लखनऊ: उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की 11 सीटों के लिए हो रहे द्विवार्षिक आमचुनाव के लिए आज (शनिवार) बसपा के सतीश चंद्र मिश्र और अशोक कुमार सिद्धार्थ ने पर्चे भरे। विधानपरिषद के लिए बसपा के तीन अन्य लोगों दिनेश चंद्रा, अतर सिंह राव और सुरेन्द्र कश्यप ने भी नामांकन पत्र दाखिल किये। बसपा उम्मीदवारों के नामांकन पत्र दाखिल करते समय विधान भवन के केन्द्रीय कक्ष में पार्टी के वरिष्ठ नेता विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य भी मौजूद थे। पार्टी की तरफ से लगातार तीसरी बार राज्यसभा भेजे जा रहे सतीश चंद्र मिश्र ने बसपा को पार्टी सुप्रीमो मायावती के नेतृत्व वाली टीम बताया। जब पूछा गया कि सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों ने इन चुनावों में किसी मुसलमान को टिकट क्यों नहीं दिया, मिश्र ने कहा कि राज्यसभा में बसपा की ओर से मुनकाद अली पहले से ही सदस्य हैं। राज्यसभा की 11 और विधान परिषद की 13 सीटों के लिए जरूरत पड़ने पर मतदान क्रमश: 11 और 10 जून को होगा। संसद के उच्च सदन के लिए सपा की ओर से अमर सिंह और कांग्रेस का दामन छोड सपा में शामिल हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा सहित सात उम्मीदवारों ने नामांकन किया है।
विधान परिषद के लिए सपा ने आठ उम्मीदवार उतारे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 सदस्य हैं और इस लिहाज से राज्यसभा में किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए 37 विधायकों तथा विधान परिषद में 32 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होगी। आंकडों को देखें तो 229 विधायकों के बल पर सपा राज्यसभा के छह और विधान परिषद के सात उम्मीदवार जितवाने में सक्षम है। राज्यसभा में सातवें और विधान परिषद में आठवें उम्मीदवार को जितवाने के लिए सपा को अतिरिक्त मतों की आवश्यकता होगी, जिसके लिए सरगर्मियां तेज हो गयी हैं। बसपा के विधान सभा में 80 सदस्य हैं। इस प्रकार वह राज्यसभा और विधान परिषद के लिए दो-दो उम्मीदवाद जितवाने में कोई परेशानी नहीं है पर विधान परिषद के लिए तीसरा उम्मीदवार उतारकर बसपा ने संकेत दे दिये हैं कि वह उसके लिए वोट जुटाने की कवायद करेगी। विधानसभा में भाजपा के 41 और कांग्रेस के 29 सदस्य हैं। इस लिहाज से भाजपा राज्यसभा और विधान परिषद के लिए एक एक उम्मीदवार आसानी से जितवा सकती है जबकि कांग्रेस को राज्यसभा या विधान परिषद में अपना उम्मीदवार उतारने की स्थिति में वोटों का जुगाड अन्य दलों से करना होगा। राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव में आठ विधायकों वाली रालोद, चार विधायकों सहित पीस पार्टी, दो विधायकों वाले कौमी एकता दल, एक सदस्यीय राकांपा, अपना दल, इत्तेहादे मिल्लत काउंसिल, तृणमूल कांग्रेस के अलावा छह निर्दलीय विधायकों की भूमिका अहम रहेगी।