(धर्मपाल धनखड़): इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में कुछ खलबली और बैचेनी नजर आ रही है। इस बैचेनी के कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण है कर्नाटक में पार्टी के ब्रांड मोदी और हिंदुत्व दोनों का विफल रहना। साथ ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी की करोड़ों रुपए खर्च करके बनायी गयी 'पप्पू' की छवि का टूटना। ये छवि उनकी भारत जोड़ो यात्रा से ना केवल टूटी है, बल्कि वे एक समझदार और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं।
हालांकि अब तक हुए ज्यादातर सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है। लेकिन राहुल गांधी की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है। ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ना निश्चित रूप से भाजपा के दिग्गजों के लिए परेशान करने वाली बात है।
भारतीय जनता पार्टी अब पूरी तरह से ब्रांड मोदी पर निर्भर होकर रह गयी है। यदि मोदी को माइनस कर दे भाजपा की हालत बेहद पतली है। आम लोगों से जब पत्रकार पूछते हैं कि किसको वोट करोगे, तो वे भाजपा का नहीं, केवल मोदी का नाम लेते हैं।
यहां तक कि किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एंट्री के बिना भाजपा बेबस सी नजर आती है। और जब मोदी चुनाव प्रचार में उतरते हैं, तो फिर उनके बराबर में पार्टी का स्थानीय नेतृत्व तो दूर कोई राष्ट्रीय नेता भी खड़ा नहीं दिख सकता है। भाजपा के रणनीतिकारों ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता बी एस येदियुरप्पा को मजबूरी में पोस्टर ब्वाय जरूर बनाया था। लेकिन मोदी के प्रचार अभियान में उतरने के बाद येदियुरप्पा कहीं नजर नहीं आये। यहां भी मोदी जी ने बीजेपी की बजाय अपने नाम पर वोट मांगे थे। बेशक बीजेपी का वोट प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के बराबर रहा है। लेकिन कर्नाटक की हार से, राजनीति के बाजार में, ब्रांड मोदी की वैल्यू कम हुई है।
इसी तरह हिमाचल प्रदेश में मोदी ने अपने नाम पर वोट मांगे थे, लेकिन पार्टी बुरी तरह हारी गयी। कहने का तात्पर्य ये है कि पार्टी संगठन से ऊपर चुनाव जिताने की गारंटी देने वाले, सुपर ब्रांड मोदी का क्षरण शुरू हो गया है।
इस बारे में अभी राजनीतिक विश्लेषक मौन हैं। वे तो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत निश्चित मान चुके हैं। लेकिन ये भी निर्विवाद सत्य है कि बीजेपी और ब्रांड मोदी को पूरे देश में कोई चुनौती दे सकता है, तो वह कांग्रेस ही है। बेशक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की घोषणा कर चुके हैं। और अब भारत को विपक्षमुक्त करने की मुहिम चला रहे हैं। लेकिन 2024 में बीजेपी को राहुल गांधी और कांग्रेस की चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा। भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी लगातार बीजेपी और मोदी पर हमलावर हैं।
हाल की अमरीका यात्रा में राहुल गांधी ने भारतीय छात्रों को भी संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने अपनी लोकसभा की सदस्यता खत्म किये जाने समेत विभिन्न विषयों पर बात की। उन्होंने बातचीत कहा कि मैं आपके सारे सवालों के जवाब दूंगा। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। राहुल ने प्रधानमंत्री पर तीखे कटाक्ष भी किये। बीजेपी नेताओं ने राहुल के बयान को देशद्रोह करार दिया। अब इन्हें कौन समझाये की सरकार की नीतियों या प्रधानमंत्री की आलोचना करना देशद्रोह नहीं होता।
इसी तरह राहुल गांधी से एक सवाल पूछा गया कि केरल में आपकी पार्टी का मुस्लिम लीग से गठबंधन है। क्या मुस्लिम लीग सांप्रदायिक नहीं है? राहुल गांधी ने जवाब दिया कि नहीं, मुस्लिम लीग साम्प्रदायिक नहीं है। इसको लेकर बीजेपी के नेता राहुल गांधी पर हमलावर हैं। बीजेपी और संघ मुस्लिम लीग को घोर साम्प्रदायिक तथा 1947 के विभाजन के लिए जिम्मेदार मानते हैं। अब सवाल तो ये है कि पिछले नौ साल से देश में भाजपा की मजबूत सरकार है और यदि मुस्लिम लीग सांप्रदायिक पार्टी है, तो उस पर बैन क्यों नहीं लगाया गया? जब केंद्र सरकार पीएफआई जैसे संगठन को बैन कर सकती है, जिसे कांग्रेस का समर्थन बताया जाता था, तो मुस्लिम लीग को क्यों खुला छोड़ रखा है? क्या इसलिए कि मुस्लिम लीग के बहाने देश में सांप्रदायिक राजनीति का 'खेला' जारी रखा जा सके। चूंकि भाजपा और संघ पर भी विपक्षी नेता अकसर सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लगाते रहते हैं। वास्तव में यदि मुस्लिम लीग सांप्रदायिक पार्टी है, तो इसे बैन नहीं करने के लिए क्या बीजेपी सरकार और मोदी जी जिम्मेदार नहीं हैं?
