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मुंबई: इस शुक्रवार कई फिल्में रिलीज़ हुईं, लेकिन सभी की नज़रें टिकी थीं 'नीरजा' पर, जो पैन एम की फ्लाइट अटेन्डेन्ट नीरजा भनोट की कहानी है। नीरजा ने 5 सितंबर, 1986 को हाईजैक हुई पैन एम फ्लाइट 73 से 359 यात्रियों को बहादुरी से बचाया और शहीद हो गई। भारत में नीरजा को मरणोपरांत अशोक चक्र दिया गया, और साथ ही पाकिस्तान की ओर से भी 'तमगा-ए-इन्सानियत' से सम्मानित किया गया। नीरजा को विदेशों में भी कई सम्मान दिए गए। फिल्म 'नीरजा' में शीर्षक भूमिका में हैं सोनम कपूर, और उनके माता-पिता के किरदारों में शबाना आज़मी और योगेन्द्र टिकू दिखाई दिए। नीरजा के दोस्त के महत्वपूर्ण किरदार निभाते हुए अभिनय क्षेत्र में पदार्पण कर रहे हैं संगीतकार जोड़ी विशाल-शेखर के शेखर रावजियानी। 'नीरजा' की कहानी एक ओर जहां आपको भावनाओं के सफर पर ले जाती है, वहीं यह आपको बहादुरी की बेहतरीन मिसाल भी देकर जाती है।

फिल्म की खामियों की बात करें तो मुझे लगता है कि 'नीरजा' में नायिका की बहादुरी के साथ-साथ हाईजैक में फंसे यात्रियों की दशा, खौफ और घुटन को फिल्मांकन के जरिये और दर्शाया जाना चाहिए था, क्योंकि कहीं-कहीं भावनात्मक सफर कुछ सपाट-सा होने लगता है। दूसरे शब्दों में कहूं, तो मामूली-सी टेकिंग की कमी लगी मुझे, वरना 'नीरजा' बेहतरीन कहानी, बेहतरीन स्क्रीनप्ले और बेहतरीन फिल्म की मिसाल है। फिल्म में बहुत ज़्यादा लोकेशन नहीं है, कोई मिर्च-मसाला भी नहीं है, लेकिन फिर भी फिल्म अंत तक आपको हिलने नहीं देती। 'नीरजा' की कहानी में निर्देशक राम माधवानी ने बड़ी चतुराई और कामयाबी के साथ फ्लैशबैक का इस्तेमाल किया है, जो न तो फिल्म के नैरेशन में बाधा डालता है, और न ही ऐसा महसूस कराता है कि फिल्म इस अहम पड़ाव पर क्यों जा रही है... फिल्म का शूट, किरदार और ट्रीटमेंट वास्तविक रखा गया है। अभिनय की बात करें तो सोनम ने पूरी ईमानदारी के साथ अपना किरदार निभाया है, लेकिन दर्शकों के दिलों पर छाप और आंखों में पानी छोड़ जाएंगी शबाना आज़मी, जिन्होंने इतना गज़ब अभिनय किया है कि सिनेमाहॉल से बाहर आने पर भी फिल्म और शबाना आज़मी की परफॉरमेंस के असर से बाहर निकलने में कुछ वक्त लगा। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर सहज और असरदार है, सिनेमोटोग्राफी विषय को कामयाबी से पेश करती है, गाने कहानी के नैरेशन का हिस्सा लगते है और गीतों के बोल भी अच्छे हैं, लेकिन ज़बान पर ठहरते नहीं हैं।

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