(पुष्प रंजन) बांग्लादेशी कवि, लेखक, स्तंभकार, फ़ार्मासिस्ट, मानवाधिकार कर्मी, और परिवेशवादी फ़रहाद मज़हर 77 साल के हैं। बहुत से लोग उन्हें रैडिकल मानते हैं। मैं इससे पूरा इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ। वो हैं रैडिकल। फ़रहाद मज़हर की शख्सियत स्वतंत्र विचारक से अधिक, विद्रोही के रूप में रही है।
1995 में ख़ालिदा ज़िया सरकार की आलोचना करने के कारण जब उन्हें जेल में डाला गया था, तब फ्रांसीसी दार्शनिक जैक्स देरिदा, और बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी जैसे लोगों ने उनकी रिहाई की मांग करते हुए पत्र लिखे थे। मैंने फ़रहाद मज़हर को तभी जाना था। 1995 में जब जेल से छूटे, फ़रहाद मज़हर की उसी साल एक किताब आई, 'राजकुमारी हसीना'। शेख हसीना तब प्रधानमंत्री नहीं बनी थीं।
लेकिन, इस किताब ने शेख हसीना को बीच बहस में ला खड़ा किया था। जून 1996 में जब शेख हसीना सत्ता में आईं, फ़रहाद मज़हर उनके 'गुड बुक' में शामिल हो चुके थे। शेख हसीना शासन पार्ट वन- 1996 से 2001 तक फरहाद मज़हर उनसे रिश्ते निभाते रहे।
शेख हसीना के दोबारा सत्ता में आने तक फरहाद मज़हर का लेखन विवादों से भरा रहा। 'प्रस्ताव', 'मुक़ाबला', 'इबादतनामा', 'भावांदोलन' फरहाद मज़हर की प्रसिद्ध किताबें हैं। वाणिज्य ओ बांग्लादेशेर जनगण (2004 ), 2006 में प्रकाशित मुक़ाबला, गणप्रतिरक्षा, उसके अगले साल 'क्षमतार विकार ओ गणशक्तिर उद्बोधन' लोग पढ़ते और रिएक्ट करते। 2008 में प्रकारांतर से उनकी सात किताबें आईं- पुरुषतंत्र ओ नारी, भावांदोलन, साम्राज्यवाद, रक्तेर दाग़ मुछे रबीन्द्रपाठ, संविधान ओ गणतंत्र, निर्वाचित प्रबंध, क्रॉसफ़ायर: राष्ट्रेर राजनैतिक हत्याकाण्ड। इन किताबों के रिव्यू पढ़ने के बाद साफ़ हो चुका था कि फ़रहाद मज़हर जैसा शख्स सिस्टम के विरुद्ध है।
फ़रहाद मज़हर ने ढाका विश्वविद्यालय से औषधशास्त्र की पढाई की और अमेरिकी विश्वविद्यालय से राजनैतिक अर्थशास्त्र की डिग्री ली। लेकिन लेखन और पत्रकारिता का प्रवेश जब उनके डीएनए में हुआ, तो वो चिंता नामक एक अख़बार के संपादक बन गए.।'उबिनीग' नाम से एक एनजीओ भी चलाते हैं। उन्होंने नया कृषि आंदोलन और भावांदोलन की शुरूआत की है।
प्रधानमंत्री रहते ख़ालिदा ज़िया ने इस लेखक-कवि को नापसंद ही किया था। शेख हसीना दोबारा से सत्ता में आईं। लेकिन, जनवरी 2009 से 2024 का लम्बा कालखंड विवादस्पद रहा था। सिस्टम से लड़ने वाले स्वभाव की वजह से फ़रहाद मज़हर अधिक दिनों तक शेख हसीना के शैदाई नहीं रह पाए। 2012 में दो और पुस्तक , 'ज़रूरी अवस्था: राष्ट्र ओ राजनीति' तथा 'डिजिटल फासीवाद' से शेख हसीना की छवि की और मिट्टी पलीद की।
2016 में फ़रहाद मज़हर ने एक कविता लिखी- 'तुमि छाड़ा आर कोन शालारे आमि केयर करि.' इस कविता ने शेख़ हसीना को तिलमिला दिया। जुलाई 2017 के पहले हफ्ते फ़रहाद मज़हर अगवा कर लिये गए। 'सरकारी अपहरण' में फ़रहाद मज़हर को डराया-धमकाया गया था।
बहरहाल, शेख हसीना को जब देश छोड़कर भागना पड़ा, फ़रहाद मज़हर उन बहुतेरे लोगों में से थे, जो विद्रोहियों के साथ खड़े दिखे। आज उस शख्स का मोहम्मद यूनुस से भी मोहभंग हो गया। फरहाद मजहर स्पष्ट रूप से कहते हैं कि "बंगाली राष्ट्रवाद एक धर्म विरोधी विचारधारा है।" अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से गुरुवार को पूछ ही डाला, 'हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास को किस आधार पर गिरफ्तार किया गया?'
यह दिलचस्प है कि फरहाद मज़हर की पत्नी फरीदा अख़्तर, मुहम्मद यूनुस की सलाहकारों में से एक हैं। फिर भी फ़रहाद मज़हर ने उसकी परवाह न करते हुए बयान दिया- "चूंकि मुख्य सलाहकार के समक्ष प्रश्न उठाने के बाद भी मुझे अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है, इसलिए मुझे थोड़ा-बहुत विश्वास है कि वह चिन्मय कृष्ण दास की रिहाई सुनिश्चित करने और बांग्लादेश में शांति बहाल करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करेंगे।"
साभार, पुष्प रंजन जी की फेसबुक पोस्ट