(सुरेन्द्र सुकुमार): प्रातःवंदन मित्रो ! इस बीच हमारी एक कविता के कारण जो हमने मुजफ्फरनगर के कवि सम्मेलन मुशायरे में सुनाई थी, उससे एक मुस्लिम विधायक इतने नाराज़ हुए कि कार्यक्रम छोड़ कर चले गए। उसके कुछ समय बाद एक दिन जब हम सुबह अखबार पढ़ रहे थे कि किसी ने हमारा फाटक खटखटाया। हम निकल कर बाहर आए तो देखा दो मुस्लिम युवक खड़े थे। हमने पूछा, क्या है? बोले, "सुरेन्द्र सुकुमार जी यहीं रहते हैं क्या? हमने कहा, "हम ही हैं... कहो?" बोले, "बाइस तारीख में ऊपर कोट पर मुशायरा है, उस सिलसिले में आपसे बात करनी है।" हमने फाटक का एक पल्ला खोला और पीछे मुड़ते हुए कहा कि 'आइए'...।
बस हमारा मुड़ना था कि एक जोरदार आवाज सुनाई दी। साथ ही साथ हमारे कंधे पर ऐसा लगा जैसे किसी ने आग का गोला दाग दिया हो। वो लोग हमें 315 बोर की रायफल की गोली मारकर भाग गए। हमने कमरे में आकर अपनी पत्नी सुधा को आवाज़ दी। जब वो आई तो हमने कहा कि दो लड़के हमारे गोली मारकर भाग गए हैं।
सुधा घबरा गई बोली, "हॉस्पिटल चलते हैं पर गाड़ी कौन चलाएगा? हमने कहा कि 'हम' और हमने गाड़ी निकाली और ख़ुद ही ड्राइव करके मेडिकल कॉलेज पहुंचे। जाते ही इमरजेंसी में घुसते ही हमने देखा कि वहाँ कुछ डॉक्टर हमारे परिचित थे। हमने उन्हें संक्षेप में बताया और कहा सबसे पहले तो हमारा दर्द बंद करो।"
इस घटना की ख़बर पूरे शहर में जंगल में आग की तरह फैल गई। थोड़ी ही देर में शहर के गणमान्य व्यक्ति नेता साहित्यकार पूरा प्रशासन जमा हो गया। नीरज जी भाई साहब सबसे पहले आने वालों में से थे।
डॉक्टर बेग ने हमारा ऑपरेशन किया गोली हमारे कंधे को चीरती हुई हमारे फेफड़े में अटक गई थी। हमें देखने के लिए श्री उदयप्रताप सिंह जी समाजवादी पार्टी के तमाम नेता गण दिल्ली से सरिता शर्मा आदि आए।
मीडिया ने हमसे पूछा कि आपको किस पर शक़ है? हमने कहा कि ‘किसी पर भी नहीं, जिसने मरवाई है वो तो गलतफहमी का शिकार है और जो मारने आए थे वो लोग तो प्रोफेशनल शूटर हैं तो उनसे क्या शिकायत?‘ जबकि हम जानते थे कि यह किसने करवाया है। उन दिनों मुलायम सिंह जी की सरकार थी और वो मुस्लिम विधायक भी समाजवादी पार्टी का था।
जिलाधिकारी ने हमें पुलिस सरंक्षण की बात की हमें दो गनर रखने का प्रस्ताव दिया। जो हमने ख़ारिज़ कर दिया। उसके बाद जिलाधिकारी ने हमसे रिवाल्वर का लाइसेंस देने की बात की। हमने कहा कि कोई भी हथियार सिर्फ एक काम करता है और वो है हत्या... हत्या चाहे दूसरे की हो, चाहे अपनी, हत्या तो हत्या है और हम हिंसा के ख़िलाफ़ हैं। फिर भी उन्होंने कुछ समय के लिए हमारे घर पर पुलिस के दो सिपाहियों को नियुक्त कर दिया जो बाद में जिलाधिकारी से कह कर हटवाए।
उन दिनों नीरज जी भाई साहब रोज़ ही हमें देखने आते रहे और पूछते रहे कि किसने गोली मारी पर हमने कभी भी उन्हें नहीं बताया क्योंकि उनको बताने का मतलब मुलायम सिंह जी तक पहुंचना और फिर प्रदेश की राजनीति में उथल पुथल होना जो हम नहीं चाहते थे।
क्रमशः
नोटः सुरेन्द्र सुकुमार 80 के दशक के पूर्वार्ध के उन युवा क्रांतिकारी साहित्यकारों में हैं, जो उस दौर की पत्रिकाओं में सुर्खियां बटोरते थे। ‘सारिका‘ पत्रिका में कहानियों और कविताओं का नियमित प्रकाशन होता था। "जनादेश" साहित्यकारों से जुड़े उनके संस्मरणों की श्रंखला शुरू कर रहा है। गीतों के चक्रवर्ती सम्राट गोपालदास नीरज से जुड़े संस्मरणों से इस श्रंखला की शुरूआत कर रहे हैं।