉपी लेने के बाद हाईकोर्ट जाएंगे।"
कोर्ट में हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी के मुख्य गुंबद के नीचे शिवलिंग होने का दावा किया है। इसके साथ ही, हिंदू पक्ष ने यहां खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराने की मांग की। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि खुदाई से मस्जिद स्थल को नुकसान पहुंच सकता है।
33 साल पुराना है मामला
दरअसल, ये मामला 33 साल पुराना है। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 1991 में दायर याचिका पर फैसला सुनाया. इसे 33 साल पहले स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर से पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित हरिहर नाथ पांडेय ने पूरे परिसर की एएसआई सर्वे की मांग उठाई थी। हालांकि, तीनों की मौत हो चुकी है. अब वादी वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी हैं। सर्वे की मांग वाली याचिका पर 8 महीने से फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चली।
मुस्लिम पक्ष ने क्या दिया तर्क
मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने दलील दी थी कि जब ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वेक्षण एक बार पहले हो चुका है, तो दूसरा सर्वेक्षण करने का कोई औचित्य नहीं है। सर्वेक्षण के लिए मस्जिद परिसर में गड्ढा खोदना किसी भी तरह से व्यावहारिक नहीं होगा। इससे मस्जिद को नुकसान हो सकता है।