(धर्मपाल धनखड़): मेवात में सोमवार को भड़की सांप्रदायिक हिंसा के बारे में मुख्यमंत्री मनोहरलाल का कहना है कि सोची समझी साजिश के तहत विश्व हिंदू परिषद की बृजमंडल यात्रा के दौरान हमला बोला गया। मुख्यमंत्री बिल्कुल सही कह रहे हैं। लेकिन क्या मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और पुलिस प्रमुख को इस साज़िश का पहले से पता नहीं था? ये सही नहीं है। कांग्रेस विधायक मामन खान ने विधानसभा में डंके की चोट पर कहा था कि मोनू मानेसर को मेवात भेजना, उसका गंठा सा फोड़ दयांगे। यानी जिस तरह प्याज को मुक्का मारकर फोड़ते हैं। मोहित उर्फ मोनू मानेसर हरियाणा गो रक्षा टास्क फोर्स का प्रमुख चेहरा और बजरंग दल का पदाधिकारी है। उस पर राजस्थान के नासिर-जुनैद की हत्या का आरोप है। राजस्थान पुलिस उसे ढूंढ रही है। वह कानून का फरार मुजरिम है।
इसके अलावा हरियाणा में भी मोनू के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं। उसी मोनू मानेसर ने सोशल मीडिया पर विडियो जारी करके हिंदुओं से ज्यादा से ज्यादा संख्या में बृजमंडल यात्रा में शामिल होने की अपील की थी। और खुद भी यात्रा में शामिल होने का एलान किया था।
ये एलान ठीक उसी तरह किया गया था, जिस तरह पुरानी हिंदी फिल्मों में डाकू प्रसिद्ध मेले में देवी को सोने का छत्र चढ़ाने की पूर्व घोषणा करते थे।
विचारणीय विषय तो ये है कि जब एक पक्ष के शोहदे ललकारेंगे, चुनौती देंगे, तो क्या दूसरे पक्ष वाले मुंह तोड़ जवाब देने की तैयारी करने की बजाय, छुप कर बैठे रहेंगे? खुले आम सोशल मीडिया पर ललकारने के बावजूद गृहमंत्री का ये कहना कि हथियार और पत्थर जमा करने के इनपुट विभाग को नहीं मिले थे। बचकाना बयान है। और यदि गृहमंत्री का कहना सही है, तो खुफिया विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त क्यों किया गया। सवाल ये भी हैं कि पुलिस प्रशासन क्या कर रहा था? क्यों नहीं यात्रा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये? जब हिंसा की आशंका थी, तो पर्याप्त संख्या में पुलिस क्यों नहीं तैनात कि गये? हिंसा भड़कने के चार घंटे तक अतिरिक्त पुलिस बल नूंह में क्यों नहीं पहुंच पाये? बाद में फोर्स को एयर ड्राप करके फंसे हुए चार हजार श्रृद्धालुओं को निकालने का दावा सरकार कर रही है। उन श्रृद्धालुओं को झज्जर, सोनीपत आदि जिलों से बसों में कौन लेकर गया था?
नूंह की सांप्रदायिक हिंसा को लेकर विपक्षी नेता तो हमलावर हैं ही। खुद बीजेपी के गुड़गांव से सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने प्रदेश सरकार पर सवाल उठाये हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल में कभी भी नूंह में ऐसा नहीं हुआ, जैसा आज हुआ है। इंद्रजीत सिंह ने पूछा है कि शोभा यात्रा में शामिल यात्रियों को हथियार किसने दिये? कोई शोभा यात्रा में तलवार, लाठी और डंडे लेकर जाता है? केंद्रीय मंत्री ने साफ किया कि वे ये नहीं कहते कि दूसरे पक्ष की ग़लती नहीं है। लेकिन अपनी तरफ से उकसाना ग़लत था।
राव इंद्रजीत सिंह ने मोनू मानेसर के बारे में पूछा कि वो लोग कौन हैं जो सोशल मीडिया पर वीडियो डाल कर कह रहे थे, कि "मैं शोभायात्रा में आऊंगा तुम्हारा दामाद बनकर? तुम हमें रोक नहीं सकते।" केंद्रीय मंत्री ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री खट्टर से ज्यादा फोर्स भेजने का आग्रह किया। तब उन्हें लगा कि पुलिस बल पर्याप्त नहीं हैं। उसके बाद अतिरिक्त फोर्स भेजी गयी।
इतने सब के बावजूद गृहमंत्री अनिल विज का मोनू मानेसर के बारे में ये कहकर क्लीन चीट देना कि वह तो यात्रा में आया ही नहीं था। उसका नूंह की हिंसा से कोई संबंध नहीं है। खुद गृहमंत्री विज की मंशा को संदेहास्पद बना देता है। उन्होंने किस आधार पर एक उकसावेबाज को क्लीन चिट दे दी। हालांकि डीजीपी ने मोनू मानेसर की वायरल वीडियो की जांच करवाने की बात कही है। लेकिन गृहमंत्री के बयान के बाद पुलिस की जांच की दिशा क्या होगी? इसका अनुमान लगाना आसान नहीं होगा। सांप्रदायिक हिंसा में पांच लोगों की मौत हुई है। मरने वालों में होमगार्ड के दो जवान भी हैं। उनके परिजनों को सरकार क्या जवाब देगी! अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गयी है कि नूंह की हिंसा पुलिस प्रशासन और सरकार की विफलता का परिणाम है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। और शांति तथा दोनों समुदायों में विश्वास बहाली के लिए उचित कदम उठाये जाने चाहिए।