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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में हाइवे के किनारे बने घर को बिना किसी तय प्रक्रिया का पालन किए बुलडोजर से जमींदोज़ किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप इस तरह लोगों के घरों को कैसे तोड़ना शुरू कर सकते हैं? आप रातों-रात किसी का घर नहीं तोड़ सकते। यह अराजकता है।"

'आप रातों-रात किसी का घर नहीं तोड़ सकते': सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों पर सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अवैध तरीके से मकान ध्वस्त करने के आरोप पर फौरन जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और प्रशासनिक के साथ कानूनी कार्रवाई करने को कहा। साथ ही याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने 2020 में दायर याचिका पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की।

ये याचिका मनोज टिबरेमाल ने लगाई थी। उनका महाराजगंज में स्थित मकान 2019 में ध्वस्त कर दिया गया था।

सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "कोई नोटिस नहीं दिया गया और किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। यह पूरी तरह से मनमानी है। यहां प्रक्रिया का पालन कहां किया गया? हमारे पास हलफनामा है, जो कहता है कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। आप केवल साइट पर गए और लोगों को लाउडस्पीकर के माध्यम से मुनादी कर ध्वस्तीकरण की जानकारी दी।"

यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने 3.7 वर्ग मीटर का अतिक्रमण किया था। इस पर कोर्ट ने कहा, "लेकिन आप लोगों के घरों को इस तरह पूरा कैसे तोड़ सकते हैं? किसी के घर में घुसकर बिना नोटिस के उसे गिरा देना गैरकानूनी है।"

जस्टिस पारदीवाला ने कहा, "आप बुलडोजर लेकर आ सकते हैं और रातोंरात घर नहीं तोड़ सकते। आप परिवार को खाली करने का समय नहीं देते। घर के सामान का क्या? आप किसी प्रक्रिया का पालन नहीं करते। किसी प्रक्रिया का तो पालन होना चाहिए।"

123 अन्य निर्माणों पर भी चला था बुलडोजर

सुनवाई के दौरान बेंच को बताया गया कि सिर्फ यही नहीं आसपास के 123 अन्य निर्माण भी ध्वस्त कर दिए गए। वहां घर के निवासियों को केवल सार्वजनिक घोषणाओं के माध्यम से सूचना दी गई। कोर्ट ने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि कथित अतिक्रमण से अधिक के क्षेत्र में भी विध्वंस क्यों किया गया? यह स्पष्ट है कि विध्वंस पूरी तरह से मनमाना था और कानून की अनुमति के बिना किया गया।

3.7 मीटर के हिस्सा पर प्रशासन ने खींची थी पीली लकीर

मनोज की पत्र याचिका के मुताबिक, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया और जिला प्रशासन ने बिना किसी नोटिस के उनके घर को पौने चार मीटर यानि 3.7 मीटर का हिस्सा हाइवे की जमीन बताते हुए रंग से पीली लाइन खींच दी। याचिकाकर्ता ने उतना हिस्सा खुद ही ध्वस्त करा दिया। लेकिन डेढ़ घंटे के अंदर पुलिस और प्रशासन ने अपनी निगरानी में सिर्फ मुनादी की औपचारिकता कर बुलडोजर से पूरा घर ध्वस्त करवा दिया। घरवालों को सामान तो क्या खुद घर से निकलने का मौका नहीं दिया। कोर्ट ने इस अवैध विध्वंस के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह मुआवजा अंतरिम प्रकृति का है। याचिकाकर्ता द्वारा अन्य कानूनी कार्रवाई करने में बाधक नहीं होगा। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को सभी अधिकारियों के खिलाफ जांच करने और अवैध विध्वंस के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य भी अवैध कृत्यों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए स्वतंत्र है।

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