ताज़ा खबरें
मोदी-केजरीवाल भ्रष्ट और कायर हैं, दिल्ली दोनों ने बर्बाद किया: प्रियंका
राष्ट्रपति का सम्मान करती हैं सोनिया जी,बयान तोड़ा-मरोड़ा गया: प्रियंका
महाकुंभ में फंसे लोगों को राहत देने की व्यवस्था करे सरकार:अखि‍लेश
राष्ट्रपति ने दिया विकसित भारत का संदेश, कुंभ हादसे पर जताया दुख

लखनऊ (जनादेश ब्यूरो): कांग्रेस पर दवाब बनाने की रणनीति के तहत अखिलेश यादव ने उप-चुनाव के लिए 6 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। कहा जा रहा था कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिल कर टिकटों की घोषणा करेगी। लेकिन हरियाणा के चुनावी नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति बदल ली है। ऐसा लग रहा है कि वे अब जैसे को तैसा के फ़ॉर्मूले पर चुनाव लड़ने का फ़ैसला कर चुके हैं। राहुल गांधी के वादे के बावजूद समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस ने हरियाणा में सीटें नहीं छोड़ी थी। अखिलेश यादव ने जिन सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की हैं, उनमें से कांग्रेस की दो सीटों पर दावेदारी थी।

कांग्रेस से बात किए बगैर जारी की अपनी सूची

हरियाणा के चुनाव नतीजे के ठीक दूसरे दिन अखिलेश यादव ने कांग्रेस को झटका दे दिया। ज़ोर का झटका ज़रा धीरे से। कांग्रेस को भरोसे में लिए बिना ही उन्होंने छह टिकटों की घोषणा कर दी। यूपी में विधानसभा की 10 सीटों पर उप चुनाव होने हैं। इनमें से 5 सीटों पर पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत हुई थी।

बीजेपी के पास 3 सीट थी। आरएलडी एक सीट पर जीती थी। जबकि बीजेपी के दूसरे सहयोगी दल निषाद पार्टी के पास एक सीट थी। कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन में 5 सीटों की माँग की थी। कांग्रेस मंझवा, फूलपुर, ग़ाज़ियाबाद, मीरापुर और खैर विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में थी। लेकिन अखिलेश यादव ने प्रेशर टैक्टिक्स का दांव चल दिया है। आज लखनऊ में समाजवादी पार्टी ऑफिस पहुँचते ही उन्होंने छह उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। इस तरह से गठबंधन धर्म निभाने की ज़िम्मेदारी अब कांग्रेस पर छोड़ दी है।

'केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा आगे क्या करना है'

यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने एनडीटीवी से कहा कि हमें अभी अभी जानकारी मिली है। हम तो 5 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसी हिसाब से हम तैयारी भी कर रहे थे। अब केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा कि आगे क्या करना है। कांग्रेस पार्टी ने तो फ़ैज़ाबाद की मिल्कीपुर सीट पर भी दावा ठोंक दिया था। पार्टी ने 16 अक्टूबर को वहाँ संविधान सभा करने की घोषणा की थी। फ़ैज़ाबाद से समाजवादी पार्टी के चर्चित सांसद अवधेश प्रसाद पहले मिल्कीपुर से विधायक थे। इस सीट को अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ ने प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया है। पर कांग्रेस इस सीट पर चुनाव लड़ने के दावे कर रही थी। पिछले एक महीने में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पाँच पार मिल्कीपुर का दौरा कर चुके हैं।

समाजवादी पार्टी ने विधानसभा उप चुनाव के लिए 6 उम्मीदवारों का एलान किया है। इनमें से पांच उम्मीदवार तो "परिवार" से हैं। मतलब वे पार्टी के सांसद और विधायक के रिश्तेदार हैं। फ़ैज़ाबाद से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मिल्कीपुर से टिकट मिला है। वे अयोध्या के मेयर का चुनाव हार चुके हैं। अंबेडकरनगर से सासंद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को कटेहरी से टिकट दिया गया है। कानपुर के शाशीमऊ से इरफ़ान सोलंकी समाजवादी पार्टी के विधायक थे। उन्हें अदालत से सजा हुई और अब वे जेल में हैं। अखिलेश यादव ने उनकी पत्नी नसीम सोलंकी को चुनाव लड़ाने का फ़ैसला किया है।

अखिलेश ने अपने रिश्तेदारों को भी दिया है टिकट

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के परिवार के 6 लोग सांसद हैं। अखिलेश समेत परिवार के 5 सदस्य लोकसभा में हैं। जबकि उनके चाचा रामगोपाल यादव राज्य सभा के सांसद हैं। अब परिवार से ही अखिलेश के भतीजे तेज प्रताप यादव को करहल से टिकट मिला है। अखिलेश यादव इसी सीट से विधायक थे। तेज प्रताप यादव रिश्ते में लालू यादव के दामाद भी लगते हैं। वे मैनपुरी से सांसद भी रह चुके हैं। भदोही से बीजेपी के सांसद रमेश बिंद पिछले लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी मैं आ गए थे। वे मिर्ज़ापुर से अपना दल की अनुप्रिया पटेल के खिलाफ चुनाव लड़े और हारे। अब उनकी बेटी ज्योति बिंद को अखिलेश यादव ने मंझवा से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है। बीएसपी से विधायक रहे मुस्तफ़ा सिद्दीक़ी को प्रयागराज के फूलपुर से टिकट मिला है।

समाजवादी पार्टी ने जिस तरह से उम्मीदवारों की घोषणा की है। उसके बाद से कांग्रेस के नेता हैरान परेशान हैं। लेकिन इसी बहाने बीजेपी को इंडिया गठबंधन पर हमले का मौक़ा मिल गया है। यूपी के परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह कहते हैं बस दोस्ती यहीं तक के लिए थी। उन्होंने कहा कि स्वार्थ के लिए इंडिया गठबंधन बना है। अब अखिलेश जी का जवाब राहुल गांधी दें। वैसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्ते में उतार चढ़ाव आते रहे हैं। कभी कमलनाथ तो कभी भूपेन्द्र हुड्डा के कारण गठबंधन टूटते टूटते बचा। अब बचाने की पहल किस तरफ़ से होगी ! इस पर सबकी नज़र है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख