(अरुण दीक्षित): मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे आने में अभी पूरे आठ दिन बाकी हैं।इनको लेकर हर आदमी का अपना आंकलन और अपना गणित है। सट्टा बाजार अपना अलग गणित दे रहा है। यह भी कह सकते हैं कि जितने मुंह उतनी बातें! इन्हें सीटें भी कह सकते हैं। उधर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही अपनी जीत का दावा पूरी ताकत से कर रही हैं। दोनों के अपने अपने तर्क हैं और अपने अपने विश्वास! जहां तक जमीनी हकीकत की बात है, उसका एहसास तो सबको है। लेकिन उस पर भरोसा तीन दिसंबर की शाम को ही हो पाएगा!
लेकिन इस बीच निवर्तमान घोषित किए जा चुके मुख्यमंत्री द्वारा अपने दल के विधायक प्रत्याशियों से मेल मुलाकात और प्रशासनिक गतिविधियां चलाए जाने ने एक नई बहस छेड़ दी है। इस बहस के साथ ही एक सवाल यह भी उठा है कि क्या वे पार्टी लाइन से अलग अपनी खिचड़ी पका रहे हैं? इसकी बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जब पार्टी हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का अघोषित एलान कर ही दिया है, तो फिर वे अचानक इतने सक्रिय क्यों हैं।
हालांकि वे खुद कह चुके हैं कि उनके मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला जनता और पार्टी तय करेगी। लेकिन नतीजों का इंतजार किए बिना वे कुर्सी पर बैठे रहने की तैयारी कर रहे हैं।
जानकर सूत्रों का कहना है कि हार के कयासों के बीच मुख्यमंत्री और उनकी हाईकमान एक बार फिर मार्च 2020 का खेल दुहराने की तैयारी कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री के लिए होगा बड़ा झटका
अभी तक के कयास यही हैं कि बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर है। इसके अलावा यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख भी दांव पर है। अगर बीजेपी हार गई तो, यह मुख्यमंत्री के बजाय प्रधानमंत्री के लिए बड़ा झटका होगा।
प्रधानमंत्री की छवि पर आने वाली आंच को रोकने के लिए पार्टी के चाणक्य ने एक नया प्लान तैयार किया है!
अतिविश्वस्त सूत्रों के मुताबिक तैयारी यह की जा रही है कि अगर हार जीत का अंतर कम हो तो शपथ ग्रहण के पहले ही बाजी पलट दी जाए! चूंकि इस बार कांग्रेस में पहले जैसे विभाजन के हालात फिलहाल तो नही दिख रहे हैं। इसलिए नया कार्ड तैयार किया गया है। इस कार्ड का कोड नेम है टी सी! यानी कि ट्राइबल कार्ड!
अंतःपुर के करीबी सूत्रों के मुताबिक एक बार फिर वही रणनीति अपनाने की तैयारी है, जो राष्ट्रपति चुनाव के समय अपनाई गई थी। तब आदिवासी अस्मिता के नाम पर कांग्रेस के करीब डेढ़ दर्जन विधायकों को अपनी पार्टी के प्रत्याशी के बजाय बीजेपी प्रत्याशी द्रोपदी मुर्मू को वोट दिया था। इस बात की जानकारी कांग्रेस नेतृत्व को मिल गई थी, लेकिन वह चाहकर भी कोई कदम अपने इन विधायकों के खिलाफ नही उठा पाया था।
इस चुनाव में उसने इनमें से कुछ विधायकों के तो टिकट काट दिए हैं। लेकिन ज्यादातर को फिर से मैदान में उतारा है। खबर यह भी है कि फिर से जीत रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक सत्ता के गणित में पिछड़ने पर इन्हीं विधायकों का सहारा लेने की तैयारी है। चूंकि इनसे पहले से ही संपर्क है इसलिए ज्यादा परेशानी भी नही होगी। इसलिए एक योजना यह है कि कांग्रेस को बहुमत से रोकने के लिए इन्हें पहले ही उससे अलग कर लिया जाए। साथ ही बहुमत के आधार पर अपनी सरकार बना ली जाए। मदद के लिए राजभवन है ही!
एक बार सरकार बन जाने पर कांग्रेस कुछ भी नही कर पाएगी। यह भी संभव है कि पिछली बार की तरह पाला बदलने वाले कांग्रेसी विधायकों की संख्या और बढ़ जाए।
इस रणनीति पर काम करने की जिम्मेदारी चाणक्य ने एक बार फिर मुख्यमंत्री को ही सौंपी है।बताते हैं कि उन्हें भरोसा दिया गया है कि अगर वे सफल हुए तो उन्हें "उचित" पुरस्कार भी दिया जाएगा। यह पुरस्कार वह कुर्सी भी हो सकती है, जिस पर अभी वे विराजे हैं! इसी वजह से वे अचानक सक्रिय हो गए हैं। उनका आत्मविश्वास भी बढ़ गया है।
सुना है कि इस "प्लान" की खबर कांग्रेस के जय और वीरू को भी लग गई है। अब वे भी एक और "धोखा" खाने को तैयार नहीं हैं। इसलिए वे भी गडरिए की तरह सतर्क हैं। अपनी कमजोर कड़ियों की निगरानी की व्यवस्था में लग गए हैं।
देखना यह है कि इस बार "खेला" कौन करेगा और कैसा होगा?
जहां तक तीसरे खेमे का सवाल है, उसे तो सत्ता के बाड़े में लाने के लिए खास मेहनत नही करनी होगी। जो भी दल सरकार बनाएगा वह उसी के साथ जायेगा!