गांधीनगर: उना में दलितों के साथ मारपीट के मामले को लेकर सदन की कार्यवाही में खलल डालने और प्रदर्शन करने पर गुजरात विधानसभा से कांग्रेस के 50 विधायकों को बाहर निकाल दिया गया और फिर एक दिन के लिए कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया। उना में दलितों पर अत्याचार पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के सदस्य अपने हाथों में तख्तियां लिए हुए अध्यक्ष के आसन तक पहुंच गए। तखितयों पर लिखा था कि भाजपा सरकार ‘दलित विरोधी’ है। विधायकों ने सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्रियों की ओर चूड़ियां भी फेंकी। कम से कम 20 सदस्यों ने बैनरों को अपने शरीर पर लपेट रखा था। मानसून सत्र के अंतिम दिन और लगातार दूसरे दिन विधानसभा अध्यक्ष रमनलाल वोरा द्वारा बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद उन्होंने प्रदर्शन जारी रखा। जब हंगामा जारी रहा तो अध्यक्ष ने मार्शलों को विधायकों को सदन से बाहर करने का निर्देश दिया, साथ ही विधायकों का नाम लेते हुए उन्हें एक दिन के लिए कार्यवाही से निलंबित कर दिया। इसके बाद कांग्रेसी विधायकों को सदन से बलपूर्वक बाहर कर दिया गया। अध्यक्ष ने कहा कि विपक्षी दल दलितों से जुड़े मुद्दों पर प्रदर्शन की रणनीति बनाकर आए थे और इस मुद्दे का वे राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं। इससे पहले विधानसभा की कार्यवाही दलितों पर ज्यादतियों के मुद्दे पर तीखी नोंकझोंक से शुरू हुई। कांग्रेसी नेता राघवजी पटेल ने दलित अस्मिता रैली के बाद सामतेर गांव में दलितों पर हमले का मुद्दा उठाया।
उन्होंने सरकार से जवाब मांगा कि हमले के दौरान दलितों को सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए क्या कदम उठाए गए। इस पर गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने बताया कि उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस ने आंसू गैस के 51 गोले छोड़ और हवा में कई राउंड गोलियां भी चलाई थी। इस दौरान एक पुलिस उप अधीक्षक और एक पुलिस इंस्पेक्टर समेत सात पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। इसके बाद विपक्ष में कांग्रेस के नेता शंकरसिंह बाघेला ने उना मामले की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच की मांग की। कांग्रेस के दलित नेता शैलेश परमार ने भी यही मांग की। इसको लेकर सदन में तेज नोंक झोंक हुई।