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अमरावती: आंध्र प्रदेश में 13 मई को लोकसभा के साथ ही विधानसभा का भी चुनाव है। इस चुनाव में विरासत की जंग, पारिवारिक ड्रामा, बदले की राजनीति, लोक लुभावन स्कीमों और बदले जातीय समीकरणों के बीच जगन मोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू में कड़ी टक्कर है। पिछला चुनाव अकेले लड़ी टीडीपी को इस बार भाजपा के साथ जन सेना का सहारा है। सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी पांच साल के कार्यों खास तौर पर डायरेक्ट बेनिफिट स्कीमों के दम पर जीत का दंभ भर रही है।

दोनों राष्ट्रीय दल- कांग्रेस और भाजपा तलाश रहे हैं सियासी ज़मीन 

खास यह है कि दोनों राष्ट्रीय दल भाजपा एवं कांग्रेस दक्षिण के दिग्गजों के वारिसों के सहारे आंध्र में सियासी जमीन तलाश रहे हैं। भाजपा एनटी रामाराव की बेटी डी पुरंदेश्वरी और कांग्रेस वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी शर्मिला की अगुवाई में ताल ठोक रही है। वाईएस शर्मिला सीएम जगन रेड्डी की सगी बहन हैं। भाई को ललकार रहीं शर्मिला ने आंध्र के सियासी अखाड़े को और रोचक बना दिया है। विजयवाड़ा से विशाखापटनम और तिरुपति तक आंध्र प्रदेश में जगह-जगह सिद्धम के पोस्टर या बैज लगाए लोग नज़र आते हैं।

चुनावी जंग में विपक्ष के सियासी चक्रव्यूह को मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ‘मेमंता सिद्धम’ (हम तैयार हैं) नारे के साथ तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

दरअसल, 2019 के चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज करने वाले जगन इस बार चारों ओर से घिरे हैं। उनकी युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के खिलाफ चंद्रबाबू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) भाजपा और फिल्म स्टार पवन कल्याण की जन सेना को साथ लेकर मैदान में हैं। सीएम की सगी बहन भी उन्हें चुनाव मैदान में चुनौती दे रही है। ऐसे में सिद्धम... नारे से जगन रेड्डी यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि वह जनता के सहारे इन सबसे लड़ने को तैयार हैं। लेकिन एंटीइन्कंबेंसी, जातीय समीकरण और विपक्ष की मोर्चेबंदी उनके सामने बड़ी चुनौती है।

टीडीपी, जनसेना व भाजपा गठबंधन प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी, चंद्रबाबू नायडू के पूर्व के कार्यों और जगन सरकार की नाकामियों को लेकर मैदान में है। भ्रष्टाचार, महंगाई और कानून- व्यवस्था को लेकर सरकार पर हमलावर गठबंधन पवन कल्याण की सभाओं में उमड़ रही युवाओं की भीड़ से उत्साहित है। उधर, सीएम रेड्डी सभाओं में लोगों से कह रहे हैं- यदि पांच साल में आपको कोई फायदा हुआ है तो ही मुझे वोट देना।

वाईएसआरसीपी का दावा है कि आंध्र के 80 फीसदी लोगों के खातों में सरकार ने किसी न किसी स्कीम के माध्यम से सीधा पैसा डाला है। वॉलंटियरों के जरिए घर-द्वार सेवाओं से भी एक बड़े तबका जुड़ा है। यही वजह है कि घोषणापत्र में वाईएसआरसीपी ने इन्हीं स्कीमों को आगे बढ़ाने का वायदा किया है। पार्टी से जुड़े वाईएस साई बाबा कहते हैं-पूरे देश में किसी सीएम में इतनी हिम्मत नहीं, जो यह कह सके कि फायदा नहीं मिला है तो वोट मत देना।

लंबे समय से आंध्र की राजनीति को करीब से देख रहीं वरिष्ठ पत्रकार रेहाना बेगम कहती हैं-डायरेक्ट बेनिफिट स्कीमों का असर है। विरोधी भी इसे खारिज नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि विपक्षी गठबंधन के घोषणापत्र में भी लोगों को सीधा लाभ देने वालीं इस तरह की स्कीमों के वायदे हैं।

पवन कल्याण के आने से एनडीए को कापू का भी मिल सकता है समर्थन

चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी को प्रमुख कम्मा समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। नायडू कम्मा समुदाय से हैं। लेकिन इस बार अभिनेता व नेता पवन कल्याण के साथ आने से एनडीए को कापू का भी सर्मथन मिल सकता है। जन सेना के प्रमुख पवन खुद को इस समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में भी पेश कर रहे हैं। अभिनेता पवन कल्याण कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सुपरस्टार चिरंजीवी के भाई हैं। चिरंजीवी ने जन सेना को समर्थन का एलान किया है।

वाईएसआरसीपी को रेड्डी समुदाय का सर्मथन मिलता रहा है। सत्ता में रहते जगन रेड्डी ने इस बार एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के साथ बीसी को भी अपने पाले में करने की कोशिश की है। गौरतलब है कि आंध्र की राजनीति में कम्मा, कापू और रेड्डी समुदाय का खासा प्रभाव है।

जिसने विधानसभा जीती, लोकसभा सीटें भी उसके खाते में गईं

आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे हैं। पिछले ट्रेंड को देखें तो जिस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की, लोकसभा की सीटें भी उसी के खाते में गईं। साल 2014 के चुनाव में टीडीपी ने अविभाजित आंध्र प्रदेश में 16 लोकसभा सीटें जीतीं, जबकि वाईएसआरसीपी को नौ सीटें मिलीं। विधानसभा चुनाव भी चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी के पक्ष में रहा।

2019 के चुनाव में वाईएसआरसीपी ने विधानसभा की 175 सीटों में से 151 पर जीत दर्ज की। लोकसभा की 25 सीटों में से 22 सीटें भी उसे ही मिलीं। मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों के चलते आंध्र के मतदाता अभी तक केंद्र व राज्य के लिए अलग-अलग वोट करते नहीं दिखे हैं।

आंध्र में खाता खोलने के लिए जद्दोजहद कर रहे राष्ट्रीय दल

कभी आंध्र प्रदेश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब यहां खाता खोलने के लिए जद्दोजहद कर रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में नोटा से भी कम 1.31 फीसदी वोट लेने वाली कांग्रेस ने इस बार 25 में से 23 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। लेकिन अपनी खोई जमीन पाने के लिए उसे कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। 2019 में आंध्र की सभी 25 लोकसभा सीटों पर लड़ी भाजपा को एक फीसदी से भी कम वोट मिले थे। इस बार वह टीडीपी और जन सेना पार्टी का दामन थाम कर इस धान के कटोरे में कमल खिलाने के प्रयास में है।

गृहिणियां, किसान व ऑटो चालक बनाए स्टार प्रचारक

आम तौर पर राजनीतिक दल चुनाव में बड़े नेताओं, फिल्म स्टार और सेलेब्रिटीज को स्टार प्रचारक बनाते हैं। पर, आंध्र में सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी ने गृहिणियों, किसानों और ऑटो चालक को स्टार प्रचारक बनाया है। बाकायदा चुनाव आयोग को ऐसे 12 लोगों की सूची सौंपी गई है। पार्टी का कहना है कि ये स्टार प्रचारक आंध्र के पांच करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इनके दम पर अंतिम आदमी तक पार्टी का संदेश पहुंचाने की रणनीति है।

 

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