वहीं राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में ये भी कहा कि बीजेपी को कांग्रेस नहीं, देश की जनता हरायेगी। ये अपने आप में बहुत बड़ा सच है। क्योंकि बीजेपी जनता की नाराजगी को खत्म करना तो दूर, उसे सुनना और समझना भी नहीं चाहती। इधर, विदेश मंत्री समेत करीब आधा दर्जन मंत्री टीवी चैनलों पर राहुल गांधी को बहस के लिए ललकारते दिख रहे हैं। वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका दौरे से ठीक पहले राहुल गांधी की यात्रा कांग्रेस की रणनीति का ही हिस्सा है। और ऐसा तमाम विपक्षी पार्टियां पहले भी करती रहीं हैं।
कर्नाटक चुनाव के बाद ना केवल कांग्रेस में नये उत्साह का संचार हुआ है, बल्कि विपक्षी एकता मुहिम को भी नयी ताकत मिली है। कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की मुहिम चला रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने अपना अभियान बंद कर दिया है। वे अब अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्वरूप देने की कोशिशों में जुट गये हैं। उधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्ष को एकजुट करने की कवायद तेज हो गयी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा नेता अखिलेश यादव के रुख में बदलाव आया है। वे अब कांग्रेस को साथ लेकर चलने की बात करने लगे हैं। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी नौकरशाहों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मसले पर विपक्षी दलों का साथ मिल रहा है। इससे पहले भी संसद में 20 विपक्षी दल अपनी एकता बाखूबी दिखा चुके हैं। नयी संसद के उद्घाटन समारोह का भी 20 विपक्षी दलों ने एकजुट बहिष्कार किया था। बड़े विपक्षी दलों का कांग्रेस के साथ जुड़ने की कवायद बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।
इन्हीं तमाम वजहों से बीजेपी नेतृत्व चिंतित है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी के मोर्चे पर सरकार बुरी तरह विफल रही है। फौज में अग्निवीर भर्ती योजना, सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली की मांग और निजीकरण के कारण महंगी होती शिक्षा- चिकित्सा इस बार के चुनाव में बड़े मुद्दे बनेंगे। और मोदी सरकार के पास इनका कोई जवाब नहीं है। केंद्र सरकार की नौ साल की उपलब्धियों का गौरव गान भी लोगों को आकर्षित नहीं कर पा रहा है। नार्थ-ईस्ट के राज्यों में बढ़ती बैचेनी, खास तौर पर मणिपुर में एक महीने से ज्यादा समय से चल रही हिंसा, केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं। यदि बीजेपी को इनमें बड़ी सफलता नहीं मिली, तो लोकसभा चुनाव में उसकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। केंद्र की बीजेपी सरकार के पास नौ साल की उपलब्धियों में ऐसा कुछ ठोस नहीं है, जिसके बूते पर वोट मांग सके। अंत में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राम मंदिर निर्माण ही बीजेपी की चुनावी नैय्या के तारणहार हो सकते हैं।