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(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! अगले दिन हम सही समय पर फिर हुज़ूर साहब की ख़ानक़ाह पहुँचे। हमेशा की तरह महफ़िल जमी हुई थी। हमने उनके हाथों का बोसा लिया और बैठ गए। ‘तशरीफ़ रखिये मियाँ सुकुमार साहब लगता है कि रात में नींद में बहुत खलल पड़ा है।‘ हमने कहा, जी हुज़ूर साहब रात भर मंसूर के बारे में सोचते रहे।

बोले, ‘हम जानते थे कि आपको नींद नहीं आएगी, जब कोई रब की गहरी इबादत में मशरूफ़ हो जाता है, तो उसे भी ये ख्वाहिश जगने लगती है कि उसे भी रब के दीदार हो जाएं। पर इसमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और न ही यह ख्वाहिश पालना चाहिए। इससे इबादत में खलल पड़ता है। मन इबादत से ज्यादा इस ख्याल में खो जाता है कि रब कब मिलेंगे। अरे मियाँ रब तो तब मिलेंगे, जब आपके सारे दुनियाँबी ख़यालात ख़त्म हो जाएंगे। रब को पाने का ख़्याल भी तो ख़्याल ही है न, ये ख़्याल भी दुनियाबी है।‘ हम भी अपने सद्गुरुओं के वचनों में डूब गए। यही तो ओशो ने कहा है, यही हमारी गुरू माँ कहती हैं और यही बात सूरज मुनि महाराज जी भी कहते थे। इसका अर्थ है कि मार्ग चाहे कोई भी हो, सत्य एक ही है।

फिर हुज़ूर साहब ने बोलना शुरू किया, आज हम आपको हज़रत राबिया बसरी की कहानी सुनाते हैं। राबिया बसरी पहली महिला सूफ़ी फ़क़ीर हुई हैं। उनका जन्म बसरा के एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। कहते हैं कि जब उनका जन्म हुआ था, तब उनके घर में दिया जलाने के लिए तेल भी नहीं था। कुछ साल बाद उनके माता पिता का इंतक़ाल हो गया और कुछ दिन बाद बसरा में अकाल पड़ा। जिसमें उनकी दोनों बहनें भी मर गईं। अब राबिया अकेली रह गई। तभी किसी दुष्ट व्यक्ति ने उनको छ दिरम में बेच दिया। अब हज़रत राबिया गुलाम बन गईं। पर उन्होंने अल्लाह ताला की इबादत करना नहीं छोड़ा। वो कहती थीं कि या ख़ुदा अगर मैं दोजख में जाने के डर से आपकी इबादत करती होंऊँ, तो मुझे दोजख की आग में जला दो और अगर मैं ज़न्नत में जाने के लिए इबादत कर रही होऊँ, तो मुझे दोज़ख़ में डाल दो और अगर मैं तुझे पाने के लिए इबादत कर रही हूँ तो मुझे क़ुबूल कर, कहते हैं कि उनके चेहरे पर अल्लाह का नूर दमकने लगा और हज़रत राबिया बसरी अल्लाह से एक हो गईं।

आज इतना ही, सबको नमन

शेष कल

नोटः क्रांतिकारी, लेखक, कवि, शायर और आध्यात्मिक व्यक्तित्व सुरेंद्र सुकुमार जी, 1970 के दशक में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। लेकिन ओशो समेत अन्य कई संतों की संगत में आकर आध्यात्म की ओर आकर्षित हुए और ध्यान साधना का मार्ग अख्तियार किया। उनकी आध्यात्मिक यात्रा से जुड़े संस्मरण "जनादेश" आप पाठकों के लिए पेश कर रहा है।

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