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पटना: बिहार विधानसभा में आरक्षण संशोधन बिल आम राय से पास हो गया, जिसके बाद जातिगत कोटा सुप्रीम कोर्ट की तय सीमा से आगे बढ़ गया। ये संशोधन राज्य सरकार के नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के नए प्रावधान के लिए हैं। इसके बाद जहां अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण बीस और दो प्रतिशत होगा जबकि वर्तमान में उन्हें सोलह और एक प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा हैं। वहीं ओबीसीं और ईबीसी को अब अठारह और पच्चीस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया हैं। जबकि उन्हें वर्तमान में बारह और अठारह प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा हैं।

बिहार विधानमंडल में जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल ने मंगलवार को पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए राज्य में आरक्षण 65 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया था। बिहार विधानमंडल के चालू सत्र के दौरान इस पर सदन में विधेयक लाया जाएगा।

यह घटनाक्रम तब हुआ जब मुख्यमंत्री ने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी), साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा।

मुख्यमंत्री ने सदन में प्रस्ताव रखा था कि सर्वेक्षण के मुताबिक, एससी जो आबादी का 19.7 प्रतिशत है, को 20 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए जो मौजूदा 16 प्रतिशत से अधिक है। एसटी, जिनकी जनसंख्या में हिस्सेदारी 1.7 प्रतिशत है, का आरक्षण एक प्रतिशत से दोगुना कर दो प्रतिशत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओबीसी जो आबादी का 27 प्रतिशत है और उन्हें 12 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) जो कि आबादी का 36 प्रतिशत हैं, उन्हें 18 प्रतिशत आरक्षण मिलता है।

नीतीश ने प्रस्ताव रखा कि दोनों समुदायों को एक साथ 43 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। इन बढ़ोतरी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण शामिल नहीं है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा के साथ बिहार का प्रस्तावित आरक्षण 75 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

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