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(आशु सक्सेना): ब्रिटिश भारत यानि अंग्रेज़ों के शासन में निर्मित 'संसद भवन' में सन् 1927 में पहली बार कामकाज शुरू हुआ था। अब इस भवन की उम्र 95 साल से अधिक हो चुकी है। निसंदेह, संसद भवन की पुरानी बिल्डिंग बेहद खुबसूरत और लोगों को आ​कर्षित करने वाली है। लेकिन अब यह भवन इतिहास हो चुका है।

संसद भवन की पुरानी बिल्डिंग कहलाएगी 'संविधान सदन' 

इसी साल इस भवन का नामकरण भी किया गया है। लोकसभा सचिवालय के नोटिफिकेशन के मुताबिक अब इस भवन को 'संविधान सदन' कहा जाएगा।

दिल्ली के रायसीना हिल पर स्थित इस भवन से जुड़ी तमाम यादें जहन में हैं। इनको संजोकर कई किताब लिखी जा सकती है। इस भवन में मेरा नवंबर 1990 से 17 मार्च 2020 तक लगातार जाना हुआ। इस दौरान की लगभग सभी घटनाओं का साक्षी रहा हूॅं और उन घटनाओं को कवर भी किया है। यह रिपोर्ट विभिन्न अख़बारों और बेवसाइट पर लगातार प्रकाशित होती रही हैं। आज बात ​"कोरोना काल" की करते है।

17 मार्च 2020 को संसद में कोरोना पर बहस छिड़ी थी और दोनों सदनों की कार्यवाही बारबार स्थगित हो रही थी।

संसद में मुद्दा यह गरम था कि "कोरोना" के चलते संसद की कार्यवाही को स्थागित किया जाए या नहीं। उस दिन मोदी सरकार संसद की कार्यवाही स्थगित करने को तैयार नहीं थी, सरकार इस बात पर अड़िग थी कि संसद की कार्यवाही कार्यक्रम के मुताबिक तय समय पर ही स्थगित होगी। जबकि कांग्रेस कोरोना के संभावित ख़तरे की आशंका व्यक्त करते हुए संदन की कार्यवाही को ​स्थगित करने की मांग कर रही थी। केरल से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सबसे पहले सदन मे इस मुद्दे को उठाया था।

बहरहाल, दोनों सदनों की कार्यवाही जब बारबार ​स्थगित हो रही थी। उस दौरान संसद भवन में पत्रकार मित्रों से चर्चा में हमने अपने बचपन के अनुभव शेयर किये थे। बताया था कि इस देश में सीवर लाइन नहीं थी। हमारे शहर आगरा में 'संडास' हुआ करते थे। सुबह संड़ास की सफाई के वक्त पानी से नाली भी धुलाई होती थी। मौहल्ले के हम युवा दोपहर में कालेज से लौटकर (यूपी मे इंटर तक पढ़ाई वाले विद्यालय कालेज की कहलाते हैं) गली में क्रिकेट शुरू हो जाती ​थी। जाहिरतौर पर गेंद का नाली मे जाना स्वाभाविक है। हम हाथ से गेंद को नाली से निकालने के बाद तीन चार टप्पे मार कर फिर खेलना जारी रखते थे। खेलने के बाद जब घर पहुंचते थे, तब अगर हाथ धोना भूल गये या मां ने याद नहीं दिलाया, तो उन्हीं हाथों से खाना भी खा लेते थे। तब इस घटना का ज़िक्र करने के बाद मज़ाकिया अंदाज में मैंने कहा ​था कि "कोरोना" हमारा क्या बिगाड़ लेगा?

बहरहाल, जब पार्लियामेंट से डीटीसी की बस में लेकिन जब घर लौट रहा था,  उस वक्त जहन में यह बात घुमड़ रही थी कि "कोरोना महामारी" आदमी से आदमी मे पहुंच रही है और हमारे देश में 'नमस्ते ट्रंप' के चलते यह बीमारी आकाश और समुंद के रास्ते हमारे देश में भी पहुंच चुकी होगी। तब तक केरल में एक मामले की पुष्टि भी हो चुकी थी। घर पहुंचने के बाद मैंने तय किया कि अब संसद की कार्यवाही टीवी से कवर करेंगे और संसद भवन जाना बंद कर दिया। उसके बाद जो हुआ, उससे पूरा देश वाकिफ है।

बहरहाल, यहां यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि "कोरोना काल" संसद भवन में अभी भी चल रहा है। क्योंकि कोरोना काल समाप्त होने के बाद अब तक संसद भवन में पत्रकारों के प्रवेश को नियंत्रित किया जा रहा है और इस मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय कोई कार्रवाई भी नहीं कर रह है। तमाम वरिष्ठ पत्रकारों का प्रवेश अभी तक प्रतिबंधित है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लोकसभा में पिछले पांच साल से पत्रकार सलाहकार समिति का गठन नहीं हुआ है। इस समिति का गठन पहली बार 1938 में ब्रिटिश भारत की भारतीय संसद के दौरान हुआ था।

 

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