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(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! उस दिन हमको हुज़ूर साहब के पास गए हुए फिर तीन दिन हो गए थे। सलाम करके हम बैठ गए। हमने देखा कि हुज़ूर साहब पहले से ज्यादा बीमार लग रहे थे। हमने कहा अब तो हुज़ूर साहब के दुश्मनों की तबीयत कुछ ज्यादा ही नाशाज़ लग रही है। तो हल्के से मुस्कुराए, ‘मियाँ हमारा तो कोई दुश्मन है ही नहीं हाँ इन दिनों हमारी तबियत कुछ दुरुस्त नहीं है आखिर मौत को भी तो कोई बहाना चाहिए।‘

हमने कहा हुज़ूर साहब ऐसा नहीं कहिए। महाराज जी की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है, वो भी यही कहते हैं और अब आप भी... हमारा क्या होगा? तो बोले, "देखिए मियाँ, जो रब की राह में चलते हैं उन्हें अड़चन आने पर कोई न कोई सहारा मिल ही जाता है। देखिए जिस रास्ते पर भी जब कोई चलता है, उसे उसी रास्ते के लोग सहारा देने के लिए मिल ही जाता है। जैसे कोई ताज़िर तिज़ारत शुरू करता है, तो पुराने ताज़िर उसे बताने लगते हैं कि उन्हें कैसे करना चाहिए। कोई नया क्लर्क ऑफिस में आता है, तो सीनियर क्लर्क उसे समझाने लगते हैं।"

फिर ये तो अल्लाह का रास्ता है तो यहाँ भी रूहानी ताकतें जब किसी अल्लाह वाले को इबादत में कोई अड़चन आती है तो इशारा कर देती हैं। बस आपका फ़र्ज़ है कि दुनियांदारी से दूर रह कर ज्यादा से ज्यादा बख़्त इबादत में लगाएं और कुछ भी चाह न करें। न किसी भगवान को पाने की न किसी दुनियावी चीज पाने की... पाने जैसा तो बस एक मालिक ही है... सब उसके ऊपर ही छोड़ दीजिए। आप तो उसके बंदे बने रहिए, वो आपकी पूरी देखभाल करेगा। श्रीमद्भागवतगीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि "अन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते, तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम‘" यानिकि, तू मेरी इबादत पूरे-पूरे मन से कर, तेरी देखभाल की जिम्मेदारी मेरी है।

अब इतनी बड़ी गारंटी कौन ले सकता है? वो ही जो सर्वशक्तिमान है। अरे आज तो हम बातचीत में इतने मशगूल हो गए कि आपको चाय पिलाना भी भूल गए। फिर उन्होंने ख़ादिम को आवाज़ दी, 'मियाँ चाय लाइए।' चाय आई, हमने चाय पी... फिर उन्होंने पान लगा कर हमें दिया... हमने सलाम करके पान मुंह में रख लिया। फिर ख़ादिम को आवाज़ लगाई, 'मियाँ आइए जरा हमें सहारा देकर उठाईए, आज तो हम पर अपने आप उठा भी नहीं जा रहा है।' फिर हम लोगों से कहा कि 'अब फ़िलहाल आप लोग नहीं आईए, हम अब बैठ नहीं पाएंगे।'

हम सब सलाम करके चले आए फिर दो दिन बाद हम कानपुर से चले आए कुछ दिन बाद कानपुर के मशहूर शायर अंसार कंवरी ने बताया कि हुज़ूर साहब का इंतक़ाल हो गया है। हमारे पास रोने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। अब हमारे लिए कानपुर में कुछ भी नहीं रह गया था। महाराज जी हुज़ूर साहब शतदल प्रमोद तिवारी केजी तिवारी बापू चौबे जी सब जा चुके हैं। अब न अड्डेबाजी है, न रात रात भर मटरगश्ती करना।
बस अब कुछ मित्र रह गए हैं, डॉक्टर सुरेश अवस्थी, अंसार कंवरी, ओमनारायण शुक्ल सो इन लोगों से फोन पर बातचीत होती रहती है। सलाम कानपुर!

आज इतना ही, सबको नमन

समाप्त

नोटः क्रांतिकारी, लेखक, कवि, शायर और आध्यात्मिक व्यक्तित्व सुरेंद्र सुकुमार जी, 1970 के दशक में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। लेकिन ओशो समेत अन्य कई संतों की संगत में आकर आध्यात्म की ओर आकर्षित हुए और ध्यान साधना का मार्ग अख्तियार किया। उनकी आध्यात्मिक यात्रा से जुड़े संस्मरण "जनादेश" आप पाठकों के लिए पेश कर रहा है।

 

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